मंगलवार को असम में तीसरे और अंतिम चरण के दौरान 40 निर्वाचन क्षेत्रों के विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव संपन्न हुआ। इस चरण में पहले दो चरणों के मुकाबले अधिक मतदान हुआ हुआ। आमतौर पर चुनावों में मतदाताओं की भारी संख्या आना सत्ता विरोधी लहर की पहचान मानी जाती है। लेकिन मतदाताओं की अधिक संख्या मौजूदा सरकार के पक्ष में अधिक समर्थन की भी पहचान हो सकती है और असम में ऐसा ही हुआ। इसके कई कारण हैं, जैसे CAA के छुपे हुए समर्थक, मुस्लिमों का बंटा हुआ वोट और Bodoland Territorial Region के वोटों का समर्थन।
असम में अंतिम चरण के चुनाव में शाम 7 बजे तक 82.28 प्रतिशत मतदान हुआ, जबकि पहले और दूसरे चरण में मतदान का प्रतिशत क्रमशः 79.97 और 80.96 प्रतिशत था। तीसरे चरण में 12 निचले असम जिलों को कवर करते हुए कुल 79,19,641 मतदाता और 337 उम्मीदवार थे, जहां पर अधिकतर धार्मिक आधार पर वोटिंग होती है। जिन उम्मीदवारों के भाग्य पर मुहर लगी, उनमें असम में बीजेपी के सबसे लोकप्रिय नेता हिमंत बिस्वा सरमा, चंद्र मोहन पटोवरी, सिद्धार्थ भट्टाचार्य, फणीभूषण चौधरी, चंदन ब्रह्मा और प्रमिला रानी ब्रह्मा शामिल थे। अब यहां यह समझना है कि मतदाताओं द्वारा भारी मात्रा में चुनाव के लिए आना बीजेपी को समर्थन देना है।
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पिछले विधासनभा चुनावों में जब बीजेपी और उसके सहयोगी बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (BPF) और असोम गण परिषद (AGP) ने चुनाव लड़ा था, तो इन तीनों ने मिलकर संयुक्त 86 सीटें जीतीं थी। हालांकि इस बार BPF कांग्रेस के साथ है लेकिन जनता को असम में हुए विकास कार्यों से यह स्पष्ट हो गया है कि कहीं न कहीं बीजेपी कांग्रेस से बेहतर है। वहीं चुनाव से पहले BPF के कई नेताओं ने बीजेपी का हाथ थाम लिया था। साथ ही इस क्षेत्र में बीजेपी की सहयोगी UPPL भी Bodoland Territorial Region BPF को कड़ी टक्कर देने जा रही है। इससे फायदा बीजेपी को हो होगा।
अगर CAA की बात करें तो इस बिल से असम में भारी हिंसा देखने को मिली थी और कई लोग बीजेपी के खिलाफ भी हो गये थे, लेकिन उस दौरान कुछ ऐसे भी लोग बीजेपी के पक्ष में आए जो CAA के साइलेंट सपोर्टर थे। CAA के कारण भ्रम की स्थिति भी है कि यह अच्छा है या बुरा। शायद इसीलिए यह स्वास्थ्य या बुनियादी ढांचे के मुद्दों के रूप में महत्वपूर्ण नहीं है। CAA पर एक नैरेटिव नहीं है, जिसके परिणामस्वरूप लोग नए कानून पर अलग राय नहीं बना पाए हैं। न तो विपक्षी दलों और न ही AASU, AJYCP या KMSS जैसे समूहों, जिन्होंने हिंसक आंदोलन की अगुवाई की थी, लोगों को कानून के प्रतिकूल प्रभाव को समझाने में सक्षम रहे हैं। इसके कारण केवल भाजपा को फायदा हुआ है।
जिन क्षेत्रों में CAA विरोधी आंदोलन तेज था, उनमें से अधिकांश असमिया समुदायों की मुख्यधारा से थे। लेकिन अब भाजपा ने सीएए के मुद्दे को दरकिनार करने और बंगाल मूल के मुसलमानों को असम में स्वदेशी समुदायों के लिए सबसे बड़े खतरे के रूप में चित्रित करने में सफलता हासिल की। इससे बीजेपी के पक्ष में वोटिंग की काफी उम्मीदें है। वहीं बीजेपी ने असम के मुस्लिम मतदाताओं को लुभाने के लिए मुस्लिम उम्मीदवारों को भी खड़ा किया है। यही नहीं बीजेपी के बड़े नेता जैसे जितेंद्र सिंह उनके प्रचार में भी पहुंचे।
तीसरे फेज के चुनावों में भाजपा ने 5 मुस्लिम प्रत्याशियों को मौका दिया था। इसमें दक्षिण सलमरा से अशदुल इस्लाम, बिलासीपारा पश्चिम से अबू बक्कर सिद्दीकी, जलेश्वर से उस्मान गोनी, जानिया से शहीदुल इस्लाम और पश्चिमी असम में बागबोर से हसीनारा खातुन को चुना था, जहां मुस्लिम मतदाताओं की अहम भूमिका है। इन निर्वाचन क्षेत्रों ने 2016 में AIUDF और कांग्रेस के उम्मीदवारों को चुना था।
वही एंटी CAA प्रदर्शन के बाद बनी दो पार्टियां Raijor Dal और Assam Jatiya Parishad भी कई मुस्लिम उम्मीदवार खड़ी कर चुकी हैं, जो कांग्रेस और AIUDF के वोट बैंक में सेंध लगाएंगे। ऐसे में इन सभी क्षेत्रों में मुस्लिम वोटरों के भी बंट जाने की उम्मीद है। बीजेपी के रणनीतिकार हेमंता बिस्वा सरमा ने बीजेपी के लिए बेहतरीन रणनीति बनाई है। अब यह देखना है कि चुनाव परिणामों में बीजेपी को कितनी बड़ी सफलता मिलती हैं।