मोदी सरकार की वैक्सीन मैत्री नहीं, ये राज्य सरकार की अक्षमता है जो वैक्सीन बर्बाद हो रही

वैक्सीन मैत्री

PC: Business Today

कोरोनावायरस की वैक्सीन को लेकर पूरी दुनिया में भारी मांग है। ऐसे में सबसे पहले और सबसे बेहतरीन वैक्सीन बनाने वाले भारत ने न केवल खुद के नागरिकों को बल्कि पूरी दुनिया को वैक्सीन में मदद करने का हौसला दिखाया, लेकिन अब देश में वैक्सीन की कमी को लेकर सवाल उठ रहे हैं कि मोदी सरकार को विदेशों में वैक्सीन नहीं भिजवानी चाहिए थी, लेकिन जो लोग भारत की सरकार पर वैक्सीन मैत्री को लेकर सवाल उठा रहे हैं, उन्हें ये भी समझना होगा कि आज की स्थिति में वैक्सीन की बड़ी मात्रा में बर्बादी हो रही है, जिसके चलते लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

भारत ने सार्क देशों के साथ ही दक्षिण अफ्रीका ब्राजील समेत अनेक देशों को वैक्सीन उपलब्ध करवाई। ताजा स्थिति की बात करें तो भारत की वैक्सीन मैत्री काफी हद तक सफल रही है, लेकिन विदेशों से होने वाली आलोचनाओं से पहले देश के लोग ही मोदी सरकार की नीति पर सवाल उठाने लगे हैं। इसकी बड़ी वजह है देश में वैक्सीन की कमी। लोगों का आक्रोश के कारण यहां तक कहना है कि देश में वैक्सिनेशन होने के बाद अन्य देशों को वैक्सीन उपलब्ध करानी चाहिए थी।

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वैक्सीन मैत्री पर सवाल उठाने वालों को एक बार ये अवश्य सोचना होगा कि कोरोनावायरस की वैक्सीन की कमी विदेश भेजने से नहीं, बल्कि संरक्षण में लापरवाही के कारण हुई है। इस मामले में हिंदुस्तान की रिपोर्ट के मुताबिक देश में 13 करोड़ डालर वैक्सीन के डोज रिलीज किए गए है, जिसमें से वैक्सीन की एक बड़ी मात्रा बर्बाद भी हुई है। स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक देश के कई राज्यों में वैक्सीन की बरबादी हो रही है, जिसमें सबसे ऊपर तमिलनाडु का नाम आता है।

खबरों के मुताबिक तमिलनाडु में 11 प्रतिशत से अधिक वैक्सीन बर्बाद हो चुकी है। इसके बाद हरियाणा का नंबर आता है, जहां 10.5 प्रतिशत टीके बर्बाद हो गए। हालांकि, केंद्र सरकार लगातार राज्यों से वैक्सीन की बर्बादी को रोकने की अपील कर रही है, लेकिन उसका इन पर कोई खास असर नहीं पड़ा है जो कि इस वक्त चिंताजनक बात है। वहीं, मणिपुर में 8.4 प्रतिशत, पंजाब में 7.88 प्रतिशत, बिहार में 7.33 और असम में 6.62 प्रतिशत वैक्सीन बर्बाद हो रही है। राजस्थान की बात करें तो यहां 6.32 प्रतिशत और उत्तर प्रदेश में 5.27 प्रतिशत वैक्सीन बर्बाद हो रही है।

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सरकार द्वारा दिए गए आंकड़ों से साफ है कि देश में इस वक्त वैक्सीन की कमी की मुख्य वजह भारत की वैक्सीन मैत्री नहीं बल्कि वैक्सीन की बर्बादी है। वैक्सीन मैत्री के जरिए भारत ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी एक अलग पहचान बनाई है। इतना ही नहीं अपने दुश्मन देश‌ पाकिस्तान तक को संयुक्त राष्ट्र की परियोजना के तहत भारत ने वैक्सीन उपलब्ध कराने का काम किया है। इसमें कोई शक नहीं है कि इसके बावजूद श्रीलंका और नेपाल जैसे कुछ देश एहसान फरामोशी कर रहे हैं लेकिन उनके लिए आने वाला भविष्य चीन की ख़तरनाक चुनौतियां लेकर आने वाला है।

इसलिए हमें वैक्सीन मैत्री पर सवाल उठाने से ज्यादा ध्यान इस बात पर देना होगा कि हमारे पास जो वैक्सीन उपलब्ध हैं, उनकी तनिक भी बर्बादी न हो, क्योंकि बर्बादी में कमी ही बचत का पर्याय है।

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