SII ने Vaccines के दाम राज्य सरकारों को पहले ही बता दिये हैं, राज्यों का ध्यान पॉलिटिक्स पर ज़्यादा है

अब राज्यों में Vaccines की कमी हुई तो केंद्र सरकार उसकी जिम्मेदार नहीं होगी!

सीरम इंस्टिट्यूट

PC: India Today

एक मई से भारत में सभी वयस्क लोगों को कोरोना वैक्सीन लगना शुरू हो जाएगी। वैक्सीन लगने के मामले में भारत संख्या की दृष्टि से दुनिया में सबसे आगे है, किन्तु 138 करोड़ के लगभग की आबादी में अब भी केवल 13 करोड़ लोगों को ही वैक्सीन लग पाई है। भारत सरकार सभी नागरिकों को जल्द से जल्द वैक्सीन लगवाने के लिए नए प्लान के साथ सामने आई है, जिसके तहत राज्य सरकारों और निजी अस्पतालों को सीधे वैक्सीन खरीदने को कहा गया है।

50% वैक्सीन केंद्र सरकार खरीदेगी और शेष में राज्य सरकारें और निजी अस्पताल होंगे। सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा राज्य व निजी अस्पतालों को जो वैक्सीन उपलब्ध करवाई जा रही है, उसका दाम केंद्र को उपलब्ध करवाए जा रही वैक्सीन के दाम से अधिक है। इसे लेकर विपक्ष हमलावर हो गया है।

सीरम इंस्टिट्यूट अब तक जो वैक्सीन उपलब्ध करवा रहा था वह सीधे केंद्र को जा रही थीं। अभी सरकारी अस्पतालों में यह वैक्सीन मुफ्त में लग रही है जबकि निजी अस्पतालों में इसकी कीमत 250 रुपये है। अब तीसरे चरण में जब राज्य और निजी अस्पताल इसे सीधे खरीद सकेंगे तो इसकी कीमत राज्य के लिए 400 और निजी अस्पताल के लिए 600 रुपये तय हुई है।

कांग्रेस और वामपंथी दलों ने मांग की है कि राज्य और केंद्र को उपलब्ध होने वाली वैक्सीन के दाम एक जैसे हों। वायनाड सांसद राहुल गांधी ने व्यंग करते हुए कहा है कि “आपदा देश की, अवसर मोदी मित्रों का, अन्याय केंद्र सरकार का।” कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने “one nation, one price” योजना की बात की हैं। विपक्ष सीरम इंस्टीट्यूट की नीयत पर प्रश्न कर रहा है और दुष्प्रचार अभियान चला रहा है।

किंतु ये बातें कोरी बकवास और ओछी राजनीति है। ज़ाहिर तौर पर केंद्र को उपलब्ध होने वाली वैक्सीन सस्ती ही मिलेगी। इसके कई कारण हैं, सबसे बड़ा कारण वैक्सीन की मात्रा है। केंद्र, राज्य सरकारों अथवा निजी अस्पतालों से कहीं अधिक संख्या में वैक्सीन खरीद रहा है। ऐसे में केंद्र को मिलने वाली वैक्सीन का दाम कम होना स्वाभाविक है।

यह बात राज्यों और निजी अस्पतालों को उपलब्ध होने वाली वैक्सीन के दाम से भी साफ हो जाती है। राज्य सरकार को वैक्सीन 400 में मिल रही है जबकि निजी अस्पतालों को 600 में, यहाँ भी दाम का अन्तर है और यह अंतर भी वैक्सीन की खरीद की संख्या से ही निर्धारित हुआ है।

दूसरा कारण है कि केंद्र सीरम इंस्टिट्यूट और भारत बॉयोटेक को वैक्सीन निर्माण क्षमता में वृद्धि करने के लिए आर्थिक मदद दे रहा है। दोनों संस्थानों को क्रमशः 3000 करोड़ और 1500 करोड़ रुपये की मदद मिली है, जिससे वैक्सीन निर्माण में तेजी आ सके। यह धन उससे अलग है जो वैक्सीन की खरीद पर खर्च होगा। अब अगर केंद्र इन संस्थाओं को मदद दे रहा है तो केंद्र को मिलने वाली वैक्सीन का दाम भी कम ही होगा।

