यदि आपको लगता है कि दिल्ली, पंजाब, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और झारखंड की प्रशासनिक लापरवाही के कारण भारत वुहान वायरस से अपनी लड़ाई में पिछड़ रहा है, तो फिर आपने राजस्थान का रुख नहीं किया है। पिछले कुछ दिनों में जो रिपोर्ट्स सामने आ रही हैे, उसने स्पष्ट किया है कि इस राज्य में सब कुछ भगवान भरोसे है। चाहे वेन्टिलेटर की बर्बादी हो, या फिर वैक्सीन की बर्बादी हो, या फिर आवश्यक मेडिकल उपकरण जानबूझकर अस्पतालों को न आवंटित करना हो, आप बस बोलते जाइए और राजस्थान में वह सब कुछ हो रहा है।
पत्रिका की रिपोर्ट के अनुसार, “कुछ जिले वैक्सीन के उपयोग में लापरवाही बरत रहे हैं। प्रदेश में अब तक 7 फीसदी यानि 11.5 लाख डोज़ वैक्सीन खराब हो चुकी है, जिसमें सर्वाधिक योगदान चुरू जिले का रहा है, जहां लगभग 40 प्रतिशत वैक्सीन बेकार चली गई”। शायद यह भी एक कारण है कि क्यों केंद्र सरकार के लाख प्रयासों के बावजूद अब तक देश में 20 करोड़ लोगों का भी टीकाकरण पूरा नहीं हो पाया है। जब राज्यों को वैक्सीन के सही उपयोग से ज्यादा सरकार से वसूली में रुचि, तो टीकाकरण कैसे सही से होगा?
लेकिन यह तो कुछ भी नहीं है। राजस्थान से कई ऐसी रिपोर्ट्स भी सामने आई है जिससे पता चलता है कि अशोक गहलोत कि राज्य के लिए क्या प्राथमिकतायें हैं। राजस्थान में न केवल मृत लोगों का टीकाकरण हो रहा है, बल्कि अस्पतालों में प्रशासनिक लापरवाही के कारण कई लोगों की मृत्यु भी हो चुकी है।
TFI के संपादक अजीत दत्ता द्वारा शेयर की गई न्यूज क्लिपिंग के अनुसार, “पत्रिका की रिपोर्ट के अनुसार कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां उन लोगों का टीकाकरण हो चुका है, जिनकी मृत्यु पाँच से छह वर्ष पहले ही हो चुकी है। कोविड टीकाकरण के लिए आधार नंबर या सरकार द्वारा सत्यापित किसी अन्य दस्तावेज़ का नंबर होना आवश्यक है। ऐसे में क्या राजस्थान में बिना सत्यापन के ही टीकाकरण कराया जा रहा है?”
लेकिन ये तो कुछ भी नहीं है। राजस्थान की राजधानी से एक ऐसा मामला सामने आया है, जिससे राजस्थान के प्रशासन की न सिर्फ पोल खुलती है, बल्कि राजस्थान की दयनीय हालत भी जगजाहिर होती है। दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान के RUHS संस्थान में 20 दिन में 440 मरीज सिर्फ इसलिए मारे गए, क्योंकि वेन्टिलेटर में लगने वाला एक आवश्यक उपकरण ढंग से साफ नहीं किया जाता था।
रिपोर्ट के अंश अनुसार, “जयपुर में प्रदेश के सबसे बड़े कोविड अस्पताल आरयूएचएस में ही 20 दिन के भीतर वेंटिलेटर पर 442 जानें चली गईं, लेकिन सच यह भी है कि इनमें से अधिकतर की जान एन्डोट्रेकियल ट्यूब की सफाई न होने की वजह से हुए इन्फेक्शन के कारण हुई। क्रिटिकल मरीजों को लगने वाली जिस एन्डोट्रेकियल ट्यूब की सफाई दिन में 5-6 बार होनी चाहिए, यहां उसे दो दिन में 3 बार ही साफ किया जा रहा है। हैरानी की बात है कि इन एन्डोट्रेकियल ट्यूब की एक बार की सफाई में मात्र 2-3 मिनट लगते हैं। पूरे दिन में 6 बार सफाई पर 12 मिनट लगेंगे। अस्पताल प्रशासन अपने 12 मिनट बचाने के लिए हजारों जिंदगियां दांव पर लगा रहा है”।
अक्सर हमने राहुल गांधी को यह कहते हुए सुना है कि यदि उनके हाथ में व्यवस्था होती, तो वुहान वायरस भारत में अपना असर डालने ही नहीं पाता। लेकिन राजस्थान में जो हो रहा है, उससे स्पष्ट होता है कि अच्छा ही है कि काँग्रेस के हाथ में देश की कमान नहीं है। वेन्टिलेटर या तो है ही नहीं, या फिर उन्हें प्राइवेट अस्पतालों को आवंटित किया जा रहा है। वैक्सीन की बर्बादी तो ऐसे हो रही है, मानो मुफ़्त में बंट रही हो।