“बंगाल में कास्ट नहीं, क्लास फैक्टर महत्वपूर्ण”, इस धारणा ने पश्चिम बंगाल में हवा का रुख ममता के खिलाफ कर दिया है

पश्चिम बंगाल

पश्चिम बंगाल में दो फेज के चुनाव हो चुके हैं और जिस संख्या में मतदाता चुनाव में हिस्सा ले रहे हैं उससे देखते हुए बीजेपी की जीत सुनिश्चित लग रही है। आखिर ऐसा क्या कारण रहा कि लगभग एक दशक से सत्ता में काबिज ममता बनर्जी इस बार पश्चिम बंगाल की जनता की नब्ज टटोलने में नाकामयाब थी? यह कुछ और नहीं बल्कि वहां शासन करने वाली पार्टियों की एक गलती और वह गलती है बंगाल में जातिगत राजनीति होने के बजाय वर्ग यानि class आधारित राजनीति की धारणा में भरोसा। इसी भरोसे के कारण ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में आये परिवर्तन को भापने में असफल रही और आज हार के मुहाने पर खड़ी है।

स्वतंत्रता के बाद से अगर पश्चिम बंगाल का चुनावी इतिहास देखा जाये तो यह देश के बाकि हिस्सों से अलग था। एक तरफ जहाँ अन्य राज्य चाहे वो पंजाब हो या उत्तर प्रदेश या कर्नाटका, सभी जगह जाति राजनीति का एक प्रमुख हिस्सा होता था लेकिन पश्चिम बंगाल में राजनीति caste के जगह Class के ऊपर निर्धारित थी। जब पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्ट पार्टी का शासन था तब भी समाज गरीब आमिर में बंटा हुआ था। वहीं ममता बनर्जी का भी उत्थान अमीरी गरीबी के नंदीग्राम जैसे आन्दोलन की नींव पर ही हुआ।

जब बीजेपी ने पश्चिम बंगाल में प्रासंगिकता पाने से ऊपर उठ कर चुनाव के लिए काम करना शुरू किया तो सबसे पहले समाज के हासिये पर स्थित जनता को मजबूत करना और उनका भरोसा जितना शुरू किया। बीजेपी ने सबसे पहले पश्चिम बंगाल में राज्य सरकार द्वारा लगातार नजरंदाज हुए ओबीसी तथा अन्य पिछड़े दलों को मुख्यधारा से जोड़ना शुरू किया। बीजेपी के इसी मेहनत ने रंग ली और पहले 2018 के पंचायत चुनावों फिर 2019 के आम चुनावों में भारी संख्या में समर्थन मिला। पिछले चुनावों को देखा जाये तो कभी TMC के वोट बैंक रहे SC, ST और OBC 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा की तरफ आ चुके हैं, जिससे बीजेपी ने TMC के कुछ गढ़ों में सेंध लगायी थी। SC / ST वोटों के दम पर ही बीजेपी ने जंगलमहल, उत्तर 24 परगना और नादिया जिलों में TMC को हराने में सफलता पाई थी। यानी बीजेपी ने पश्चिम बंगाल के चुनावों को ठीक उसी रस्ते पर ला दिया है जैसे पुरे देश में राजनीति होती है।

हालाँकि अंत समय में तृणमूल कांग्रेस द्वारा अपने घोषणा पत्र में अन्य पिछड़ी जातियों के रूप में महिष्य, तामुल, साह और तेली के लिए आरक्षण शामिल करने का निर्णय कर इन्हें लुभाने की भरपूर कोशिश की गयी है। जिस तरह से ममता बनर्जी ने मुसलमानों को अपने पक्ष में रखने के लिए महिष्यों को नजर अंदाज किया है, उससे तो यही लगता है कि उनका वोट TMC को नहीं मिलने वाला। जनता को भी ममता के तुष्टिकरण की राजनीति का ज्ञान पहले से है कि किस तरह ममता बनर्जी सरकार ने 2012 में पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग विधेयक पारित किया था, जिसमें ओबीसी आरक्षण में कुछ मुस्लिम समुदायों को शामिल करने के लिए मार्ग प्रशस्त किया गया था। नियम के अनुसार, सिद्दीकी और सईद को छोड़कर सभी मुस्लिम समुदायों को सूची में ओबीसी ए या ओबीसी बी के रूप में शामिल किया गया था। इससे उन्हें नौकरी मिलनी शुरू हो गयी और हिन्दू पिछड़ा वर्ग गरीब का गरीब ही रह गया।अब BJP ने महिष्य समाज को OBC स्टेटस की वर्षों पुराने मांग को मेनिफेस्टो में शामिल किया है।

महिष्य दक्षिण पूर्व और पश्चिम मिदनापुर, हावड़ा, हुगली, दक्षिण 24 परगना और पूर्व और पश्चिम बर्धमान सहित दक्षिण बंगाल के कई जिलों में सबसे बड़े और महत्वपूर्ण जाति समूह है। इन जिलों और नंदीग्राम के महत्वपूर्ण निर्वाचन क्षेत्र में भी यह प्रमुख जाति है, जहां तृणमूल कांग्रेस की उम्मीदवार ममता बनर्जी भाजपा में सुवेन्दु अधिकारी का सामना कर रही हैं। बता दें कि राज्य में करीब 62 OBC ग्रुप्स हैं। उत्तर बंगाल के राजबोंगशी अपनी अलग पहचान के लिए लंबे समय से संघर्ष कर रहे हैं। राजबोंगशी समुदाय के सबसे अहम नेताओं में से एक अनंत राज महाराज अब BJP के साथ हैं।

जिस तरह से ममता बनर्जी ने तुष्टिकरण की राजनीति के अवाला निजी क्षेत्र को राज्य में आने से रोका है उससे न तो नौकरी पैदा हुई और न ही विकास हुआ। इसका सबसे अधिक खामियाजा इन पिछड़ी जातियों को भुगतना पड़ा। उनके पास न तो आरक्षण था और न ही राज्य सरकार का समर्थन। ऐसे में ओबीसी, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए राज्य सरकार की नौकरियों में आरक्षण बीजेपी द्वारा लाया गया एक बेहद संवेदनशील मुद्दा था।

पश्चिम बंगाल की राजनीति के इस बदलते स्वरुप को तथा लोगों के भीतर कई वर्षों के गुस्से को भांपने में ममता बनर्जी असफल रहीं। वह यही सोचती रहीं कि आज भी उनके मुस्लिम तुष्टिकरण और class difference को मुद्दा बना कर फिर से सत्ता हासिल कर लेंगी। परन्तु जनता तो अब उनके प्रताड़ना से जाग चुकी है और अपने अधिकारों को पहचान कर उसे पाना चाहती है जिसके लिए सत्ता परिवर्तन सबसे आवश्यक है।

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