सबसे बड़ी बात है कि केंद्र जो भी वैक्सीन खरीदेगा वह भी राज्यों को ही दी जाएगी, क्योंकि भारत के वैक्सीनेशन को राज्यों द्वारा ही संचालित किया जा रहा है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारी या रूलिंग पार्टी के कार्यकर्ता वैक्सीन लगाने नहीं आएंगे। जैसे अब तक राज्य सरकारें इस अभियान को चला रही थीं आगे भी वही चलाएंगी। ऐसे में टकराव किस बात को लेकर है, यह समझ के परे हैं।

ऐसा भी नहीं है कि राज्यों के पास पर्याप्त फण्ड नहीं है। हाल ही में केंद्र ने राज्यों को GST में उनके हिस्से का 30,000 करोड़ रुपये हस्तानांतरित किया है। अब तक वित्तीय वर्ष 2020-21 में 70 हजार करोड़ रुपये दिए गए हैं।

उत्तर प्रदेश, बिहार, असम जैसे राज्यों ने यह घोषणा की है कि वह अपने फण्ड पर लोगों को फ्री वैक्सीन लगवाएंगे। कुल वैक्सीन का आधा हिस्सा पहले ही केंद्र मुहैया करवा रही है, ऐसे में क्या राज्य सरकारें आधे हिस्से की खरीद की भी हैसियत नहीं रखती?

देखा जाए तो विपक्षी दल वैक्सीन को लेकर शुरू से ही घटिया राजनीति कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से पहले आधिकारिक रूप से भारतीय वैक्सीन को लेकर प्रश्न उठाए गए, और अब मांग उठाई गई कि वही वैक्सीन केंद्र उन्हें फ्री में उपलब्ध करवाए। कांग्रेस और वामपंथी धड़ा कभी वैक्सीन की कार्यक्षमता को लेकर प्रश्न उठाता है, तो कभी दाम को लेकर भ्रम फैलाता है।

सीरम इंस्टिट्यूट की तुलना में अन्य विदेशी वैक्सीन बहुत महंगी है। अमेरिका की Pfizer vaccine 1,431 रुपये की है। Moderna की वैक्सीन का दाम 2,348 से 2,715 के रुपये के बीच में है। Johnson & Johnson की वैक्सीन 734 रुपये और चीनी फर्म Sinovac की वैक्सीन 1,027 रुपये की है। भारत बॉयोटेक की वैक्सीन का दाम अभी तय नहीं हुआ है किंतु वह इससे भी सस्ती मिलने की संभावना है, उसकी प्रस्तावित कीमत 150 रुपये ही है।

भारत की जनता की आर्थिक स्थिति इतनी खराब नहीं है कि 400 रुपये कि वैक्सीन न खरीद सके, क्योंकि ऐसा नहीं है कि भारतीय राज्य सरकारें फण्ड की कमी से जूझ रही है। वो भी तब जब आधी आबादी को केंद्र पहले ही सब्सिडी पर फ्री में वैक्सीन दे रही है। इस समय केंद्र को ऑक्सीजन से लेकर वेंटिलेटर तक सारी जिम्मेदारी उठानी पड़ रही है। अधिकांश राज्यों ने अपनी स्वास्थ व्यवस्था का ज़िम्मा केंद्र पर डाल दिया है, जबकि स्वास्थ सेवाओं की उपलब्धता राज्य सरकार की जिम्मेदारी होती है। केंद्र पर पहले ही दबाव अधिक है, ऐसे में कांग्रेस और अन्य दलों को अपनी घटिया राजनीति बन्द कर देनी चाहिए, क्योंकि राष्ट्रीय आपदा ऐसी राजनीति का मंच नहीं है।

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