पीयूष गोयल पर निशाना साधने चले सिद्धू पंजाब सरकार की किसान-विरोधी नीतियों का भांडा फोड़ बैठे

ज़मीन के रिकोर्ड्स अपडेट करने की बजाय केंद्र के खिलाफ एजेंडा चलाने के लिए कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सिद्धू को मैदान में उतारा था, यहीं सारी बाज़ी पलट गयी!

पंजाब

पिछले कई महीनों से खबरों से दूर रहे कांग्रेस के विवादित नेता नवजोत सिंह सिद्धू एक बार विवादों के साथ ही चर्चा में लौटे हैं। अब की बार उन्होंने तथ्यों की जांच पड़ताल किए बिना सीधे उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मामलों के मंत्री पीयूष गोयल पर निशाना साधा है और सरकार द्वारा सीधे किसानों के खाते में पैसा भेजने की योजना की आलोचना की है। बता दें कि हाल ही में केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने एक पत्र लिखकर पंजाब सरकार से पंजाब के किसानों के land records को revenue department के साथ जोड़ने की अपील की थी, ताकि फसलों की MSP पर खरीद के बदले किसानों का पैसा सीधा उनके बैंक खातों में भेजा जा सके!

इस पत्र पर प्रतिक्रिया देते हुए नवजोत सिद्धू ने कहा था “प्रदेश में 24 प्रतिशत बुआई ठेके पर ज़मीन लेकर की जाती है, ऐसे में उन सभी किसानों के पैसा कहाँ से आएगा, जिनके पास खुद की ज़मीन नहीं है।” साथ ही सिद्धू ने यह भी आरोप लगाया कि सीधे किसानों के खाते में पैसे भेजने की योजना सिर्फ और सिर्फ किसान प्रदर्शन को दबाने के लिए ही लायी गयी है।

आइए अब तथ्यों की बात करते हैं! पहली बात यह है कि किसानों के लिए Direct Payment स्कीम का मुद्दा वर्ष 2012 से ही लंबित पड़ा है। यह योजना रातों रात, आनन-फानन में किसानों को बहकाने के लिए नहीं लायी गयी है। NDA सरकार के पहले भी सरकारें इस मुद्दे पर चर्चा करती रही हैं।

दूसरी बात यह कि पिछले कुछ सालों में इस योजना को लागू करने से संबन्धित आंकड़ों को मुहैया कराने में पंजाब राज्य ने ही सबसे ज़्यादा आनाकानी की है। पिछले आठ सालों में कांग्रेस और अकाली दल के नेतृत्व वाली सरकारों ने कभी किसानों के Land Records अपडेट  करने पर विचार नहीं किया। दूसरी ओर, बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों ने रिकोर्ड्स को update करने में कोई कोताही नहीं बरती! यह इस बात का भी प्रमाण है कि कैसे पंजाब में शुरू से ही भ्रष्टाचार का बोलबाला रहा है।

मोदी सरकार इस संबंध में पंजाब सरकार को कई बार पत्र भी लिख चुकी है। जनवरी 2019 में जब राम विलास पासवान देश के खाद्य मंत्री का पदभार संभाल रहे थे, तब भी केंद्र ने पंजाब को बाकी राज्यों की तरह अपने Payment system को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए कहा था। हालांकि, पंजाब के पास हर बार ऐसा ना करने के लिए बहाने तैयार होते थे। पंजाब सरकार का हर बार बहाना होता था कि उसके पास किसानों की ज़मीन से जुड़े आंकड़े नहीं है। केंद्र ने कई बार पंजाब को रियायत भी प्रदान की, लेकिन पंजाब सरकार ने हठधर्मी नहीं छोड़ी!

वर्ष 2018 और वर्ष 2019 में केंद्रीय वित्त मंत्रालय की ओर से भी पंजाब को कई बार टोका गया, लेकिन आढ़तियों और बिचौलयों के दबाव में कभी पंजाब ने किसानों की ज़मीन के रिकोर्ड्स को update करना ज़रूरी नहीं समझा। बता दें कि मंडी सिस्टम के तहत आढ़तियों को सरकार से ढाई प्रतिशत की कमीशन मिलती है। पूरी प्रक्रिया के लिए ये आढ़ती सरकार से हर साल कमीशन के रूप में 1400 करोड़ रुपये खाते हैं, जिसमें से बड़ा हिस्सा मंत्रियों और बाबुओं के साथ भी साझा किया जाता है। ऐसे में ये सभी भ्रष्ट लोग नहीं चाहते कि मौजूदा मंडी सिस्टम खत्म हो, क्योंकि ऐसे में इनसे ये 1400 करोड़ रुपये छिन जाएंगे।

Food Corporation of India यानि FCI ने हाल ही में कहा था कि वह इस वर्ष से मंडी में MSP पर खरीदी जाने वाली फसलों के लिए सीधे किसानों के खाते में ही पैसे ट्रांसफर करेगी। ऐसे में अब पंजाब सरकार को किसानों के land records को अनाज खरीद पोर्टल से जोड़ना ही होगा, तभी उन्हें पैसा मिल पाएगा।

दूसरी ओर लीज़ पर या ठेके पर बुवाई करने वाले किसानों के लिए भी पीयूष गोयल पंजाब से हरियाणा के नक्शे-कदम पर चलने की अपील कर चुके हैं। 27 मार्च को मुख्यमंत्री अमरिंदर को लिखे एक पत्र में पीयूष गोयल ने बताया था “पंजाब को हरियाणा की तरह तंत्र विकसित करना चाहिए, जहां पर ज़मीन के मालिक ठेकेदार किसानों का ब्यौरा पोर्टल पर ही पंजीकृत कर सकते हैं। साथ ही हरियाणा सरकार ने यह भी सुनिश्चित किया है कि Tenancy Act के तहत कोई ठेकेदार पोर्टल के दस्तावेजों के आधार पर ज़मीन पर अपना दावा नहीं कर पाएगा।”

इस सब के बावजूद पंजाब की अमरिंदर सरकार ने 3 अप्रैल को लिखे पत्र में बेशर्मी के साथ फिर केंद्र सरकार से गुहार लगाई कि उनके राज्य में नए Payment System को लागू नहीं किया जाये और मौजूदा प्रक्रिया को ही जारी रखा जाये। अब लगता है कि पंजाब सरकार ने अपनी बेशर्मी को छुपाने के लिए नवजोत सिंह सिद्धू को मैदान में खुला छोड़ दिया है, जो बिना तथ्यों की जांच किए केंद्र को निशाने पर ले रहे हैं। हालांकि, इस कदम के चलते अब वे अपनी ही पार्टी की किसान-विरोधी नीतियों को एक्स्पोज़ कर बैठे हैं।

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