फरवरी की शुरुआत में म्यांमार में सेना द्वारा तख़्तापलट के बाद चीन ने बड़ी ही सावधानी से अपनी म्यांमार-नीति में बदलाव किया। तख़्तापलट से पहले म्यांमार सेना और चीनी सरकार के बीच लगातार तनाव देखने को मिल रहा था लेकिन चीन ने तख़्तापलट के बाद म्यांमार सेना के खिलाफ एक शब्द न बोलकर उसके सामने दोस्ती का हाथ बढ़ाया! इसके पीछे चीन का मकसद था म्यांमार में अपने अति-महत्वपूर्ण Pipeline और BRI प्रोजेक्ट्स को सुरक्षित रखना! हालांकि, Myanmar सेना को चीन का मौन समर्थन अब उसके गले की फांस बनता जा रहा है। म्यांमार की जनता के साथ-साथ म्यांमार के कुछ उग्रवादी संगठनों ने भी अब Myanmar सेना और चीन के इस “गठजोड़” को आड़े हाथों लेने का मन बना लिया है।
म्यांमार में चीन के पास खोने के लिए बहुत कुछ है। अगर म्यांमार में उसके Pipeline प्रोजेक्ट्स को कुछ नुकसान होता है तो तेल के लिए चीन की शत प्रतिशत निर्भरता सिर्फ अति-संवेदनशील मलक्का स्ट्रेट पर हो जाएगी, जो उसके लिए बहुत बड़ा खतरा है। इतना ही नहीं, म्यांमार की सेना के साथ अच्छे रिश्ते स्थापित करना BRI के अंतर्गत विकसित किए जा रहे चीन-म्यांमार Economic Corridor के लिए भी बहुत अहम है। ऐसे में जब UN में पश्चिमी देशों ने म्यांमार की सेना पर प्रतिबंध लगाने के लिए प्रस्ताव आगे किया तो चीन ने सबसे पहले उसपर Veto कर दिया और कहा कि ऐसे समय में म्यांमार पर प्रतिबंध लगाना म्यांमार के लोगों के लिए पीड़ादायक होगा।
साथ ही यह भी रिपोर्ट्स देखने को मिली थीं कि चीनी सरकार Myanmar में इन्टरनेट पर सेंसरशिप को और ज़्यादा कड़ा करने के लिए म्यांमार सेना की भरपूर मदद कर रही है और इसके लिए ज़रूरी तकनीकी सहायता मुहैया करा रही है। ऐसे में म्यांमार की जनता और लोकतन्त्र समर्थक प्रदर्शनकारियों के निशाने पर अब चीनी सरकार और चीनी सरकार के प्रोजेक्ट्स आ गए हैं। ऐसी ही एक घटना में गुस्साये लोगों ने चीनी Pipeline पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा “We Want Democracy” यानि “हमें लोकतन्त्र चाहिए”!
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक तख़्तापलट के बाद से Myanmar सेना ने करीब 543 लोगों को मौत के घाट उतारा है, जबकि करीब 3 हज़ार से अधिक लोगों को हिरासत में लिया गया है। Assistance Association for Political Prisoners के मुताबिक मरने वालों में 44 बच्चे भी शामिल हैं। लोगों पर इस भयंकर कार्रवाई के बाद अब म्यांमार के उग्रवादी संगठन भी म्यांमार सेना के खिलाफ उतरने की बात कर रहे हैं। इनमें से कई संगठन तो ऐसे हैं जिन्हें चीनी सरकार का करीबी माना जाता है।
बीते सोमवार को ही चीन के करीब माने जाने वाले Myanmar National Democratic Alliance Army, Ta’ang National Liberation Army और Arakan Army (AA) ने Myanmar सेना की निंदा की और कहा कि वे इस प्रकार आम लोगों के मारे जाने को स्वीकार नहीं करेंगे।
म्यांमार की मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अब चीन सरकार और Myanmar सेना के बीच में विवाद पैदा होता दिखाई दे रहा है। म्यांमार सेना का समर्थन करने के पीछे चीन का सबसे बड़ा मकसद यही था कि कैसे भी करके अपने प्रोजेक्ट्स और अपने निवेश की सुरक्षा को सुनिश्चित किया जाये, लेकिन म्यांमार सेना ऐसा करने में विफल साबित हुई है। चीन ने म्यांमार सेना को एक कड़ा संदेश देते हुए म्यांमार से सटे बॉर्डर पर अपनी सेना की तैनाती को भी बढ़ा दिया है और दावा किया है कि इन्हें यहा “म्यांमार में चीनी प्रोजेक्ट्स” की सुरक्षा के लिए लाया गया है।
आज की स्थिति में ना तो म्यांमार में चीन के प्रोजेक्ट्स सुरक्षित हैं और ना ही म्यांमार सेना के साथ उसके संबंध! म्यांमार सेना का समर्थन कर चीन म्यांमार के लोगों का सबसे बड़ा विलेन जरूर बन गया है। चीन के खिलाफ रोष इतना ज़्यादा है कि आने वाले दिनों में म्यांमार की सेना को चीन के साथ अपने संबंध तोड़ने भी पड़ सकते हैं। Myanmar की सेना का समर्थन कर चीन ने म्यांमार में एक बाद दांव खेला था, जो अब चीन पर ही भारी पड़ता जा रहा है।