जो ममता बनर्जी अपने आप को बंगाल की रानी समझती थीं, अब सत्ता की कुर्सी अपने हाथ से फिसलते देख उन्हें अपनी नानी याद आ रही हैं। अब उन्होंने एक पत्र के जरिए सभी विपक्षी पार्टियों से गुहार लगाई है कि वह उनके साथ आएं और भाजपा को कड़ा सबक सिखाएं।
आज यानि 1 अप्रैल को बंगाल और असम में विधानसभा चुनाव का दूसरा चरण शुरू हो चुका है। चुनाव परिणाम आने से पहले ही लोगों के साथ-साथ सत्ताधारी पार्टी को भी एहसास होने लगा है कि किसकी सरकार आने वाली है। शायद इसीलिए ममता बनर्जी ने लगभग 15 पार्टियों के अध्यक्षों से गुहार लगाई है कि वे बंगाल आयें और उन्हें अपना ‘बहुमूल्य समर्थन’ दें।
ममता बनर्जी अपने पत्र में कहती हैं, “मैं यह पत्र इसलिए लिख रही हूँ, क्योंकि जिस प्रकार से भाजपा और उसकी सरकार लोकतंत्र और उसके संघीय ढांचे पर प्रहार कर रही है, उससे मुकाबला करने का वक्त आ चुका है। केंद्र और राज्य के संबंध पिछले दशकों में सबसे निम्नतम स्तर पर हैं।”
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यह पत्र ममता ने काँग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी, एनसीपी प्रमुख शरद पवार, डीएमके प्रमुख एमके स्टालिन, झारखंड मुक्ति मोर्चा प्रमुख हेमंत सोरेन, आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविन्द केजरीवाल, बीजू जनता दल प्रमुख नवीन पटनायक, YSR काँग्रेस पार्टी प्रमुख वाइएस जगनमोहन रेड्डी, आरजेडी प्रमुख तेजस्वी यादव, समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव, नेशनल कॉन्फ्रेंस फारूक अब्दुल्ला और PDP प्रमुख महबूबा मुफ्ती सईद समेत कुल 15 नेताओं को लिखा है।
ममता बनर्जी इतने पर ही नहीं रुकी। उन्होंने आगे लिखा, “जिस प्रकार से हाल ही में नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली [संशोधन] विधेयक पारित किया है। वह हम सभी के लिए चिंता का विषय है। ये बिल भारतीय गणतंत्र के संघीय ढांचे पर करारा प्रहार है। यह लोकतंत्र का मज़ाक उड़ाता है और देश की राजधानी के लोगों का अधिकार भी छीनता है। ऐसा लगता है कि यह सब यहीं तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि देशभर में अब भाजपा की तानाशाही के अनेक उदाहरण देखने को मिलेंगे और शायद मिल भी रहे हैं।
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इसके अलावा भाजपा की तानाशाही का ‘भय’ दिखाते हुए ममता बनर्जी अपने पत्र में लिखती हैं, “कुल मिलाकर केंद्र और राज्य के बीच संबंध पहले इतने बुरे नहीं थे, जितने अब हैं। यह सब प्रधानमंत्री के तानाशाही रवैये के कारण है। मुझे लगता है कि अब समय आ चुका है कि हम भाजपा के लोकतंत्र और संविधान पर निरंतर हमलों का मुकाबला करने के लिए एकजुट हों। हम केवल एक होकर ही ये युद्ध जीत सकते हैं और जब तक लोगों को हम एक बेहतर विकल्प नहीं सुनिश्चित कराते, तब तक हम ये लड़ाई नहीं जीत सकते हैं”।
अगर पूरे मामले पर गौर करें तो एक बात साफ हो जाती है कि ममता बनर्जी ने आधिकारिक रूप से बंगाल से हाथ खड़े कर दिए हैं। उनके पत्र लिखने का एक ही उद्देश्य है – मैं अब और लोगों को उल्लू नहीं बना सकती, मुझे सहारे की आवश्यकता है। जिस प्रकार से पहले चरण के रुझान आ रहे हैं। उनसे साफ जाहिर होता है कि ममता के 10 वर्षों का कुशासन अब खत्म होने जा रहा है और ममता चाहकर भी इसे रोक नहीं पायेंगी। इसीलिए अब वह विपक्षी नेताओं के सहारे अपनी डूबती नैया को पार लगाना चाहती है, जिसके बचने की उम्मीद अब न के बराबर है।