वसीम रिजवी पर लगा जुर्माना दुर्भाग्यपूर्ण

वसीम रिजवी

PC: Zee News

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कुरान से 26 आयतों को हटाने की मांग वाली एक याचिका को खारिज कर दिया। इस याचिका में याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि ये सभी आयत “गैर-मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा को उचित ठहराते हैं”। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को आधारहीन बताते हुए याचिकाकर्ता और शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष वसीम रिजवी को फटकार लगाई और उन पर 50 हज़ार रुपये का जुर्माना भी लगाया है। न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, “यह एक बिल्कुल आधारहीन याचिका है।”

जब इस मामले को उठाया गया, तो;’ पीठ ने वरिष्ठ वकील आर के रायजादा, जो रिजवी के लिए पेश हुए थे, उनसे से पूछा कि आप अपनी याचिका को लेकर कितने गंभीर हैं?

इस पर याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि मदरसों में ये आयतें पढ़ाई जाती हैं, छात्रों को इससे मिसगाइड किया जाता है, यही आयतें पढ़ाकर और समझा कर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आतंकवादी तैयार किए जाते हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये निराधार याचिका है। कोर्ट ने पचास हजार रुपए जुर्माना लगाकर याचिका खारिज की।

वसीम रिजवी ने अपनी दलील में कहा था, ‘धर्मगुरु तो सुन नहीं रहे हैं। इसलिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। हमने तो 16 जनवरी को चिट्ठी लिखी थी, लेकिन कोई जवाब नहीं आया। जबकि इन 26 आयतों का इस्तेमाल आतंकवादी कर रहे हैं।’ रिजवी का कहना था कि इन 26 आयतों से कट्टरता को बढ़ावा मिलता है। उन्होंने दावा किया था कि ये 26 आयतें कुरान में बाद में जोड़ी गई थीं। रिजवी का कहना था कि मोहम्मद साहब के बाद पहले खलीफा हजरत अबू बकर, दूसरे खलीफा हजरत उमर और तीसरे खलीफा हजरत उस्मान ने कुरान की आयतों को इकट्ठा करके उसे किताब की शक्ल में जारी किया।

उन्होंने अदालत से आग्रह किया कि वह केंद्र सरकार और मदरसा बोर्ड को निर्देश दें कि हिंसा की वकालत करने वाले आयतों को शिक्षण से हटाने के लिए कदम उठाए।

हालांकि, पीठ ने इसे खारिज कर दिया। याचिका में कहा गया है कि इसे दाखिल करने का उद्देश्य भारत में इस्लामिक आतंकवाद के खतरे, इसके स्रोत और नतीजों पर “अदालत का ध्यान आकर्षित करना था”। इसमें कहा गया है कि “दुर्भाग्य से, इस्लामिक आतंकवादी समूहों द्वारा काफिरों/ नागरिकों पर हमलों के लिए दिए जाने वाले आधार के रूप में इस्लामिक पवित्र पुस्तक कुरान के 26 आयतों/ सूरों को निकाल दे।“

याचिका में कहा गया है: “इन आयतों के जरीये मुसलमानों को गैर-मुस्लिमों के खिलाफ उनके कथित अन्याय के लिए सशस्त्र जिहाद से प्रतिशोध के लिए उकसाया जाना शामिल है। इसमें यह भी विश्वास दिलाया जाता है कि इस्लाम में काफिरों की हत्या की अनुमति है, तथा जबरन शरिया लागू करके इस्लाम की स्थापना की आवश्यकता है। साथ ही यह भी बताता है कि किसी भी देश को इस्लामिक बना कर उसके प्रमुख के रूप में खलीफा की स्थापना, आतंकवादियों को शहीदों के रूप में महिमामंडित करना, तथा इस्लाम के वर्चस्व को बढ़ावा देता है। “

याचिका में कहा गया है कि “इन 26 आयतों के आधार पर प्रारंभिक शिक्षा (मदरसे) प्रदान करने वाले संस्थानों में पढ़ने वाले निर्दोष मुस्लिम छात्रों को बहुत ही कम उम्र में कट्टरपंथी बना दिया जाता है, जो न केवल देश की शांति और सद्भाव के लिए बल्कि और देश की संप्रभुता, एकता और अखंडता के खिलाफ है।”

रिज़वी ने यह यह भी बताया कि ये छंद “इस्लाम के मूल सिद्धांतों के खिलाफ थे और पवित्र कुरान के अन्य छंदों के विपरीत थे जो इक्विटी, समानता, क्षमा और सहिष्णुता को बढ़ावा देते हैं”।

इसमें कहा गया है, ” ये आयत किसी देश के कानून के अनुरूप नहीं हैं और न ही किसी भी देश और संसद / राज्य विधानमंडल के रूप में सक्षम निर्वाचित प्रतिनिधियों और संयुक्त राष्ट्र द्वारा बनाए गए कानून और नियम के अनुरूप है। यह Law Of Land पर हावी नहीं होना चाहिए।”

इस याचिका में एक और बेहद महत्वपूर्ण बात कही गयी थी कि संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 के अनुसार, धार्मिक संस्थानों को स्वतंत्रता के साथ शिक्षा देने की स्वतंत्रता है। हालांकि, उनके पास कुछ भी अवैध सिखाने की स्वतंत्रता नहीं है, जो कानून या भारतीय संविधान का उल्लंघन करता है।

याचिका में आगे कहा गया है, “भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के प्रावधानों के खंड 1 के अनुसार सभी व्यक्तियों को अंतःकरण की स्वतंत्रता का और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का समान हक होगा। परन्तु किसी भी धार्मिक रिवाज / मान्यता को भारत के संविधान के अनुसार या कानून के अनुसार है होना चाहिए।”

देखा जाये तो सुप्रीम कोर्ट अक्सर ही हिन्दू धर्म की मान्यताओं पर फैसले देता आया है चाहे वो सबरीमाला हो या पशुबलि पर रोक लगाना हो, पर जैसे ही इस्लाम की बात आती है तो फैसलों के तर्क बदल जाते हैं । वासिम रिजवी की याचिका को ख़ारिज करना और उन पर जुर्माना लगाना दुर्भाग्यपूर्ण है ।

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