निधि पासवान और अन्य: यदि जनसांख्यिकी ही भविष्य है तो उत्तराखंड का भविष्य बहुत अधिक उज्ज्वल नहीं है

क्या कुछ समय बाद कश्मीर बन सकता है उत्तराखंड?

हाल ही में रूड़की में एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है। एक लड़की की सिर्फ इसलिए गला रेतकर हत्या की गई क्योंकि उसने एक लड़के के ‘प्रेम प्रस्ताव’ को ठुकरा दिया था। इस लड़की के साथ जो हुआ, उसे देखकर ये कहना गलत नहीं होगा कि उत्तराखंड भी जल्द ही कट्टरपंथी इस्लाम के गिरफ्त में आ सकता है। रूड़की में एक 19 वर्षी लड़की निधि पासवान के घर में घुसकर उसपर तीन लोगों ने हमला किया और फिर धारदार हथियार से गला रेतकर उसकी हत्या कर दी।

प्रारम्भिक सूत्रों के अनुसार हैदर नामक व्यक्ति निधि के पीछे पड़ा रहता था और उसपर निकाह का दबाव बना रहा था। लेकिन लाख धमकाने पर भी जब निधि नहीं मानी तो हैदर ने दो अन्य लोगों के साथ उसकी हत्या की योजना बनाई। लेकिन इसके पहले कि वह भाग पाता, स्थानीय लोगों ने उसे पकड़ लिया और पुलिस के हवाले कर दिया। लेकिन बात यहीं पर खत्म नहीं होती। निधि के साथ जो हुआ है, उससे स्पष्ट होता है की देवभूमि उत्तराखंड भी कट्टरपंथी इस्लाम के विष से अछूती नहीं है, और मुसलमानों की बढ़ती जनसंख्या अब इस राज्य के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है।

चाहे लव जिहाद हो या फिर अवैध धर्मांतरण, उत्तराखंड में मुसलमानों की जनसंख्या के साथ साथ कट्टरपंथी इस्लाम का प्रभाव दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। दिसंबर 2020 में उत्तराखंड में धर्म बदलकर विवाह करने का एक मामला सामने आया था, जिसमें दूल्हा दुल्हन समेत 4 लोग हिरासत में लिए गए थे।

लेकिन ये तो मात्र शुरुआत है, क्योंकि उत्तराखंड में जनसंख्या में भी अप्रत्याशित बदलाव आ रहा है। जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, जब 2001 में उत्तराखंड नया नया अस्तित्व में आया था, तब राज्य में मुसलमानों की संख्या कुल जनसंख्या की 10 प्रतिशत से कुछ अधिक थी लेकिन 2011 की जनगणना में तो तस्वीर कुछ और ही निकलकर सामने आई। जनगणना के नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में मुस्लिम समुदाय की आबादी कुल जनसंख्या की 13.9 प्रतिशत हो गई है।

हालांकि अभी जनगणना के स्तर से आधिकारिक आंकड़े जारी नहीं हुए हैं पर जो तस्वीर उभर कर सामने आई है वह विशेषज्ञों को सोचने पर मजबूर कर रही है।

अमर उजाला की रिपोर्ट के अनुसार, “उत्तराखंड के जनगणना आंकड़ों पर नजर डाले तो तस्वीर का दूसरा पक्ष भी खुलकर सामने आ रहा है। उधमसिंहनगर में दशकीय वृद्धि दर 33.40 प्रतिशत है। देहरादून के लिए यह दर 32.48 और हरिद्वार में 33.16 प्रतिशत है।यह तब है जबकि प्रदेश की औसत दशकीय वृद्धि दर कुल 17 प्रतिशत है। 2001 की जनगणना के मुताबिक प्रदेश में सबसे अधिक मुसलमा/न हरिद्वार में थे। यहां 4.78 लाख मुस्लिम समुदाय के लोग थे। इसके बाद उधमसिंहनगर का नंबर है। यह इस समुदाय की जनसंख्या करीब 2.55 लाख थी पर दशकीय वृद्धि दर उधमसिंहनगर की सबसे अधिक है”।

इसी रिपोर्ट में आगे बताया गया, “प्रदेश में मुस्लिम समुदाय की अधिकतर आबादी देहरादून, उधमसिंहनगर और हरिद्वार में सिमटी हुई है। लेकिन जनसंख्या बढ़ने की दशकीय वृद्धि दर प्रदेश के अन्य जिलों के मुकाबले कहीं अधिक है। हरिद्वार और उधमसिंहनगर में तो एक दशक में जनसंख्या वृद्धि दर प्रदेश की औसत दर से दो गुना अधिक है।उधमसिंहनगर से जुड़े हुए रामपुर, मुरादाबाद, बिजनौर, बरेली जिले हैं”।

ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा की देवभूमि उत्तराखंड पर भी कट्टरपंथियों की कुदृष्टि पड़ चुकी है। जब कुछ ही जिलों में जनसंख्या वृद्धि का ये हाल है, तो सोचिए यदि इन्हे पूरे उत्तराखंड में बसने दिया गया तो आगे क्या होगा। उत्तराखंड के वर्तमान प्रशासन के पास अभी भी समय है की वे इस समस्या को नियंत्रण में लाए, अन्यथा उत्तराखंड को कश्मीर में परिवर्तित होने में देर नहीं लगेगी।

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