बहुत कम ऐसा होता है जब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत अपनी वैश्विक छवि की चिंता छोड़कर देश हित में कुछ कड़े निर्णय लेता है। लेकिन इस बार भारत ने कुछ ऐसा ही निर्णय लिया है। भारत सरकार अब यह संदेश देना चाहती है कि चाहे WTO हो या कोई और संगठन, भारत बिना किसी ठोस उद्देश्य के राष्ट्रहित से समझौता करते हुए ऐसी किसी बैठक में हिस्सा नहीं लेगा।
ईकोनॉमिक टाइम्स के लेख के अनुसार, भारत WTO द्वारा आयोजित ई कॉमर्स पर बहुपक्षीय बैठकों में हिस्सा नहीं लेगा। वाणिज्य एवं उद्योग राज्य मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा, “हमारा मानना है कि WTO जिन विषयों पर बैठक आयोजित करा रहा है, वो हमारे देश हित में है ही नहीं।” मार्च 2020 में इस विषय पर WTO के समक्ष विकासशील देशों की ओर से भारत और अफ्रीका के देशों ने संयुक्त रूप से एक ज्ञापन सबमिट किया था।
इसका अर्थ क्या है? अब से भारत उन बैठकों में हिस्सा नहीं लेगा, जहां भारतीय हित खतरे में हो, या फिर भारत की बातों को कोई भाव न दिया जाए। लेकिन बात यहीं पर नहीं रुकती। जिस प्रकार से भारत अंतर्राष्ट्रीय बैठकों में अपने हितों को सर्वोपरि रख रहा है, उसे देखकर ऐसा लग रहा है कि कुछ दिन पहले जो बातें पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने की थी, वो मज़ाक नहीं थी।
हाल ही में पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने एक अहम व्याख्यान में स्पष्ट किया कि, भारत जलवायु परिवर्तन संबंधी अपनी आकांक्षाओं को अवश्य पूरा करेगा, परंतु किसी के दबाव में आकर नहीं। प्रकाश जावड़ेकर के अनुसार, “भारत विकसित देशों से वित्तीय सहायता और उनके जलवायु कार्यों पर प्रगति के बारे में पूछताछ करता रहेगा। भारत जी20 का एकमात्र ऐसा देश है जिसने पेरिस जलवायु समझौते पर जो कहा, वह किया और अधिकतर समय वादे से ज्यादा ही किया। लेकिन कई देश 2020 के पूर्व किए गए वादे भूल चुके हैं और बात 2050 की कर रहे हैं”
प्रकाश जावड़ेकर ने अपने सम्बोधन में आगे कहा, “कई देश अब कह रहे हैं कि कोयले का इस्तेमाल नहीं करें, लेकिन विकल्प कोयले से काफी सस्ता होना चाहिए, तभी लोग कोयले का इस्तेमाल बंद करेंगे। भारत दूसरों के कदमों के कारण भुगत रहा है। अमेरिका, यूरोप और चीन ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन करते हैं जिसे दुनिया भुगतती है। जलवायु बहस में एक प्रमुख चीज़ जिम्मेदारी भी है। हमें गरीब देशों के लिए जलवायु न्याय को भी ध्यान में रखना चाहिए। उन्हें विकास करने का अधिकार है।”
तो इसका भारत के हित से क्या संबंध है? दरअसल प्रकाश जावड़ेकर के बयान से उनका रुख स्पष्ट था – भारत अपने हितों के साथ समझौता करके पर्यावरण संबंधी समझौतों का पालन नहीं करेगा। लेकिन अब जिस प्रकार से WTO के आगामी सम्मेलन के प्रति भारत ने अपना विरोध जताया, उससे स्पष्ट होता है कि यह लड़ाई सिर्फ पर्यावरण तक सीमित नहीं है।
सच कहें तो बहुत समय बाद ऐसी सरकार आई है, जो वैश्विक छवि और वैश्विक दबाव को दरकिनार कर राष्ट्रहित के लिए कुछ भी करने को तैयार हो। WTO का भारत के प्रति व्यवहार देखते हुए यह निर्णय अस्वाभाविक भी नहीं है, जिससे भारत सरकार की ओर से संदेश स्पष्ट जाता है – राष्ट्र से ऊपर कुछ नहीं, और अपने हितों को त्यागकर वैश्विक प्रसिद्धि स्वीकार नहीं।