महाराष्ट्र में कोरोना संक्रमण का भयावह रूप देखने को मिल रहा है। ऐसे में राज्य सरकार को इस आपदा से निपटने के लिए स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करना चाहिए, लेकिन अफसोस महाराष्ट्र सरकार ठीक इसका विपरित कर रही है। उदाहरण के लिए, आज महाराष्ट्र में मेडिकल स्टाफ की भारी कमी है। हालिया कि एक रिपोर्ट के अनुसार, पुणे के ससून अस्पताल के डॉक्टरों ने स्टाफ की कमी को लेकर हड़ताल किया था। बता दें कि महाराष्ट्र सरकार ने जनवरी में 25 प्रतिशत से ज्यादा संविदात्मक मेडिकल स्टाफ को बर्खास्त कर दिया था। परिणाम स्वरूप आज महाराष्ट्र में मेडिकल स्टाफ की भारी कमी देखने को मिल रही है।
इस समस्या से निपटने के लिए पुणे जिला पार्षद के CEO ने बताया कि, 901 नए मेडिकल स्टाफ को स्वास्थ्य सेवा से जोड़ा जाएगा। सीईओ ने कहा कि “901 नए कर्मचारियों को शामिल किया जाएगा। मैं चिकित्सकों से हमारे साथ जुड़ने का अनुरोध करता हूं। हमने महाराष्ट्र मेडिकल काउंसिल पंजीकरण मानदंडों को भी समाप्त कर दिया है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत डॉक्टरों का वेतन बढ़ाने के लिए 16,000 फ्रंटलाइन कर्मचारियों की तनख्वाह में कटौती की जाएगी।”
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र की 30 हेल्थ एक्सपर्ट्स की टीम ने महाराष्ट्र सरकार को मेडिकल स्टाफ की कमी को लेकर चेतावनी दिया था। केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने राज्य के स्वास्थ्य सचिव डॉ. प्रदीप व्यास को पत्र लिखकर राज्य की स्थिति को लेकर चेताया था। पत्र में केंद्रीय टीम द्वारा उठाई गई चिंताओं के बारे में लिखा है।
पत्र में लिखा था कि “बुलढाणा, सतारा, औरंगाबाद और नांदेड़ जिले में निगरानी और संपर्क ट्रेसिंग का काम प्रभावी रूप से नहीं हो रहा है। इसका कारण, मेडिकल स्टाफ कि भारी कमी है।”
बता दें कि महाराष्ट्र में पिछले 24 घंटों में कोरोना वायरस संक्रमण के कारण 985 लोगों की जान जा चुकी है। यह किसी राज्य में अभी तक की कोरोना संक्रमण के कारण मरने वालों की सबसे बड़ी संख्या है। महाराष्ट्र में कोरोना संक्रमण का दर और संक्रमण से मरने वालों का दर, दोनों बाकी राज्यों के मुकाबले सबसे ज्यादा है। केस पॉजिटिविटी दर 16.5 प्रतिशत है, जबकि मृत्यु दर 1.5 प्रतिशत है।
आपको बता दें कि कोरोना संक्रमण को नियंत्रण में रखने के लिए टेस्टिंग और संपर्क ट्रेसिंग करना सबसे महत्वपूर्ण है। इसके लिए पर्याप्त मात्रा में मेडिकल स्टाफ की जरूरत पड़ती है, लेकिन उद्धव सरकार ने जनवरी में ही 25 प्रतिशत स्टाफ को काम से हटा दिया था। जिसके कारण संक्रमित लोगों की जांच में देरी हुई। जांच में देरी होने की वजह से उनको समय से अस्पताल में दाखिला नहीं मिल पा रहा है, जिससे बहुत लोगों की स्थिति गंभीर हो रही है।
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उद्धव सरकार कोरोना वायरस का पहला चरण खत्म होने के बाद, राज्य के 25 प्रतिशत मेडिकल स्टाफ को नौकरी से हटा दिया। उसके बाद अप्रैल में स्थिति बदतर हो गई तो फिर से नियुक्ति करना चाहती है। राज्य सरकार के इस रवैया से दो सवाल खड़े होते हैं। पहला यह कि क्या राज्य सरकार को यह नहीं मालूम था कि वायरस mutate होता है और कोरोना वायरस का दूसरा चरण भी आ सकता है? दूसरा यह कि क्या राज्य सरकार संविदात्मक मेडिकल स्टाफ से उसका काम निकल जाने के बाद अमानवीय तरीके द्वारा नौकरी से से हटा सकती है?