महाभारत में एक बड़ा अनोखा व्यक्ति था, जिसका नाम था युयुत्सु। वह धृतराष्ट्र का पुत्र होने के साथ साथ आयु में दुर्योधन के समान था और कौरवों के उलट नीति और सद्गति की राह पर चलता था। इसके बाद भी उन्हे उनका उचित सम्मान और पद नहीं मिला।
लेकिन जब महाभारत के धर्मयुद्ध में धर्म और अधर्म के बीच किसी एक को चुनने की बारी आई, तो युयुत्सु धर्म का मार्ग चुनते हुए पांडवों की सेना में शामिल हुए, और जब पांडवों ने हिमालय की ओर प्रस्थान किया, तो इन्ही युयुत्सु की देखरेख में उन्होंने अपना राजपाट राजा परीक्षित को सौंपा।
कुछ ऐसी ही कथा है असम के वर्तमान मुख्यमंत्री हिमन्ता बिस्वा सरमा, जो आज से असम के नए मुख्यमंत्री होंगे। इन्होंने आयुपर्यंत एक निष्ठावान सेवक की तरह असम की सेवा की, फिर चाहे वो असम गण परिषद के छात्र नेता के तौर पर हो, या फिर काँग्रेस के वरिष्ठ नेता के तौर पर। लेकिन उनकी योग्यता और उनकी कार्यकुशलता का सम्मान करना तो दूर, उनकी प्रशंसा तक नहीं की गई।
आज हम बात करेंगे उन 3 घटनाओं की, जिन्होंने हिमन्ता को असम का मुख्यमंत्री, हिमन्ता बिस्वा सरमा बनाया।
सर्वप्रथम हम बात करते हैं काँग्रेस से उनके मोहभंग की। 2001 में जलूकबारी से विधायक के तौर पर चुने गए हिमन्ता एक प्रकार से असम में काँग्रेस सरकार के दाहिने हाथ माने जाने थे, क्योंकि उनके बिना काँग्रेस असम में अपना काम नहीं चला सकती थी। तो ऐसा भी क्या हुआ, जिसके कारण हिमन्ता को 2015 के पश्चात काँग्रेस छोड़ने पर विवश होना पड़ा?
दरअसल तत्कालीन मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के सेवानिर्वृत्त होने का समय निकट आ रहा था, और हिमन्ता को लगा कि उन्हे भी असम की सेवा का अवसर मिलना चाहिए। लेकिन काँग्रेस पार्टी में भला योग्य और कर्मठ नेताओं की कब से इच्छा पूरी होने लगी? सो उनके स्थान पर तरुण के बेटे गौरव गोगोई को चुना गया।
लेकिन हिमन्ता का वास्तविक मोहभंग 2015 में हुआ, जब असम के कई अहम मुद्दों पर वे कुछ पार्टी नेताओं सहित राहुल गांधी से मिलने गए थे। वहीं पर मुख्यमंत्री तरुण गोगोई भी उपस्थित थे, परंतु राहुल गांधी का ध्यान असम के मुद्दों से अधिक अपने पालतू कुत्ते ‘पिडी’ पर लगा हुआ था।
जब हिमन्ता ने असम को बाढ़ से हुए नुकसान के बारे में अवगत कराने का प्रयास किया, तो राहुल पिडी की ही खातिरदारी करने में लगे रहे। फिर वो एक दिन था और एक आज का दिन, और उसके बाद से असम तो क्या, पूर्वोत्तर तक में अपना आधार बचाने में काँग्रेस नाकाम रही।
लेकिन ये तो बस शुरुआत थी। हिमन्ता की योग्यता को देखते हुए उन्हे स्वास्थ्य मंत्रालय जैसे कई अहम पद सौंपे गए, और उनकी योग्यता को देखते हुए भाजपा की राष्ट्रीय इकाई ने उन्हे पूर्वोत्तर में एनडीए की कमान भी सौंपी, और वे NEDA के संयोजक भी बने। इसी दौरान हिमन्ता के समक्ष दूसरी चुनौती भी आई – CAA और NRC की।
