“फिलिस्तीन किंग मेकर इजरायल के लिए कोई मुद्दा नहीं है”, नेतन्याहू की वापसी तय लग रही है

इजरायल में हाल ही में सम्पन्न हुए चुनावों के बाद जो राजनीतिक समीकरण बन रहे हैं उन्हें देखकर लगता है कि नेतन्याहू की वापसी लगभग तय है। इसका कारण इजराइली नेता Mansour Abbas द्वारा हाल में दिया गया भाषण है। बता दें कि Mansour Abbas को चुनाव परिणाम आने के बाद से किंगमेकर माना जा रहा है और उन्होंने अपने बयान से वर्तमान प्रधानमंत्री नेतन्याहू के साथ सरकार बनाने के संकेत दिए हैं।

23 मार्च को सम्पन्न हुए इजरायल के चुनाव पिछले तीन चुनावों की तरह त्रिशंकु परिणाम लेकर आए हैं, किसी गठबंधन को इतनी सीट नहीं मिली है कि वह अपने दम पर सरकार बना सके। यह चुनाव नेतन्याहू पर ही केंद्रित था, जहाँ एक ओर नेतन्याहू और उनका गठबंधन पुनः सरकार में वापसी के लिए चुनाव लड़ रहे थे, वहीं उनके विरोधी खेमे का एजेंडा उन्हें किसी भी प्रकार वापसी करने से रोकना था। लेकिन चुनाव परिणाम आने पर नेतन्याहू के गठबंधन को 52 और विरोधी खेमे को 57 सीट मिली है, जबकि बहुमत के लिए 61 सीटों की आवश्यकता है।

अब सत्ता की चाभी दो दलों के हाथों में है। Yamina दल के पास 7 सीट हैं और Mansour Abbas की पार्टी को 5 सीट मिली है। महत्वपूर्ण यह है कि Mansour Abbas की पार्टी, जो मुख्यतः इजरायल की अरब आबादी की एकमात्र प्रवक्ता के रूप में जानी जाती है। यदि अब्बास नेतन्याहू को समर्थन देंगे तो यह इजराइली राजनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव होगा, क्योंकि अब तक इजरायल की फिलिस्तीनी अरब आबादी नेतन्याहू का पुरजोर विरोध करती रही है। अब तक इस वर्ग के लिए स्वतंत्र फिलिस्तीन मुख्य मुद्दा रहा है, किंतु अब्बास ने अपने बयान में एक बार भी स्वतंत्र फिलिस्तीन के मुद्दे को नहीं उठाया, बल्कि अपने भाषण के जरिए तनाव कम करने की कोशिश की।

अब्बास ने अपने हालिया में कहा है कि “यह बदलाव का समय है”। उन्होंने अपने बयान में शांति और सामंजस्य पर जोर दिया। उन्होंने कहा हमारे बीच “जितनी समानताएं हैं, वह उन भिन्नताओं से बहुत अधिक है जो हमें बांटती है।” अब्बास का बयान इसलिए इतना महत्वपूर्ण है क्योंकि इजरायल की स्थापना से लेकर अब तक इजरायल में यहूदियों और फिलिस्तीनी मुसलमानों के बीच समझौता नहीं हो सका है।

इजरायल की स्थापना के बाद बहुत से फिलिस्तीनी वहीं रुके रहे और शरणार्थी कैम्प नहीं गए, आज इनकी आबादी करीब 20% है। किंतु इन्हें अब तक राजनीतिक दलों द्वारा अछूत माना गया था। इसका बड़ा कारण फिलिस्तीनी आबादी का कट्टरपंथ की ओर झुकाव था। अब्बास की पार्टी भी आतंकी संगठन हमास की विचारधारा से प्रेरित रही है। किंतु हाल में नेतन्याहू को मिली सफलता ने सम्भवतः अब्बास को अपनी सोच बदलने पर मजबूर किया है।

अब्राहम एकॉर्ड के जरिए इजराइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने प्रमुख अरब देशों के साथ संबंध सामान्य कर लिए हैं। शरणार्थी फिलिस्तीनीयों की सरकार द्वारा वेस्ट बैंक पर हो रहे निर्माण को रोकने की कोशिशें लगातार नाकामयाब हो रही हैं। नेतन्याहू बेझिझक वेस्ट बैंक को लेकर अपनी योजना लागू कर रहे हैं और इन इलाकों पर कब्जा दृढ़ कर रहे हैं। ऐसे बदलते माहौल में कोई भी दल चाहकर भी नेतन्याहू द्वारा तय किए जा रहे नियमों से इतर राजनीति नहीं कर पा रहा है। आज फिलिस्तीन एक खयाली पुलाव बनकर रह गया है, क्योंकि अब फिलिस्तीन के मुद्दे पर मुस्लिम देशों से वैसा समर्थन नहीं मिल सकता जैसा पिछली शताब्दी तक मिलता था।

फिलिस्तीन कोई महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं है यह बात इस चुनाव में भी स्पष्ट हो गई। यह चुनाव नेतन्याहू की नीतियों के बजाए, उनकी छवि को लेकर हुआ था। चुनाव का मुख्य मुद्दा नेतन्याहू पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप थे, न कि वेस्ट बैंक की नीति, विदेश नीति या राजधानी परिवर्तन को लेकर नेतन्याहू का फैसला। कहने का मतलब यह है कि आज इजरायल का कोई भी दल, नेतन्याहू की नीति के विपरीत नहीं चलना चाहता, और अब्बास का भाषण इस बात की पुष्टि करता है।

चुनाव परिणाम में नेतन्याहू को मिला समर्थन उनकी लोकप्रियता का प्रमाण है। भ्रष्टाचार का आरोप लगने और जांच शुरू होने के बाद भी नेतन्याहू का गठबंधन 52 सीट ले आया है। नेतन्याहू का गठबंधन उनके नेतृत्व में सरकार बनाने को तत्पर है वहीं विपक्षी खेमे में इसबात को लेकर आम राय नहीं बन पा रही कि प्रधानमंत्री किसे बनाया जाए। विपक्षी दलों में भ्रम की स्थिति बनी हुई है, और इसी बीच अब्बास ने अप्रत्यक्ष रूप से नेतन्याहू का समर्थन किया है। यदि वह साथ आते हैं तो नेतन्याहू का पुनः प्रधानमंत्री बनना लगभग तय है। यदि ऐसा हुआ तो फिलिस्तीन का मुद्दा इजराइली राजनीति में पूर्णतः अप्रासंगिक हो जाएगा।

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