यूं तो मोदी सरकार कई विषयों पर आक्रामक रही है, लेकिन अमेरिका, यूरोप और चीन की मनमानी को लेकर वे अधिक मुखर नहीं रही हैं। काफी समय से गुड बॉय की छवि पर कायम रहने वाली मोदी सरकार ने अब स्पष्ट किया है की राष्ट्रहित के लिए यदि गुड बॉय वाली छवि भी त्यागनी पड़े तो चलेगा, परंतु चीन, अमेरिका और यूरोप की मनमानी नहीं चलेगी।
हाल ही में पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने एक अहम व्याख्यान में स्पष्ट किया है की भारत जलवायु परिवर्तन संबंधी अपनी आकांक्षाओं को अवश्य पूरा करेगा, परंतु किसी के दबाव में आकर नहीं। प्रकाश जावड़ेकर के अनुसार, “भारत विकसित देशों से वित्तीय सहायता और उनके जलवायु कार्यों पर प्रगति के बारे में पूछताछ करता रहेगा। भारत जी20 का एकमात्र ऐसा देश है जिसने पेरिस जलवायु समझौते पर जो कहा, वह किया और अधिकतर समय वादे से ज्यादा ही किया। लेकिन कई देश 2020 के पूर्व किए गए वादे भूल चुके हैं और बात 2050 की कर रहे हैं”
प्रकाश जावड़ेकर ने अपने सम्बोधन में आगे कहा, “कई देश अब कह रहे हैं कि कोयले का इस्तेमाल नहीं करें, लेकिन विकल्प कोयले से काफी सस्ता होना चाहिए, तभी लोग कोयले का इस्तेमाल बंद करेंगे। भारत दूसरों के कदमों के कारण भुगत रहा है। अमेरिका, यूरोप और चीन ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन करते हैं जिसे दुनिया भुगतती है। जलवायु बहस में एक प्रमुख चीज़ जिम्मेदारी भी है। हमें गरीब देशों के लिए जलवायु न्याय को भी ध्यान में रखना चाहिए। उन्हें विकास करने का अधिकार है।”
यहाँ पर प्रकाश जावड़ेकर ने स्पष्ट तौर पर अमेरिका, चीन और यूरोप के दोहरे मापदंडों पर प्रहार करते हुए बताया है कि भारत अमेरिका, चीन और यूरोप की करामातों की सज़ा नहीं भुगतने वाले। वे गलत भी नहीं है, क्योंकि भारत ने जलवायु परिवर्तन के लिए अकेले काम करने का ठेका नहीं ले रखा है, और ये बात हमें आक्रामकता के साथ जतानी होगी। जी 20 में भारत के अलावा अमेरिका, तुर्की, मेक्सिको, ब्राजील, चीन, सऊदी अरब जैसे देश भी हैं, जो प्रदूषण को कम करने को लेकर ज्यादा गंभीर नहीं हैं।
अगर आंकड़ों की बात की जाए, तो आपको पता चलेगा कि कैसे विकसित देशों को पर्यावरण की रक्षा से कोई मतलब नहीं है। सबसे ज्यादा प्रदूषण को मापने का एक पैमाना है किसी देश के कार्बन उत्सर्जन/फुटप्रिंट का साइज़ मापना, जिसके अनुसार चीन और अमेरिका का कुल हिस्सा दुनियाभर के प्रदूषण में 43 प्रतिशत से भी अधिक है। चीन तो सबसे अधिक प्रदूषण करता है और उसका कार्बन उत्सर्जन/फुटप्रिंट भी सबसे बड़ा है, लेकिन क्या इसके विरुद्ध कोई आवाज उठाता है, या चर्चा करने का प्रयास भी करता है?
वहीं अमेरिका में भी वायु प्रदूषण कम नहीं है, और तो और रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका के उन शहरों में कोरोना संक्रमण से मौत होने के ज्यादा मामले सामने आये हैं जिनमें वायु प्रदूषण का स्तर तुलनात्मक रूप से अधिक है। वास्तव में विकसित देश ही तापमानवर्धक गैसों के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं। इस बात पर प्रधानमंत्री मोदी ने कई बार प्रकाश भी डाला है परन्तु आक्रामक रुख नहीं अपनाया है।
अब तक भारत ऐसे विषयों पर अधिकतर गुड बॉय की छवि बरकरार रखता था, परंतु इस बार जिस प्रकार से प्रकाश जावड़ेकर ने अपना रुख स्पष्ट किया है, उससे एक स्पष्ट संदेश जाता है – भारत गुड बॉय बनने के लिए अपने हितों की बलि अब और नहीं चढ़ाएगा।