दरअसल 2019 में कश्मीर में अपनी धाक जमाने और श्री राम जन्मभूमि को मुक्त कराने में एक अहम भूमिका निभाने के बाद एनडीए की केंद्र सरकार ने नागरिकता संशोधन अधिनियम पारित करवाया, जिसके अंतर्गत धार्मिक आधार पर प्रताड़ित किए गए पाकिस्तानी, अफगानी एवं बांग्लादेशी नागरिकों को भारत में शरण भी मिलेगी और उन्हे नागरिकता में सहूलियत भी मिलेगी।
इसके अलावा भाजपा असम में एनआरसी यानि नागरिकों के लेखा जोखा का पूरा हिसाब लागू करने के लिए प्रतिबद्ध भी थी।
लेकिन चूंकि इसमें मुसलमानों के लिए कोई विशेष प्रावधान नहीं था, इसीलिए काँग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष ने तरह तरह की अफवाहें फैलानी शुरू कर दी, जिससे असामाजिक तत्वों को खूब बल मिला, और दिल्ली, बंगाल, उत्तर प्रदेश, असम जैसे क्षेत्रों में हिंसक घटनाएँ भी देखने को मिली।
ऐसे में ये हिमन्ता ही थे, जिन्होंने न सिर्फ स्थिति को संभाला, बल्कि अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की नीति को अपनी शैली में मुंहतोड़ जवाब भी दिया। मीडिया ने ऐसा माहौल बना रखा था कि भाजपा को किसी भी स्थिति में CAA एवं एनआरसी के लिए कोई समर्थन मिलना ही नहीं चाहिए।
लेकिन हिमन्ता ने न केवल इस वामपंथी कुचक्र को तोड़ा, बल्कि यह भी स्पष्ट कर दिया कि उन्हे असम की संस्कृति की उतनी ही चिंता है, जितनी असम राज्य के विकास की।
हिमन्ता के शब्दों में यदि उन्हे अल्पसंख्यकों के वोट नहीं मिलते हैं, तो वे वोटों की भीख मांगने भी ‘मियां मुसलमानों’ के पास नहीं जाएंगे, और हुआ भी वही। चुनाव के पश्चात जैसे ही सामने आया कि भाजपा को अल्पसंख्यक मोर्चे के सदस्यों के ही वोट नहीं मिले, तो असम भाजपा ने तत्काल प्रभाव से अल्पसंख्यक मोर्चा ही भंग कर दिया।
इसके अलावा हिमन्ता को जिस बात के लिए सर्वाधिक प्रशंसा मिली, वो था बतौर स्वास्थ्य मंत्री उनका वुहान वायरस को संभालना। जब ये महामारी फरवरी 2020 में भारत में फैलनी शुरू हुई, तभी से हिमन्ता ने आवश्यक तैयारियां करना शुरू कर दिया। यहाँ तक कि जब 2021 के अप्रैल माह में वुहान वायरस की दूसरी लहर ने विकराल रूप धारण किया, तो भी हिमन्ता बिस्वा सरमा तनिक भी विचलित नहीं हुए।
उन्होंने न केवल आवश्यक व्यवस्था करवाई, बल्कि ऑक्सीजन निर्माण की क्षमता को इतना बढ़ावा दिया कि वे दूसरे राज्यों को भी ऑक्सीजन सप्लाई करने के लिए तैयार थे। आज उन्ही के कर्मों का परिणाम है कि असम में कोरोना से रिकवरी की दर अन्य राज्यों के मुकाबले बहुत आगे बढ़ रही है।
कभी असम में बढ़ते अधर्म को लेकर उन्होनें काँग्रेस से नाता तोड़ा, तो कभी उन्होंने CAA के नाम पर किए जा रहे उपद्रव के पीछे राज्य के लिए संकटमोचक बने। आज हिमन्ता बिस्वा सरमा यदि असम के मुख्यमंत्री हैं, तो वे केवल दो कारणों से हैं– अपनी कर्मठता और तुष्टीकरण की नीतियों का प्रखर विरोध।