क्यों थर्र-थर्र काँपती थी उत्तर प्रदेश की जनता मुख्तार अंसारी

मुख्तार अंसारी

PC: YesPunjab.com

मुख्तार अंसारी, पूर्वांचल की धरती पर अपराध को प्रोफेशन बनाने वाला आदमी है, जिसके नाम से पूर्वांचल का हर व्यक्ति परिचित है। इन दिनों मुख़्तार की चर्चा मीडिया में बनी हुई है क्योंकि उसे लेकर पंजाब की कांग्रेस और उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार में तलवार खिंच गई थी। योगी सरकार मुख्तार को ट्रायल के लिए उत्तर प्रदेश की जेल में शिफ्ट करना चाहती थी लेकिन कांग्रेस सरकार की पूरी कोशिश थी कि कैसे भी करके मुख्तार को पंजाब से यूपी न ले जाया जा सके।

भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या समेत हत्या के अन्य आरोपों , सांप्रदायिक हिंसा भड़काने, धमकी, वसूली जैसे कई संगीन अपराधों का मुख्य आरोपी मुख्तार 1980 के दशक में जरायम कि दुनिया में आया। गाजीपुर के सबसे प्रभावशाली राजनीतिक परिवार में जन्मे मुख़्तार अंसारी कि मित्रता कॉलेज के दिनों में साधू सिंह से हुई। मुख्तार के दादा मुख़्तार अहमद अंसारी 1927-28 में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। मुख्तार अहमद अंसारी मुस्लिम लीग से भी जुड़े थे और उसके प्रभावशाली नेता रहे थे। 1916 लखनऊ पैक्ट में उनकी प्रमुख भूमिका थी। माफिया डॉन मुख़्तार के नाना प्रसिद्ध सैन्य अधिकारी ब्रिगेडियर उस्मान थे, जो पकिस्तान से हुई नौशेरा कि लड़ाई के हीरो थे। जब गाजीपुर में कम्युनिस्ट पार्टी का प्रभाव बढ़ा तो मुख़्तार के पिता SubhanAllah अंसारी कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ गए।

ऐसे रसूखदार परिवार में जन्में मुख्तार ने अपराध कि दुनिया को क्यों चुना यह वही जानता होगा। लेकिन यह तय है कि मुख्तार को उसके पारिवारिक रसूख का फायदा मिला। वह साधू सिंह के साथ मिलकर उस समय पूर्वांचल के मुख्य अपराधी मखनु सिंह के गैंग में शामिल हो गया।

इसके बाद मुख्तार ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1980 के दौर में पूर्वांचल के विकास के लिए सरकार रेलवे से लेकर रोड कंस्ट्रक्शन के लिए, ठेके बाँट रही थी। ठेकों पर कब्जे के लिए ‘ऑर्गनाइज़्ड क्राइम’ शुरू हुआ, और पूर्वांचल में गैंग वॉर शुरू हो गई। मखनु सिंह गैंग के मुख्य शत्रु साहब सिंह गैंग के लोग थे। इसी गैंग वॉर में मुख्तार का कद धीरे-धीरे बड़ा होने लगा क्योंकि गाजीपुर की मुहम्मदाबाद विधानसभा सीट से मुख्तार के बड़े भाई अफजाल अंसारी विधायक थे। अफजाल अंसारी इस समय बसपा की ओर से गाजीपुर से सांसद हैं।

अफजाल 1985 से लगातार यहां जीतते आ रहे थे। पारिवारिक इतिहास और क्राइम से कमाए अकूत धन की बदौलत मुख्तार ने अपनी छवी रॉबिनहुड की बना ली। वह अपने आप को गरीबों का मसीहा बनाकर पेश करने लगा, लेकिन इसके साथ ही उसके अपराध का ग्राफ भी बढ़ता गया। किस्सों के अनुसार 1991 में मुख़्तार के इशारे पर बनारस के बाहुबली अवधेश राय की हत्या करवा दी गई। अवधेश राय के भाई अजय राय आज कांग्रेस के नेता हैं, वहीं कांग्रेस जो मुख्तार को कानूनी कार्रवाई से बचाने के लिए जी जान से लगी थी।

जिस समय मुख्तार मखनु सिंह गैंग में शामिल हुआ, उसी समय बृजेश सिंह साहब सिंह गैंग में शामिल हुआ। बृजेश सिंह अपने पिता कि हत्या का बदला लेने के लिए अपराध कि दुनिया में आया था। जैसे मखनु गैंग में मुख्तार अंसारी का वर्चस्व दिन प्रतिदिन बढ़ रहा था वैसे ही बृजेश साहब सिंह गैंग में आगे बढ़ रहा था। मखनु और साहब सिंह गैंग कि दुश्मनी ही बाद में पूर्वांचल कि सबसे बड़ी दुश्मनी में बदल गई, मुख्तार और बृजेश की दुश्मनी। यह दुश्मनी निजी कारणों से नहीं पूर्णतः वर्चस्व और धन कि लड़ाई है। ठेको पर कब्जा इसके मूल में है।

बृजेश ने मुख्तार के वर्चस्व और राजनीतिक रसूख को मात देने के लिए  भाजपा विधायक कृष्णानंद राय का समर्थन किया। कृष्णानंद राय अवधेश राय के रिश्तेदार थे और उनकी भी मुख्तार और उसके भाई अफजाल से दुश्मनी थी। कृष्णानंद ने अफजाल को उनके गढ़ में चुनौती दी, और मुहम्मदाबाद कि सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा। बृजेश ने कृष्णानंद राय को समर्थन दिया। अफजाल पराजित हुए और कृष्णानंद राय मुहम्मदाबाद से विधायक बन गए।

