सच कहें तो यदि कोई भारत के वुहान वायरस के खिलाफ अभियान में सबसे बड़ा रोड़ा सिद्ध हो रहे हैं, तो वे केवल दो लोग हैं। एक हैं दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व वाली दिल्ली की सरकार, जो केंद्र और अन्य राज्य की सरकारों द्वारा दी जा रही सहायता को भी व्यर्थ जाने देने और अपने लिए लाइमलाइट बटोरने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। वहीं दूसरी ओर हैं उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार, जो वैक्सीन के अभाव का रोना रोती है, तो वहीं दूसरी ओर अपने प्रिय क्षेत्रों के लिए वैक्सीन के जमाखोरी को बढ़ावा देने में कोई कसर नहीं छोड़ती है।
जी हाँ, आपने ठीक पढ़ा। महाराष्ट्र में एक तरफ उद्धव ठाकरे रोना रोते हैं कि राज्य को पर्याप्त वैक्सीन नहीं मिलते हैं, तो वहीं दूसरी ओर उन्हीं के स्वास्थ्य मंत्री अपने क्षेत्र को जरूरत से ज्यादा वैक्सीन प्रदान कर रहे हैं, बाकी क्षेत्रों की आपूर्ति जाए तेल लेने। उदाहरण के लिए Indian Express की रिपोर्ट देख लीजिए, जिसका अनुसार स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे जो जलना जिले से, वहां पर इस समय कुछ 17000 टीकों की आवश्यकता है। लेकिन राजकीय डेटा के अनुसार जलना को 77000 टीके प्रदान किए गए, जो जलना के कोटे से 60000 ज्यादा है।
जी हाँ। एक तरफ महाराष्ट्र में टीकों की किल्लत का रोना उद्धव ठाकरे सार्वजनिक तौर पर रो रहे हैं, तो वहीं स्वास्थ्य मंत्री अपने क्षेत्र में टीकों की जमाखोरी को बढ़ावा दे रहे हैं। शायद यह भी एक प्रमुख कारण है कि क्यों भारत में टीकाकरण अभियान केंद्र सरकार के इतने प्रयासों के बावजूद काफी धीमी रफ्तार से चल रहा है। अब तक जहां 20 करोड़ से ज्यादा लोगों को कम से कम एक टीका लगना चाहिए था, तो वहीं अब तक मुश्किल से 16 करोड़ लोगों को ही कम से कम एक डोज़ वैक्सीन लग पाई हैं।
ये न सिर्फ उद्धव ठाकरे के सरकार की अकर्मण्यता को जगजाहिर करता है, बल्कि यह भी सिद्ध करता है कि किस प्रकार से कुछ लोग अपने हितों की पूर्ति के लिए देश को भी बलि चढ़ाने को तैयार है। यदि ऐसा नहीं है, तो फिर क्यों केंद्र सरकार और अन्य राज्य सरकारों की लाख मदद के बाद भी दिल्ली में लोग ऑक्सीजन के अभाव में मर रहे हैं? आखिर क्यों केंद्र सरकार को ही बलि का बकरा बनाया जा रहा है?
इसमें कोई दो राय नहीं है कि महाराष्ट्र की लापरवाहियों के कारण आज पूरे देश को उसका दुष्परिणाम भुगतना पड़ रहा है। लेकिन जिस प्रकार से टीकों की जमाखोरी की बात सामने आई है, ये न सिर्फ निंदनीय है, बल्कि चिंताजनक भी। यदि केंद्र सरकार ने अभी कड़े कदम नहीं उठाए, तो आगे चलकर स्थिति बेहद भयानक हो सकती है।