जब से राम मंदिर का निर्माण कार्य आरंभ हुआ है और मंदिर समिति को लोगों ने दिल खोलकर चंदा दिया है, तब से लिबरल जमात की वैचारिक दस्त की शिकायत बढ़ गई है। किसी न किसी बहाने भारत का उदारवादी वामपंथी धड़ा मंदिर को कठघरे में खड़ा कर रहा है और अपनी आदत के अनुसार हिंदुओं और उनके धर्मस्थलों को बदनाम करने में जुटा हुआ है।
जबकि वास्तविकता यह है कि हिन्दू मंदिरों ने हर राष्ट्रीय आपदा में सबसे पहले और सबसे बढ़कर हिस्सेदारी दिखाई है। स्वाभाविक रूप से हिन्दू भारत की रक्षापंक्ति में सबसे आगे खड़ा रहा है क्योंकि भारत किसी अन्य सम्प्रदाय के जन्म के पहले से सनातन संस्कृति की भूमि है। कोरोना की दूसरी लहर में भी यह क्रम बदला नहीं है।
ओडिशा में जगन्नाथपुरी मंदिर ट्रस्ट ने 1.51 करोड़ रुपये मुख्यमंत्री राहत कोष में दिये थे। मंदिर प्रशासन इसके अतिरिक्त ओडिशा के 62 अन्य मंदिरों ने कुल 1.37 करोड़ रुपये का अनुदान किया है। इसमें तारिणी मंदिर ने 20 लाख गोरखनाथ मंदिर ने 10 लाख, माँ मांगला 10 लाख रुपये का अनुदान दिए हो।
जगन्नाथपुरी अकेला उदाहरण नहीं है, काशी विश्वनाथ मंदिर, वाराणसी ने जिला प्रशासन के साथ मिलकर बाबा विश्वनाथ की रसोई से रोजाना कोविड पीड़ित परिवारों को भोजन करवाने की व्यवस्था की है। जिला प्रशासन मंदिर को रोज सूची सौंपता है और मंदिर समिति भोजन कि व्यवस्था करती है।
मुंबई में जैन समुदाय ने मंदिर को कोविड -19 सेंटर में परिवर्तित कर एक अद्भुत उदाहरण स्थापित किया है। इस कोविड सेंटर में 100 बिस्तरों वाले पैथोलॉजी लैब के साथ सामान्य और डिलक्स वार्ड शामिल हैं।
यह तो केवल इस वर्ष के ऐसे उदाहरण हैं जिन्हें मेनस्ट्रीम मीडिया में जगह मिल गई है। ऐसे कई उदाहरण हैं जिनकी चर्चा दुर्भाग्यवश मेनस्ट्रीम मीडिया में नहीं होती। लेफ्ट इकोसिस्टम जानबूझकर ऐसी खबरों को दबाता है, जबकि एक मस्जिद या गुरुद्वारा या चर्च थोड़ा भी अनुदान करे तो पूरा इकोसिस्टम इस खबर को ऐसे चलाता है जैसे इसी एक दान पर कोरोना की पूरी लड़ाई टिकी है।
पिछले वर्ष गुजरात के अम्बाजी मंदिर ने CM रिलीफ फंड में 1 करोड़ रुपये का दान दिया था। सोमनाथ मंदिर ने गुजरात सरकार को 1 करोड़ रुपये का अनुदान दिया था। स्वामी नारायण मंदिर ट्रस्ट ने गुजरात सरकार को 1।88 करोड़ रुपये की मदद दी थी, इसके अलावा मुफ्त भोजन के साथ ही अपनी धर्मशाला को 500 बिस्तर वाले क्वारेंटाइन सेंटर में बदल दिया था।
महाराष्ट्र में साईं मंदिर ट्रस्ट ने महाराष्ट्र मुख्यमंत्री राहत कोष में 51 करोड़ रुपये दिए थे। देवस्थान मैनेजमेंट कमेटी, कोल्हापुर ने सरकार को 2 करोड़ रुपये का अनुदान किया था, इसमें महाराष्ट्र सरकार को 1.5 करोड़ और कोल्हापुर प्रशासन को 50 लाख की मदद की गई थी। सिद्धिविनायक मंदिर ने घर से दूर रहकर लड़ रहे फ्रंटलाइन वॉरियर्स के लिए भोजन और पानी की व्यवस्था की थी।
माता मानसी देवी, पंचकूला, हरियाणा की मंदिर समिति ने राज्य सरकार को 10 करोड़ रुपये की मदद दी थी। बिहार में पटना के महावीर मंदिर ट्रस्ट ने 10 करोड़ रुपये का अनुदान किया था।
पतंजलि योगपीठ की ओर से 25 करोड़ रुपये का दान दिया गया है। इसके अतिरिक्त पतंजलि ट्रस्ट कोरोना के औषधीय इलाज के लिए भी कार्य कर रहा है।
वैष्णो देवी मंदिर के कर्मचारियों ने पिछले वर्ष अपनी एक दिन की तनख्वाह दान दी थी। साथ ही मंदिर ट्रस्ट ने 600 बेड के क्वारेंटाइन सेंटर की व्यवस्था की थी एवं पिछले वर्ष, पूरे लॉकडाउन में जरूरतमंद लोगों को मुफ्त भोजन करवाया था। कांची मंदिर ने 10 लाख रुपये दान दिए था।
महाकालेश्वर मंदिर, उज्जैन ने प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री राहत कोष में 2.5 लाख रुपये का अनुदान किया है। साथ ही मंदिर ट्रस्ट ने पूरे लॉकडाउन में निःशुल्क भोजन की व्यवस्था की थी।
तिरुपति बालाजी मंदिर ने आंध्र प्रदेश सरकार को 19 करोड़ रुपये की आर्थिक मदद दी थी। इसमें 11 करोड़ मुख्यमंत्री राहत कोष और 8 करोड़ चित्तूर प्रशासन को मिले थे।
लेख में स्थान की कमी हो जाएगी, किन्तु उदाहरण मिलने बन्द नहीं होंगे। मंदिर हमेशा से निःस्वार्थ सेवा का स्थल रहे हैं, धर्म, समाज और संस्कृति की रक्षा के लिए हमेशा आगे आए हैं। यही कारण था कि मध्यकाल में मुस्लिम आक्रांताओं ने मंदिरों को निशाना बनाया, जिससे हिन्दू मनोबल और शक्ति तोड़ी जा सके। यही नीति ब्रिटिश शासन की भी रही और स्वतंत्र भारत में नेहरूवादी, उदारवादी, वामपंथी, पश्चिमी सभ्यता के समर्थक, इस्लामिक विचारक, मिशनरी आदि अनेकानेक भारत विरोधी आज भी मंदिरों को निशाना बना रहे हैं।