गोरखा क्षेत्र का अहम परिवार सुनिश्चित करेगा उत्तर बंगाल में टीएमसी की हार

गोरखालैंड

पश्चिम बंगाल की राजनीति में गोरखालैंड का मुद्दा हमेशा से ही चर्चा का विषय रहा है। गोरखाओं का नेतृत्व करने वाला घीसिंग परिवार ही यह तय करता है कि राज्य में गोरखाओं का राजनीतिक ऊंट किस करवट बैठेगा। घीसिंग परिवार की विरासत को देखते हुए दोनों ही राजनीतिक पार्टियों ने इन्हें मनाने के लिए सारी ताक़त झोंक दी, लेकिन सफलता बीजेपी के हिस्से आई है क्योंकि पिछले चुनाव में जो घीसिंग परिवार ममता के साथ था, वो अब बीजेपी के खेमें में खड़ा है। बीजेपी ने गोरखालैंड की सभी सीटों की जिम्मेदारी घीसिंग फैमिली के प्रमुख मन घीसिंग को दे दी है, जो इस बात का प्रमाण है कि अब गोरखालैंड बीजेपी के हिस्से में ही आएगा।

घिसिंग परिवार की बात करें तो 1980 में सुभाष घीसिंग ने गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट बनाया था। सुभाष घीसिंग ने ही गोरखालैंड शब्द का पहली बार इस्तेमाल किया था। 2015 में सुभाष की मौत के बाद मन घीसिंग ने पिता के आंदोलनों की कमान संभाल ली। मन घीसिंग ने 2016 के चुनावों में आंतरिक उठा-पटक और मजबूरियों को देखते हुए ममता का समर्थन कर दिया था और पिछले विधानसभा चुनाव में मन घीसिंग के कदम से ममता को तगड़ा लाभ भी हुआ, लेकिन अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं।

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दरअसल,  2016 में मन घीसिंग ने ममता बनर्जी का साथ दिया, तो उनके प्रतिद्वंद्वी गुरुंग-तमांग बीजेपी के साथ हो गए। 2019 में घीसिंग ने फिर पाला बदला, बीजेपी के उम्मीदवार को सपोर्ट किया और उन्हें जीत मिली। इस बीच गुरुंग-तमांग बीजेपी से छिटक ममता के पास चले गए। इस बार गुरुंग-तमांग को ममता सपोर्ट कर रही हैं, तो घीसिंग बीजेपी के साथ हैं, इसमें कोई शक नहीं है गुरुंग-तमांग से कहीं ज्यादा रसूख घीसिंग फैमिली का है, क्योंकि ममता के साथ समझौता कर इन लोगों ने जनता के बीच अपनी विश्वसनीयता खो दी है।

बीजेपी ने घीसिंग फैमिली के समर्थकों को देखते हुए गोरखालैंड की सभी सीटों की जिम्मेदारी मन घीसिंग और घीसिंग की फैमिली को दे दी है। इसकी एक बड़ी वजह ये भी है कि घीसिंग फैमिली के मन‌ में भी ममता के प्रति आक्रोश है, और  अब बीजेपी मन घीसिंग के जरिए इस आक्रोश को भुनाने की मजबूत रणनीति बना चुकी है। ममता के लिए अब बीजेपी इस इलाके में भी सबसे बडी चुनौती बनकर उभरी है।  इसका उदाहरण खुद ममता के गोरखा क्षेत्र के सहयोगी और विनय तमांग का बयान भी है जो ये दिखाता हैं कि ममता के लिए गोरखालैंड में अबकी बार ज्यादा मुश्किलें हैं।

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गोरखालैंड की सीटों और राजनीतिक गणित को लेकर ममता के पाले में जा चुके गोरखा आंदोलन के बड़े नेता विनय तमांग का कहना है कि ममता को नुक़सान हो सकता है। वहीं इस बयान के जरिए वो ये भी साबित कर रहे हैं कि ममता को उन्हें अपने साथ रखने का कोई खास फायदा नहीं हुआ है। दूसरी ओर बीजेपी परिवार से जुड़े गोरखालैंड के इस तिलिस्म का तोड़ ममता बनर्जी के लिए इस क्षेत्र में भी चुनावी चुनौतियां खड़ी कर चुकी हैं जिससे निपटना ममता के लिए नामुमकिन हो सकता है।

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