हाल में ही उद्धव सरकार ने एक बार फिर से बिना तैयारी के महाराष्ट्र में सप्ताहांत लॉकडाउन और Night-Curfew लगाने का फैसला किया है। इसकी वजह से महाराष्ट्र में काम करने वाले अन्य राज्य के प्रवासी मजदूर पलायन करने पर मजबूर हो रहे हैं। बता दें कि, पिछले साल भी महाराष्ट्र से ही मजदूरों के पलायन की शुरुआत हुई थी और फिर स्थिति बहुत भयावह हो गई थी।
अगर हम महाराष्ट्र में फैल रहे कोरोना संक्रमण की बात करें तो, हर रोज महाराष्ट्र में कोरोना नया रिकॉर्ड बना रहा है। वर्तमान समय में देश के 55 प्रतिशत से ज्यादा कोरोना के मामले केवल एक राज्य महाराष्ट्र से आ रहे हैं। ऐसे में मुंबई में काम करने वाले हजारों प्रवासियों को किसी भी समय अपने गृह राज्य लौटना पड़ सकता है, जबकि कई प्रवासी मजदूर तो महाराष्ट्र छोड़ अपने गाँव के लिए रवाना भी हो चुके हैं। बता दें कि, कोरोना के मामले और उद्धव सरकार के रवैये को देखते हुए यह कह सकते हैं कि इस बार स्थिति पिछले साल के मुक़ाबले और ज्यादा भयावह हो सकती है।
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महाराष्ट्र से मजदूरों के पलायन करने का एक मात्र कारण उद्धव सरकार है। गौरतलब है कि कुछ दिनों पहले ही महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने कहा था कि, सरकार के पास लॉकडाउन के अलावा और कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा है। इस बात से महाराष्ट्र के लोगों का मनोबल टूट गया और वो हताश हो गये। पिछले साल के लॉकडाउन से हुई तकलीफ़ों से लोग उभर ही रहे थे कि राज्य के मुख्यमंत्री ने एक और लॉकडाउन का फरमान जारी कर दिया।
महाराष्ट्र सरकार प्रवासियों के मन में बैठे डर को दूर करने का प्रयास भी नहीं कर रही है। 6 महीने के लॉकडाउन के बाद अगर कोई प्रवासी मजदूर अपना गाँव छोड़कर हजारों किलोमीटर दूर काम करने आ रहा है, तो सरकार का फर्ज़ बनाता है कि उनके भविष्य को लेकर मन में बैठीं चिंताओं को दूर करे। वहीं उद्धव सरकार ने ऐसा कुछ भी नहीं किया, बल्कि उल्टा उनके मन में बैठे दोबारा लॉकडाउन की आशंकाओं को हवा दे दी। नतीजतन,सैकड़ों लोग ट्रेन और बस पकड़कर वापस अपने घर जा रहे हैं।
वर्तमान स्थिति को देखते हुए उद्धव सरकार को प्रवासियों को भरोसा दिलाना चाहिए कि चाहे कुछ भी हो सरकार इस महामारी से लड़ने में आपके साथ कंधे से कंधे मिलाकर खड़ी है। साथ ही सरकार का यह भी कर्तव्य बनता है कि, मजदूरों को सुनिश्चित करे कि लॉकडाउन में अगर किसी चीज़ की कमी होती है। जैसे- राशन का समान, सब्जियां या प्रतिदिन प्रयोग में आने वाली वस्तुएं, तो सरकार हर संभव मदद मुहैया कराएगी। लेकिन महाराष्ट्र सरकार ने प्रवासियों को उनके भाग्य के भरोसे छोड़ दिया है।
बता दें कि, पिछले साल भी उद्धव ठाकरे के कुशासन की वजह से प्रवासी मजदूरों को बड़े पैमाने पर पलयान करना पड़ा था। मुंबई में एक तरफ मजदूरों अपने भविष्य को लेकर चिंता सत्ता रही थी। वहीं दूसरी ओर महाराष्ट्र सरकार केंद्र सरकार के साथ आरोप-प्रत्यारोप का खेल रही थी। इस साल भी कुछ अलग नहीं है, खेल वही है, खिलाड़ी भी वही है और इस खेल से भुगतने वाले (प्रवासियों) भी वही है, सिर्फ साल नया है।
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साल 2020 का मुंबई शिवाजी टर्मिनल का भयावह दृश्य अभी भी लोग भूल नहीं पाये हैं। फिर से वैसे ही परिस्थिति बनते हुए दिखाई दे रही है। बता दें कि, मुंबई में तकरीबन 50 लाख प्रवासी रहते हैं, जो मुम्बई की अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ा योगदान देते हैं। इसके बावजूद प्रवासियों के ऊपर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया जा रहा है। इसके भी दो कारण हो सकते हैं, एक तो प्रवासी वोट बैंक नहीं होते हैं और दूसरा शिवसेना ने अपने इतिहास में प्रवासियों को कभी अपना नहीं माना है।