देश में कोरोना वैक्सीन का टीकाकरण अभियान अगले चरण में जाने वाला है। 1 मई से कोरोना की वैक्सीन सभी वयस्कों को लगने के लिए उपलब्ध हो जाएगी। बड़ी आबादी के टीकाकरण को ध्यान में रखते हुए सीरम इंस्टिट्यूट और भारत बॉयोटेक वैक्सीन उत्पादन को बढ़ा रहे हैं किन्तु इसी बीच कांग्रेस के ओर से वैक्सीन के दाम को लेकर आरोप प्रत्यारोप तेज हो गया है।
सीरम इंस्टिट्यूट द्वारा वैक्सीन का जो दाम तय हुआ है उसके अनुसार केंद्र को राज्यों की अपेक्षा सस्ती वैक्सीन मिलेगी। इसे लेकर विपक्षी दल केंद्र सरकार को घेर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मांग की जा रही है कि वह इस मामले में हस्तक्षेप कर वैक्सीन का दाम कम करवाएं एवं राज्यों को उसी दाम पर वैक्सीन उपलब्ध हो जिसपर केंद्र को हो रही है।
इसे लेकर कांग्रेस वर्किंग कमेटी की चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी है। उन्होंने आरोप लगाया है कि सरकार ने भारत के युवाओं के प्रति अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया है कि आम नागरिकों को वैक्सीन की ऊंची कीमत चुकानी होगी तथा वैक्सीनेशन की प्रक्रिया राज्यों के आर्थिक संसाधनों को चूस लेगी। उन्होंने प्रश्न उठाया कि एक ही वैक्सीन का दाम केंद्र सरकार और राज्य सरकार के लिए अलग अलग कैसे हो सकता है?
Congress chief writes to PM over new #COVID19 vaccination policy for inoculation of people b/w 18-45 yrs of age
Letter reads "Policy implies GoI has abdicated responsibility to provide free vaccination for these citizens…Urge you to intervene & reverse ill-considered decision" pic.twitter.com/5jMypGgTmh
— ANI (@ANI) April 22, 2021
हमने अपने एक लेख में पहले ही बताया है कि क्यों केंद्र की अपेक्षा राज्य सरकारों को वैक्सीन के लिए अधिक धन देना पड़ रहा है। केंद्र द्वारा ऑर्डर दिए गए डोज की संख्या राज्यों से कहीं अधिक है। ऐसे में दाम में अंतर आना स्वाभाविक है। दूसरा कारण यह है कि केंद्र ने वैक्सीन निर्माताओं को अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए पहले ही आर्थिक मदद दे रखी है।
यह मदद खरीदी जाने वाली वैक्सीन के भुगतान से अलग है। ऐसे में स्पष्ट रूप से वैक्सीन निर्माता, केंद्र को सस्ती वैक्सीन देंगे।
वैक्सीन बनाने के बाद वैक्सीन को एक जगह से दूसरे जगह पहुंचाने का खर्च अलग होता है। वैक्सीन को ठंडे वातावरण में ले जाने के लिए विशेष ट्रक की आवश्यकता होती है, जिनमें रेफ्रिजरेशन की सुविधा होती है। केंद्र को जो वैक्सीन भेजी जाएगी उसकी डिलेवरी एक ही स्थान पर होगी, फिर केंद्र इसका वितरण करेगा, जबकि राज्यों के संदर्भ में हर राज्य को अलग-अलग वैक्सीन पहुंचाने का काम सीरम इंस्टिट्यूट को ही करना है। ऐसे में राज्यों के लिए दाम अधिक होना बहुत सामान्य है किन्तु सोनिया गांधी सहित गांधी परिवार के दरबारियों और लेफ्ट लिबरल जमात को यह बात समझने में दिक्कत आ रही है।
रही बात प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप की तो प्रधानमंत्री ने कहा है कि राज्य 50% वैक्सीन, निर्माता कंपनी से सीधे खरीदें। ऐसे में निर्माता कंपनी से दाम कम करने को लेकर बात करने की जिम्मेदारी राज्यों की है। कोरोना की शुरुआत में जब केंद्र सरकार एकीकृत राष्ट्रीय योजना पर चलने को बोल रही थी तब यही कांग्रेस और लेफ्ट लिबरल संघीय ढांचे की दुहाई दे रहे थे।
सरकार पर आरोप लगा रहे थे कि ‘सरकार अपने पास शक्ति का केंद्रीकरण चाहती है और राज्य सरकारों को केंद्र पर निर्भर बनाना चाहता है।’
अब जब केंद्र सरकार ने जिम्मेदारी राज्यों को दी है तो फिर से संघीय ढांचे की दुहाई देकर हस्तक्षेप करने को बोला जा रहा है।
सोनिया गांधी को भाजपा शासित राज्यों को एक आदर्श की तरह देखना चाहिए, जिन्होंने अपने संसाधनों पर फ्री वैक्सीनेशन करने का वादा किया है। छत्तीसगढ़ पहला कांग्रेस शासित प्रदेश है जो भाजपा राज्यों से सीख लेते हुए फ्री वैक्सीनेशन अभियान के लिए आगे आया है।
झारखंड ने भी एलान किया है कि वह अपने लोगों को राज्य सरकार के खर्च पर मुफ्त वैक्सीन उपलब्ध करवाएंगे।
झारखंड जैसा छोटा राज्य जब मुफ्त टीकाकरण कर सकता है तो अन्य कांग्रेस शासित प्रदेश क्यों नहीं कर सकते। कांग्रेस समझ नहीं पा रही कि वैक्सीन के लिए केंद्र से मदद मांगे, दाम को लेकर विवाद पैदा करें या फ्री वैक्सीन की घोषणा करें। भाजपा सरकारों के एलान ने कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों को बैकफूट पर धकेल दिया है।
ऐसे में सोनिया को प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखने के बजाए, अपने मुख्यमंत्रियों से बात करनी चाहिए। उन्हें कहना चाहिए कि वैक्सीनेशन के UP मॉडल को अपनाएं। UP की आबादी 22 करोड़ है, लेकिन योगी आदित्यनाथ ने केंद्र से मदद नहीं मांगी है। सोनिया और उनके दरबारियों को योगी से सीख लेनी चाहिए।