हाल ही में केंद्र सरकार ने एक अहम निर्णय में FCAT पर हमेशा के लिए ताला लगा दिया है। FCAT यानि Film Certification Appellate Tribunal एक विशेष संस्था थी जिसका दुरुपयोग करते हुए कई वामपंथी अपने कुत्सित एजेंडे को अप्रूव करवाते थे। ये निर्णय कितना अहम है, और वामपंथियों के लिए कितना हानिकारक है, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि वामपंथियों को इस संस्था के खत्म होने से बहुत तकलीफ हो रही है।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, “विधि एवं न्याय मंत्रालय ने तत्काल प्रभाव से FCAT यानि Film Certification Appellate Tribunal को निरस्त कर दिया है। अब अगर सेंसर बोर्ड के किसी भी निर्णय से फ़िल्मकारों को किसी भी प्रकार की आपत्ति होगी, तो वे स्पष्ट तौर पर हाईकोर्ट में अपील दायर कर सकते हैं”।
दरअसल, Film Certification Appellate Tribunal एक ऐसी संस्था थी, जहां वो फिल्मकार जाकर अपील कर सकते थे, जो CBFC के निर्णयों से नाखुश होते थे। तो इसमें किसी को क्या आपत्ति हो सकती है? यदि आपकी फिल्म में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है, तो आप स्पष्ट तौर पर हाईकोर्ट में मुकदमा दायर कर अपनी लड़ाई लड़ सकते हैं। लेकिन जिनके लिए FCAT अपने वैचारिक गुरूर को बढ़ावा देने का माध्यम हो, उनके लिए तो यह निर्णय किसी विपदा से काम तो नहीं होगा।
सच्चाई तो यह भी है कि FCAT वामपंथियों के लिए एक अड्डा था, जहां वे अपने वर्चस्व को पुख्ता करने के लिए अपनी फिल्में भेजते थे। इसके उदाहरण कई हैं जैसे, 2016 में आई मोंगा की फिल्म “हरामखोर”, 2017 में आई फिल्मकार अलंकृता श्रीवास्तव की फिल्म “लिपस्टिक अंडर माय बुर्का” और 2017 में ही आई नवाजुद्दीन सिद्दीकी अभिनीत फिल्म “बाबूमोशाय बन्दूकबाज” में सीबीएफसी द्वारा काट-छांट किए जाने के बाद इन फिल्मों को एफसीएटी द्वारा मंजूरी दी गई थी। इन फिल्मों को सेंसर बोर्ड ने विभिन्न कारणों से रद्द किया था।
उदाहरण के लिए विशाल भारद्वाज को ही देख लीजिए। भारतीय सेना को ‘हैदर’ में अपमानजनक तौर पर दिखाने के बाद से ही विशाल भारद्वाज के हाथ कोई सफलता नहीं लगी है। इसलिए जब FCAT को भी निरस्त कर दिया गया, तो जनाब कुछ ज्यादा ही बदहवास हो गए और फिर ट्वीट किया, “FCAT को निरस्त कर दिया गया है, और ये भारतीय सिनेमा के लिए एक बेहद दुखदायी दिन है”।
Such a sad day for cinema
FILM CERTIFICATION APPELLATE TRIBUNAL ABOLISHED | 6 April, 2021
— Vishal Bhardwaj (@VishalBhardwaj) April 6, 2021
आम तौर पर अपने विचारों में संयमित रहने वाले वामपंथी निर्देशक हँसल मेहता भी इस निर्णय पर उबल पड़े, और उन्होंने ट्वीट किया, “क्या हाईकोर्ट के पास हमारी समस्याओं को समझने और सुनने के लिए समय होगा? आखिर इस निर्णय का उद्देश्य क्या है? यदि ये अच्छा निर्णय है, तो इसे गलत समय पर लागू किया गया है!”
Do the high courts have a lot of time to address film certification grievances? How many film producers will have the means to approach the courts? The FCAT discontinuation feels arbitrary and is definitely restrictive. Why this unfortunate timing? Why take this decision at all?
— Hansal Mehta (@mehtahansal) April 7, 2021
अब ऐसे में ऋचा चड्ढा जैसे लोग कैसे पीछे रहते? उन्होंने एक बार फिर मोदी सरकार को तानाशाही सिद्ध करने के लिए चार्ली चैपलिन के ‘द ग्रेट डिक्टेटर’ का एक पोस्टर ट्वीट किया।
https://twitter.com/RichaChadha/status/1379488795700068352
तो वहीं स्वरा भास्कर ने इटली द्वारा सेंसर बोर्ड हटवाने के आर्टिकल को रीट्वीट करते हुए अप्रत्यक्ष रूप से केंद्र सरकार पर हमला करने का प्रयास किया।
लेकिन क्या यह निर्णय वाकई में तानाशाही है? बिल्कुल नहीं, और इसके बारे में प्रकाश डालते हुए अधिवक्ता एवं पूर्व सैन्य अफसर नवदीप सिंह ने बताया, “आपको तो खुश होना चाहिए। उक्त ट्राइब्यूनल सरकार के नेतृत्व में ही काम कर रहा था, और अधिकतर समय इसमें सदस्यों की कमी रहती थी। इसके अलावा आपको दिल्ली के चक्कर लगाने पड़ते थे, आप अब स्पष्ट तौर पर एक स्वतंत्र न्यायिक संस्थान – हाईकोर्ट के समक्ष अपनी बात रख सकते हैं”।
It's rather good news. The tribunal was functioning under the direct control of the executive and was mostly without members and the Chairperson with perpetual vacancies. Now you can challenge orders directly before an independent constitutional court- the High Court.
— Navdeep Singh (@SinghNavdeep) April 6, 2021
कम शब्दों में FCAT वामपंथियों का कंगारू कोर्ट था, जहां से वे अपनी फिल्में पास करवा सकते हैं। लेकिन अब केंद्र सरकार ने ये सुविधा छीनकर उनके वर्चस्व को खत्म करने की ओर एक सार्थक कदम बढ़ाया है।