7 अप्रैल को बाइडन प्रशासन के अंतर्गत अमेरिका ने लक्षद्वीप के इलाके में भारत के Exclusive Economic Zone में घुसपैठ कर भारत को आँखें दिखाने की हिमाकत की थी। उसके महज़ 2 दिन बाद यानि 9 अप्रैल को ही यूरोपीय देश नीदरलैंड ने दुनिया को संदेश देते हुए भारत को Indo-Pacific का सबसे महत्वपूर्ण देश बताया है। इससे पहले फ्रांस और जर्मनी जैसे यूरोपीय देश भी भारत के साथ मिलकर Indo-Pacific में काम करने को लेकर इच्छा जता चुके हैं। इससे स्पष्ट है कि Indo-Pacific क्षेत्र में बाइडन सरकार द्वारा अपनाया जा रहा भारत विरोधी रुख उल्टा अमेरिका पर ही भारी पड़ सकता है।
दरअसल, बीते शुक्रवार को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नीदरलैंड के प्रधानमंत्री Mark Rutte ने एक वर्चुअल समिट का आयोजन किया था जिसमें दोनों देशों ने Indo-Pacific क्षेत्र में साथ मिलकर चुनौतियों से निपटने की इच्छा जताई। ऐसे में डच प्रधानमंत्री ने भारत को Indo-Pacific क्षेत्र का सबसे अहम देश बताया। Rutte ने UNSC में परमानेंट सीट के लिए भारत की दावेदारी का समर्थन करते हुए कहा “भारत ना सिर्फ Indo-Pacific क्षेत्र का बल्कि दुनिया के अहम देशों में से एक है। ऐसे में स्वाभाविक तौर पर भारत को UNSC में सीट मिलनी चाहिए।”
हालांकि, नीदरलैंड ही ऐसा इकलौता यूरोपीय देश नहीं है जिसने Indo-Pacific में भारत के साथ मिलकर काम करने की इच्छा जताई हो! इससे पहले फ्रांस और जर्मनी जैसे महत्वपूर्ण देश भी ऐसी घोषणा कर चुके हैं। फ्रांस पहले ही Indo-Pacific में ऑस्ट्रेलिया और भारत के साथ मिलकर एक त्रिपक्षीय गुट बनाने की बात कर रहा है। 12 अप्रैल को Raisina Dialogue में हिस्सा लेने के लिए फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्री पहले ही भारत में आने की तैयारी कर चुके हैं। फ्रांस पहला ऐसा यूरोपीय देश था जिसने अपनी खुद की Indo-Pacific नीति को जारी किया था और उस नीति में भारत को सबसे महत्वपूर्ण स्थान दिया गया था।
इसके साथ ही फ्रांस के बाद जर्मनी अपनी Indo-Pacific नीति को जारी करने वाला यूरोप का दूसरा देश बना था, और उस नीति में भी भारत को सबसे अहम भूमिका में दिखाया गया था। जर्मन नीति के हिसाब से Indo-Pacific में चीनी चुनौती से निपटने के लिए जर्मनी भारत के दबदबे वाली अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के साथ मिलकर काम करने पर ज़ोर देगा।
स्पष्ट है कि यूरोप के साथ-साथ Quad के साथी देश जैसे जापान और ऑस्ट्रेलिया भी यह स्वीकार करते हैं कि भारत Indo-Pacific में सबसे महत्वपूर्ण देश है। हालांकि, ऐसे समय में अगर अमेरिका भारत के खिलाफ ही सख्त रुख दिखाता है तो ज़ाहिर है, अमेरिका अपने साथी देशों में थोड़ी बहुत बची-कुची साख को भी खो देगा। बता दें कि 7 अप्रैल को लक्षद्वीप के पास भारत के Exclusive Economic Zone में अपना युद्धपोत भेजकर क्षेत्र में भारत के दावों को सीधी चुनौती दे डाली थी। इतना ही नहीं, इसके बाद अमेरिका ने एक भारत-विरोधी बयान भी जारी किया था। अमेरिकी नौसेना के सातवें बेड़े ने एक बयान जारी करके कहा था, “7 अप्रैल को युद्धपोत यूएसएस जॉन पॉल जोन्से ने भारत से अनुमति लिए बिना ही लक्षद्वीप से 130 समुद्री मील की दूरी पर भारतीय क्षेत्र में नौवहन अधिकारों और स्व्तंत्रता का प्रदर्शन किया। यह अंतरराष्ट्रीतय कानूनों के मुताबिक है। भारत का यह दावा कि उसके विशेष आर्थिक क्षेत्र में सैन्यर अभ्याेस या आने-जाने से पहले पूर्व सूचना देनी होगी, यह अंतरराष्ट्रीय कानूनों से मेल नहीं खाता है।”
ऐसा हो सकता है कि दक्षिण चीन सागर में अमेरिकी जहाजों की मौजूदगी के कारण चिढ़े चीन को खुश करने के लिए अमेरिका ने भारत के खिलाफ यह कदम चला हो। बाइडन प्रशासन के इस कदम के गंभीर परिणाम सामने आ सकते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि भारत ना सिर्फ Indo-Pacific क्षेत्र की सबसे बड़ी सैन्य शक्तियों में से एक है बल्कि वह Quad का अति-महत्वपूर्ण सदस्य देश भी है। अब जिस प्रकार यूरोप के देश अपनी Indo-Pacific रणनीति के तहत भारत के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं, उससे स्पष्ट है कि बाइडन का भारत-विरोधी रुख अमेरिका को उसके ही साथी देशों में और ज़्यादा अलोकप्रिय बना देगा।