किसी ने सही ही कहा था – बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया। धन के आगे बड़ी से बड़ी विचारधारा तक फेल है, और ये बात कनाडा के जस्टिन ट्रूडो से बेहतर शायद ही कोई जानता होगा। कभी जो व्यक्ति अपने अति उदारवादी नीतियों के कारण भारत से सीधे सीधे पंगा लेने तक को तैयार था, अब वह भारत के साथ अपनी नीतियों को सुधार कर एक नई शुरुआत करना चाहता है।
लाइवमिन्ट की रिपोर्ट के अनुसार, “लगभग चार वर्षों के बाद भारत और कनाडा एक मिनी ट्रेड डील हेतु बातचीत के लिए तैयार है। वाणिज्य मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार कनाडा से इस बारे में बातचीत पिछले वर्ष के मध्य से ही हो रही है, और यदि सब कुछ सही रहा, तो जल्द ही अप्रैल के अंत तक आधिकारिक तौर पर बातचीत शुरू हो जाएगी”
भारत और कनाडा इस बारे में 2010 से ही बातचीत में ही जुटे हुए हैं, और अंतिम बार बातचीत अगस्त 2017 में हुई थी। यूं तो ये काम 2018 के अंत तक भी हो सकता था, लेकिन कनाडा की राजनीति में उथलपुथल और जस्टिन ट्रूडो की अति उदारवादी नीतियों के कारण भारत इस ट्रेड डील पर आगे बढ़ा ही नहीं।
हद तो तब हो गई जब 2020 में कृषि कानून के विरोध में उपजे अराजकतावादी आंदोलन को खुलेआम जस्टिन ट्रूडो ने बढ़ावा दिया। ट्रूडो ने न केवल भारत में किसानों द्वारा नए कृषि कानूनों के खिलाफ कथित ‘शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन’ के बारे में चिंता जताई, बल्कि यह भी कहा कि भारत, विशेषकर पंजाब प्रांत के किसान उनपर विश्वास कर सकते हैं।
लेकिन यह वही कनाडा है, जिसने भारत में किसानों को दी जाने वाले सरकारी मदद पर विश्व व्यापार संगठन (WTO) में सवाल उठाए थे और भारत को घेरा था। तब कनाडा समेत अमेरिका और यूरोपीय यूनियन ने ये भी कहा था कि भारत की व्यापार नीति ट्रांसपेरेंट नहीं हैं और कृषि उत्पादों के व्यापार को लेकर और डेटा मांगे थे।
जस्टिन ट्रूडो को तब घुटने टेकने पड़े, जब वुहान वायरस के कारण कनाडा में जबरदस्त संकट आन पड़ा, और कनाडा के पास पर्याप्त वैक्सीन तक नहीं थे। ऐसे में ट्रूडो को भारत से सहायता माँगनी पड़ी, जिसके पास वैक्सीन का विशाल भंडार उमड़ने लगा था। फरवरी 2021 में पीएम मोदी ने घोषणा की कि भारत कनाडा को कोरोना वायरस से निपटने के लिए वैक्सीन की बड़ी खेप भेजेगा। पीएम मोदी ने कहा कि उन्होंने जस्टिन ट्रूडो की मांग को स्वीकारते हुए यह निर्णय लिया है।
पीएम मोदी ने कनाडा को वैक्सीन भेजने की घोषणा कर न सिर्फ नए भारत के उदय को सिद्ध किया है, बल्कि एक ही तीर से अनेक निशाने भी साधे है। स्थिति यह है कि जो कनाडा कभी भारत को पेनसिलिन एक्सपोर्ट करता था, आज वही कनाडा चीन, अमेरिका और यूके से दुलत्ती खाने के बाद वैक्सीन के लिए भारत के सामने गिड़गिड़ाने को विवश है। परन्तु यहाँ सबसे बड़ी बात खालिस्तानियों के लिए बड़ा झटका है।
ऐसे में अब जिस प्रकार से जस्टिन ट्रूडो के नेतृत्व में कनाडा भारत के साथ ट्रेड डील करने के लिए इच्छुक है, उससे दो बातें स्पष्ट होती हैं – न तो भारत किसी भी देश के सामने झुकने को तैयार है, और न ही वह किसी भी प्रकार के अलगाववाद को कहीं भी बढ़ावा देने देगा। कनाडा का ट्रेड डील करना ट्रूडो से अधिक खालिस्तानियों के लिए किसी सदमे से कम नहीं है, जो कुछ समय तक ट्रूडो को अपना भाग्यविधाता मानते थे।