पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के मतदान के चरण जैसे-जैसे बढ़ रहे हैं, वैसे-वैसे BJP का दावा पुख्ता होता जा रहा है, कि वो इन चुनावों में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और टीएमसी का सूपड़ा साफ कर सकती है। बात अगर 5वें चरण की सीटों की करें तो बीजेपी को इस बार एक बड़ी बढ़त मिलती नजर आ रही है क्योंकि गोरखा, मतुआ समुदाय का बीजेपी की तरफ झुकाव और मुस्लिम मतदाताओं के वोटों के बंटने का सीधा फायदा बीजेपी उठा सकती है। इसकी बड़ी वजह ये भी है कि पिछले विधानसभा चुनाव से इतर 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को इस क्षेत्र में ममता (43%) से ज्यादा वोट (45%) मिले थे जो कि ममता के लिए मुश्किलों खड़ी कर चुका है।
पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनावों के लिए 5 चरण के मतदान को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। हम आपको अपनी रिपोर्ट्स में बता चुके हैं कि कैसे इन चुनावों में BJP ममता के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरी है। इसी कड़ी में अब 45 सीटों में पांचवें चरण के मतदान में बीजेपी को अब तक का सबसे बड़ा फायदा हो सकता है, क्योंकि BJP का इस क्षेत्र में विशेष प्रभाव रहा है। इन चरण में उत्तर 24 परगना, पूर्ब बर्धमान, नादिया, जलपाईगुड़ी, दार्जिलिंग और कलिम्पोंग के क्षेत्र आते हैं, और इनका सियासी गणित बीजेपी के हक में है।
पिछले विधानसभा चुनावों की बात करें तो ममता दीदी ने इस इलाक़े में बेहतरीन प्रदर्शन कर 45 में से 32 सीटें जीती थीं, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में सारा खेल पलट गया था। बीजेपी को इस क्षेत्र में वोट प्रतिशत में बड़ा फायदा हुआ था, जिसमें बीजेपी को 45 प्रतिशत और ममता को 43 वोट मिले थे। ऐसे में सीटों के गणित पर नजर डालें तो BJP के खाते में 22 और ममता के पास 23 विधानसभा सीटें आईं थीं, लेकिन इस बार इन सीटों पर बीजेपी के लिए माहौल काफी सहज है।
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बीजेपी के लिए सहज राजनीतिक स्थिति होने की वजह दो विशेष समुदाय के लोगों का बीजेपी के साथ जुड़ना है, इसमें सबसे महत्वपूर्ण मतुआ समुदाय है। मतुआ समुदाय के लोग ममता बनर्जी से खासा नाराज हैं और वो ममता को सबक सिखाने के लिए 2019 के लोकसभा चुनाव में ही बीजेपी की तरफ शिफ्ट हो गए थे, और इस मामले में दिलचस्प बात ये है कि ममता बनर्जी के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर तक अपनी ओपेन चैट में पत्रकारों से बात करते हुए कह चुके हैं कि मतुआ समुदाय BJP के लिए ही वोट करेगा।
इतना ही नहीं इस इलाके में गोरखा समुदाय का भी 13 सीटों पर विशेष प्रभाव है। गोरखा के हितों को लेकर ममता ने हमेशा ही गोरखा नेताओं को आंदोलनों और विरोध के कारण प्रताड़ित किया है। वहीं, गोरखा अपने हितों के लिए संघर्षरत रहे। ऐसे में लोकसभा चुनावों में गोरखा एक मुश्त वोट बीजेपी के पाले में खड़े थे। इसीलिए ये माना जा रहा है कि गोरखा समुदाय एक बार फिर बीजेपी पर ही अपना विश्वास जता सकती है।
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इतना ही नहीं 24 परगना के क्षेत्र में मुस्लिम समुदाय का भी विशेष प्रभाव है, लेकिन त्रिकोणीय मुकाबला होने से मुस्लिम समुदाय असमंजस की स्थिति में है। एक तरफ कांग्रेस फुरफुरा शरीफ पीरजादा अब्बास सिद्दीकी की पार्टी इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आईएसएफ ) के साथ गठबंधन कर चुकी है तो दूसरी ओर ममता के साथ पिछले दस सालों का मुस्लिम तुष्टिकरण का बोझ है। ऐसे में ये मुस्लिम वोट ममता से पूर्णतः तो नहीं लेकिन छिटक जरूर सकता है। मुस्लिम समुदाय का वोट जितना ज्यादा बिखरेगा, बीजेपी की संभावनाएं उतनी ही प्रबल होंगी।
ऐसे में साफ है कि पिछले चुनावों में जिस ममता ने 45 में से 32 सीटें अपने नाम की थीं, उन्हीं ममता को इस बार बीजेपी झटका दे सकती है क्योंकि उसके साथ मतुआ और गोरखा समुदाय का बड़ा जनसमर्थन है और यही जनसमर्थन ममता को डरा रहा है। ममता जानती हैं कि इस चरण में यदि वो पीछे रह गईं तो उनका आगे निकलना नामुमकिन हो जाएगा। वहीं, विश्लेषकों ने ये बोलना भी शुरू कर दिया है कि BJP इस इलाके में क्लीन स्वीप करेगी।