उद्धव सरकार के लिए मुसीबतें खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही हैं। सचिन वाझे ने पहले ही अनिल देशमुख की पोल खोलकर उद्धव सरकार की मुसीबतें बढ़ा दी हैं। अब इस पूर्व सहायक इंस्पेक्टर ने एक पत्र में ये संकेत दिया है कि शरद पवार के विरोध के बावजूद उन्हें नियुक्त किया गया था, और उसी के जरिए सरकार की अधिकतम वसूली कराई जाती थी। यही नहीं वाझे ने अपने पत्र में महाराष्ट्र सरकार के मंत्री अनिल परब पर आरोप भी वसूली के आरोप लगाये हैं।
इस समय सचिन वाझे NIA की हिरासत में है, और उन्हेंने NIA को एक अहम पत्र में बताया है कि कैसे उनके कंधे पर बंदूक रखकर महाविकास अघाड़ी अपने गंदे धंधों को अंजाम देती थी। सचिन वाझे के अनुसार, शरद पवार उनकी पुनः नियुक्ति से अधिक खुश नहीं थे, लेकिन इसके बावजूद उन्हें नियुक्त किया गया।
अपने पत्र में सचिन वाझे ने लिखा है, “एनसीपी प्रमुख शरद पवार को मेरे पुनः नियुक्त होने से आपत्ति थी और वे नहीं चाहते हैं कि मैं वापिस मुंबई पुलिस का हिस्सा बनूँ। लेकिन जब ये बात मैंने अनिल देशमुख को बताई, तो उन्होंने कहा कि यदि मैं उनको 2 करोड़ रुपये देता हूँ तो वे शरद पवार से बात कर सकते हैं। मैंने तब उन्हे इतनी बड़ी रकम चुकाने में असमर्थता जताई थी, तो उन्होंने कहा कि कुछ समय बाद इसका भुगतान किया जा सकता है”।
इसी पत्र में सचिन वाझे ने ये भी बताया कि कैसे अक्टूबर 2020 में सह्याद्री गेस्ट हाउस में बुलाकर अनिल देशमुख ने उन्हें शहर के 1650 बार और रेस्टोरेंट से वसूली करने का आदेश दिया। पहले तो उन्होंने, मना किया, लेकिन जनवरी 2021 में एक बार फिर यही मांग की गई, जिसे कथित तौर पर सचिन वाझे ने स्वीकारा भी।
सचिन वाझे ने पत्र में शिवसेना नेता और महाराष्ट्र के परिवहन मंत्री अनिल परब पर वसूली आरोप लगाते हुए कहा है कि “2020 के जुलाई-अगस्त में मुझे मत्री अनिल परब के आधिकारिक निवास पर बुलाया गया था। मीटिंग में परब ने मुझे प्राथमिक जांच के लिए मिली शिकायत को देखने और जांच के बारे में बातचीत करने के लिए ट्रस्टीज को उनके पास लाने के लिए कहा। उन्होंने मुझे एसबीयूटी से जांच बंद करने के लिए 50 करोड़ की मांग करने को कहा था। मैंने ऐसी कोई भी बात करने में असमर्थता व्यक्त की थी, क्योंकि मैं एसबीयूटी (ट्रस्ट) से किसी को भी नहीं जानता था और साथ ही जांच पर मेरा कोई नियंत्रण नहीं था।” हालांकि, इन आरोपों पर अनिल परब ने सफाई दी है और कहा है उनका इस मामले से कोई संबंध नहीं है। परन्तु ये तो जांच का विषय है।
ऐसे में सचिन वाझे के इस पत्र से दो बातें स्पष्ट होती हैं – न केवल परमवीर सिंह के आरोपों में दम है, अपितु कहीं न कहीं सचिन वाझे की नियुक्ति में उद्धव ठाकरे का भी हाथ रहा है, और अब उद्धव सरकार के एक और मंत्री का नाम इस मामले में सामने आया है। यदि ऐसा नहीं होता, तो शरद पवार की आपत्ति के बावजूद सचिन वाझे को कैसे नियुक्त किया गया? सचिन वाझे पर तो शिवसेना का आशीर्वाद भी शुरू से रहा है, और 2008 में तो सचिन ने पार्टी की सदस्यता भी ग्रहण की थी।
अभी सीबीआई को न्यायालय से सचिन वाझे से पूछताछ करने की स्वीकृति भी मिली है, क्योंकि बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में सीबीआई को परमवीर सिंह के आरोपों के आधार पर जांच पड़ताल करने की स्वीकृति दी है। इसके विरुद्ध उद्धव ठाकरे यूं ही नहीं सुप्रीम कोर्ट गए हैं, क्योंकि उन्हें भली भांति पता है कि यदि सचिन वाझे के बाद अनिल देशमुख ने मुंह खोला, तो उद्धव ठाकरे का पत्ता साफ हो जाएगा।
ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि एंटीलिया केस तो बस प्रारंभ था, अब एक एक करके न सिर्फ महाविकास अघाड़ी की असलियत जनता के समक्ष उजागर होगी, बल्कि उद्धव सरकार के दिन भी अब लद रहे हैं।