पश्चिम बंगाल में अगर पिछले कई वर्षों के चुनाव की तुलना इस बार के विधानसभा चुनावों से की जाये तो एक अंतर बेहद स्पष्ट है। इस बार के चुनावों को ऐसी कवरेज मिल रही है जो पहले कभी नहीं मिली और साथ ही पूरे देश की नजर इन चुनावों पर है। स्वतंत्रता के बाद के सांप्रदायिक रक्तपात से उभरने के बाद, 1960 के दशक से ही राजनितिक हिंसा से जूझ रहे पश्चिम बंगाल के लिए यह खबर एक बड़ी बात है और इसका कारण कुछ और नहीं बल्कि प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह द्वारा इन चुनावों को एक राष्ट्रीय मुद्दा बनाना है।
जिस पश्चिम बंगाल में हत्या के डर से रिपोर्टर जाने से भी डरते थे, वहाँ आज एक-एक विधानसभा सीट की ग्राउंड रिपोर्टिंग के साथ विश्लेषण किया जा रहा है। हिंसा आज भी हो रही है और आए दिन TMC के गुंडो द्वारा हिंसा की ख़बरें आती हैं, परन्तु अब पश्चिम बंगाल के चुनावों का मुद्दा राष्ट्रीय बन चुका है। हिंसा की खबर आती ही सरकार और चुनाव आयोग तुरंत एक्शन ले रहा है।
बता दें कि बंगाल का राजनीतिक इतिहास हिंसा से भरा हुआ है। स्वतंत्रता के बाद मार्क्सवादियों ने पहली बार संयुक्त मोर्चा सरकार के गठन के माध्यम से 1967 में यहाँ सत्ता का स्वाद चखा। उस दौरान, चूंकि कांग्रेस जमीन खो रही थी, विशेष रूप से ग्रामीण बेल्ट में, ऐसे में राज्य की दो पार्टी यानी कांग्रेस और कम्युनिस्टों के बीच एक खूनी युद्ध की शुरुआत हुई थी। तब से शुरू हुआ यह राजनीतिक हिंसा का दौर आज भी जारी है।
रिकॉर्ड बताते हैं कि 1972 और 1977 के बीच, सिद्धार्थ शंकर रे के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने तब अल्ट्रा-लेफ्ट के खिलाफ एक भयंकर राजनीतिक हिंसा की शुरुआत की थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी चाहती थीं कि आंदोलन को कुचल दिया जाए।
इसके बाद मार्क्सवादी 1977 में सत्ता में लौटे, 34 साल तक ऐसा आतंक मचाया कि किसी भी विरोधी को पनपने का मौका ही नहीं मिला। माकपा के सत्ता में आने के बाद राजनीतिक हिंसा को पशिम बंगाल के तंत्र में संस्थागत बना दिया गया। इसके बाद आया ममता बनर्जी के नेतृत्व में TMC का दौर।
अब तक यह राज्य पूर्वी राज्यों की तरह ही मीडिया की नजरों से दूर था। किसी को भी इतनी हिमाकत नहीं थी कि वह माकपा की सरकार के खिलाफ कुछ बोले। परन्तु नंदीग्राम और सिंगुर का आन्दोलन उनके सत्ता से बाहर होने का कारण बना और धीरे-धीरे इस क्षेत्र ने करवट लेना प्रारंभ किया। तब तक बीजेपी ने भी RSS की मदद से अपनी उपस्थिति ज़माना शुरू कर दी थी। TMC ने सत्ता में आने के बाद से ही उसी संस्थागत हिंसा को अपनाया और खास कर BJP और RSS को निशाना बनाया।
विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार, 2013 के पंचायत चुनावों में 39 लोग मारे गए, जबकि 2018 में 29 राजनीतिक कार्यकर्ता मारे गए। पिछले साल राजनीतिक हिंसा में लगभग 50 लोगों की जान चली गई थी। 1999 और 2016 के बीच, पश्चिम बंगाल ने राजनीतिक रूप से प्रेरित करीब 365 हत्याएं देखीं। 2014 के लोकसभा चुनावों में चुनाव संबंधी हिंसा में पूरे भारत में 16 राजनीतिक कार्यकर्ता मारे गए थे, उनमें से सात पश्चिम बंगाल के ही थे। इतनी हिंसा के बाद भी मीडिया खामोश रही, न तो ममता बनर्जी के खिलाफ रिपोर्टिंग हो रही थी और न लेख लिखे जा रहे थे।
2014 के लोकसभा चुनावों में पश्चिम बंगाल में ऐसे सबसे अधिक मतदान केंद्र थे जिन्हें चुनाव आयोग द्वारा ‘Critical’ श्रेणी में वर्गीकृत किया गया था। राज्य में 77,252 मतदान केंद्र थे, और उनमें से लगभग आधे (37,553) को ‘Critical’ करार दिया गया था। एक मतदान केंद्र को कई कारणों से ‘Critical’ के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है:
एक उम्मीदवार के पक्ष में 75 प्रतिशत से अधिक मतों का मतदान
पिछले चुनावों में चुनावी हिंसा होना
लापता मतदाताओं की एक बड़ी संख्या
जनता में डर के माहौल होना।
इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि ममता बनर्जी ने अपने कार्यकाल में कितना आतंक फैलाया है। 2014 में, जब ममता बनर्जी राज्य की मुख्यमंत्री थीं, राज्य में चुनाव के समय 931 अपराध दर्ज किए गए थे। 2019 में जारी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के मुताबिक, राजनीतिक हत्याओं में बंगाल देश में सबसे ऊपर है। भाजपा ने दावा किया है कि 2014 के बाद से उसके 100 से अधिक कार्यकर्ता मारे जा चुके हैं। 2011 में सत्ता संभालने से पहले, ममता बनर्जी ने चीजों को क्रम में रखने का वादा किया था। उन्होंने कहा था कि “हम परिवर्तन की राजनीति लाएंगे, प्रतिशोध की नहीं।”
परन्तु आज ठीक उसके उलट हो रहा है और TMC सिर्फ प्रतिशोध की राजनीति कर रही है। सबसे हैरानी की बात थी मीडिया में ममता की पार्टी द्वारा फैलाये गए आतंक पर चुप्पी। परन्तु जब से प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह ने पश्चिम बंगाल पर अपना फोकस जमाया है और रणनीति बनायी है, तब से यह अब पूरे देश में सबसे अधिक चर्चित चुनावों में से एक बन चुका है। दक्षिण भारत से लेकर पूर्वी भारत तक यह जानना चाहता है कि पश्चिम बंगाल में क्या हो रहा है। इस कारण TMC पर दबाव है जिसे वे खुलकर व्यक्त नहीं कर सकती है। आज प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने पश्चिम बंगाल में हो रही राजनीतिक हत्यायों से लेकर मुस्लिम तुष्टिकरण को केंद्र में रख कर ऐसी रणनीति बनायी है कि आज पूरा देश पश्चिम बंगाल के चुनावों को लेकर उत्सुक है। इन चुनावों का सिर्फ इंग्लिश मिडिया ही नहीं बल्कि हिंदी तथा अन्य भाषाओं में भी विश्लेषण हो रहा है। अब देखना यह है कि 2 मई को परिणाम किसके पक्ष में जाता है।