यति नरसिंहानंद केस: ईश-निंदा कानून में है बदलाव की ज़रूरत और “सर कलम” की मांग करने वालो को मिलना चाहिए दंड

सर धड़ से अलग करने की बात करने वालों को मिले सज़ा

यति नरसिंहानंद सरस्वती

इन दिनों ईशनिन्दा के नाम पर अराजकता और आतंकवाद को खूब बढ़ावा दिया जा रहा है, और यह कैसे हो रहा है, इसका प्रत्यक्ष प्रमाण आप पड़ोसी देश पाकिस्तान में देख सकते हैं, जहां ईशनिन्दा के नाम पर आए दिन गैर मुस्लिमों को सताया जाता है, और कभी कभी उन्हे मौत के घाट भी उतार दिया जाता है।

अब भारत में ईशनिन्दा का कानून आधिकारिक तौर पर नहीं है, लेकिन अनाधिकारिक रूप से ईशनिन्दा कानून भारत में मौजूद है, क्योंकि कई लोगों को कुछ पंथों के बारे में बोलने भर से न सिर्फ प्रताड़ित किया जाता हो, बल्कि उनका सर धड़ से अलग करने की मांग भी की जाती है।

उदाहरण के लिए डासना जिले के महंत यति नरसिंहानंद सरस्वती को ही देख लीजिए। कुछ हफ्तों पहले यति नरसिंहानंद सरस्वती ने प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में एक कॉन्फ्रेंस आयोजित की, जिसमें उन्होंने गैर मुस्लिमों पर किये जा रहे अत्याचारों पर सवाल उठाया और कट्टरपंथी इस्लाम के साथ साथ पैगंबर मुहम्मद की आलोचना भी की।

बस फिर क्या था, यति नरसिंहानंद सरस्वती की गिरफ़्तारी से से लेके उनके सर कलम करने तक की मांग उठने लगी। बरेली में तो बेहद उग्र प्रदर्शन भी हुए, जहां यति नरसिंहानंद सरस्वती का सर कलम करने की मांग ज़ोरों शोरों से उठी थी। गुरुवार को इस सिलसिले में बरेली में रजा एक्शन कमेटी (आरएसी) ने जुलूस निकाल कर प्रदर्शन किया। पुलिस और प्रशासनिक  अधिकारियों को ज्ञापन देकर इस मामले में कार्रवाई की मांग की है।

वहीं दूसरी तरफ जमीयत उलमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय महासचिव मौलाना महमूद मदनी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर इस्लाम और पैगंबर मोहम्मद साहब पर अमर्यादित टिप्पणी करने वाले महंत के विरुद्ध कार्रवाई की मांग की है। मौलाना मदनी का कहना है कि देश में फसाद फैलाने वाले तत्वों पर कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए।

अब ये प्रदर्शन चिंताजनक क्यों है? दरअसल ईशनिन्दा के नाम पर जो अराजकता और आतंकवाद फैलाया जा रहा है, उसका वीभत्स रूप यूरोप पहले ही झेल रहा है। भारत में भी यदि इस घिनौनी प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलने लगा, तो फिर 1946 से भी भयावह हालात हो सकते हैं। इस समय ईशनिन्दा के परिप्रेक्ष्य में कानूनी बदलाव बेहद जरूरी हैं।

लेकिन ऐसा क्यों है? उदाहरण के लिए फ्रांस को ही देख लीजिए। एक फ्रेंच शिक्षक सैमुएल पैटी को एक झूठी शिकायत के आधार पर जिस निर्ममता से मौत के घाट उतारा गया, उससे कोई भी अपरिचित नहीं है। ज्यादा दूर जाने की भी आवश्यकता नहीं, 2019 में कमलेश तिवारी को भी कट्टरपंथी इस्लाम की आलोचना करने के लिए मौत के घाट उतारा गया था।

अब प्रश्न ये उठता है कि आखिर ये सब कब तक चलेगा? कब तक ईशनिन्दा के नाम पर कट्टरपंथी सर कलम करने की धमकियाँ देते रहेंगे। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का यह तो अर्थ नहीं हो सकता कि आतंकवाद की भी स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। केंद्र सरकार को अब इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि ईश-निंदा के संबंध में अहम कानूनी बदलाव करे “सर कलम” की मांग करने वालों को ऐसा दंड मिले जिससे वे इस प्रकार से गुंडई करने से पहले भी हजार बार सोचें।

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