कृष्णानंद राय कि जीत मुख्तार अंसारी की शक्ति को खुली चुनौती थी। राय के कारण मुख्तार पर दबाव इतना बढ़ गया था की अपराध कर स्वतन्त्र घूमने वाला मुख्तार जेल में बंद हो गया था। ऐसे में मुख्तार ने उन्हें रस्ते से हटाने की ठान ली। 25 नवम्बर 2005 को कृष्णानंद राय अपने पैतृक गांव से बगल के एक गांव में एक क्रिकेट टूर्नामेंट के उद्घाटन में शामिल होने के लिए निकले थे। UP STF ने उन्हें चेतावनी दी थी की उनकी जान को खतरा है। कृष्णानंद राय अपने गढ़ में थे, इसलिए उन्होंने अपनी बुलेट प्रूफ गाड़ी ले जाना उचित नहीं समझा। पूर्वांचल की किंवदंतियों के अनुसार सारा खेल वर्चस्व का था और राय नहीं चाहते थे की उनका विरोधी गैंग यह समझे की वह अपने घर में भी भयभीत रहते हैं।

उद्घाटन समारोह खत्म होने के बाद राय वहां से निकले और उनकी गाड़ी को कच्चे रस्ते पर सामने से आई एक सिल्वर ग्रे SUV ने उनका रास्ता रोक दिया। राय की गाड़ी सबसे आगे थी और पीछे दूसरी गाड़ियां थी इसलिए उनकी गाड़ी न आगे जा सकती थी न पीछे, कच्चे रस्ते में दाएं बाएं मुड़ने की जगह नहीं थी। सामने खड़ी SUV से सात आठ आदमी उतरे जिनके हाथों में AK 47 थी। कहा जाता है कृष्णानंद राय की गाड़ी पर कुल 500 से अधिक गोलियां चली, मौके पर राय और उनके 6 साथी मारे गए। 7 लोगों की डेडबॉडी से कुल 67 गोलियां प्राप्त हुई। पारम्परिक हिन्दुओं की तरह राय शिखा रखते थे, उनको मारने आये एक अपराधी ने उनकी वह शिखा काट ली और उसे अपने साथ ले गया।

बाद में इस हत्याकांड का आरोप मुख्तार अंसारी उसके बड़े भाई अफजाल, उसके गुर्गे मुन्ना बजरंगी और अन्य साथियों पर आया। किम्वदंतियों के अनुसार छोटी मुन्ना बजरंगी ने काटी थी जो वह मुख्तार को भेंट स्वरूप देना चाहता था। 500 गोलियां एक संदेश था की मुख्तार से दुश्मनी का अंजाम क्या होता है।

मुख़्तार ने 2017 में जो पर्चा भरा था उसमें उसने स्वयं स्वीकार किया है की उसपर 16 संगीन अपराध हैं। लेकिन मुख्तार के अपराधों की संख्या इससे बहुत अधिक है। राजनीतिक शक्ति के कारण उसपर कभी कोई अपराध सिद्ध ही नहीं हुआ, केस चले भी तो मुख्य गवाह या तो बयान पलट लेते हैं या रहस्यमयी परिस्थितियों में मर जाते हैं।

यहाँ तक की मुख्तार पर कार्रवाई करने वाले वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी नौकरी छोड़ देते हैं। ऐसी कहानी पुलिस अधिकारी शैलेन्द्र सिंह की है, जिन्होंने मुख्तार पर LMG की सौदेबाजी में शामिल होने के कारण पोटा लगा दिया था। इसके बाद उन्हें तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की नाराजगी का सामना करना पड़ा। मुलायम ने मुख्तार को बहकाने के लिए स्वयं मामले में हस्तक्षेप किया। अंततः शैलेन्द्र ने नौकरी छोड़ दी, लेकिन वह तब भी शांति से नहीं जी सके। उनपर बेबुनियाद आरोप लगाए गए और जेल तक जाना पड़ा।

2005 में जब मऊ में दंगे हुए तो मुख्तार ने खुलकर मुस्लिम दंगाइयों को प्रोत्साहन दिया था। खुली जीप में मुख्तार अंसारी पूरे मऊ में घुमा था जिससे मुस्लिम दंगाइयों का मनोबल बढ़ा था। तब गोरखपुर से सांसद योगी आदित्यनाथ वहां पहुंचे तो, उन्हें मऊ में घुसने नहीं दिया गया। 2008 में योगी के काफिले पर हमला हुआ और आग लगाने की कोशिश हुई।

मुख़्तार का वर्चस्व इतना था की गाजीपुर जेल में उसके लिए तालाब खुदवाया गया था, जहँ बैठकर वह मछली पकड़ता था। शाम को गाजीपुर डीएम के साथ बैडमिंटन खेलता था।

मुख्तार को सपा, बसपा और कांग्रेस से बराबर मदद मिलती रही। सरकार सपा की रहे या बसपा की मुख्तार का वर्चस्व कायम रहा। किन्तु अब उत्तर प्रदेश में योगी राज है और कभी गाजीपुर जेल में बैठकर मछली पकड़ने वाला मुख्तार अंसारी आज बांदा जेल में बंद है। उसकी 192 करोड़ की संपत्ति नेस्तनाबूत कर दी गई है। सरकार उसे विधायक के पद से बरखास्त करने की तयारी में है। पूर्वांचल में सामानांतर सरकार चलाने वाले मुख़्तार को योगी ने घुटनों पर ला दिया है।

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