एक निष्पक्ष चुनाव आयोग क्षेत्रीय नेताओं पर भारी पड़ेगा, इसीलिए अब ये सब मिलकर EC को बदनाम करने में जुटे हैं

चुनाव आयोग को निशाना बना कर राजनीति कर रहा है विपक्ष

चुनाव

TV9 Bharatvarsh

भारतीय चुनावी व्यवस्था को सबसे सुदृढ़ माना जाता रहा है। आम चुनावों के दौरान आयोग की व्यवस्था और कार्यशैली का अध्ययन करने विदेशी पत्रकार तक भारत में आते हैं, लेकिन इस चुनावी प्रक्रिया पर पिछले चार सालों में खूब सवाल खड़े किए गए है। राजनीतिक पार्टियां ने पहले ईवीएम की विश्वसनीयता को मुद्दा बनाया और जब ईवीएम का मामला बेतुका निकला तो अब चुनाव की विश्वसनीयता को लेकर भारतीय निर्वाचन आयोग पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। ऐसा किस लिए हो रहा है ये सभी जानते हैं, क्योंकि मुद्दा रहित राजनीति करने वाले विपक्षी दलों को जनता नकारने लगी है। इससे इतर ये गंभीर स्थिति भी है कि जिस चुनवी प्रक्रिया के तहत ममता बनर्जी जैसी नेता 200 से अधिक सीटों से जीतती हैं, वो भी चुनाव आयोग पर सवाल उठाती हैं, क्यों ? क्योंकि उन्हें बीजेपी के नेता ने उनकी सीट से परास्त कर दिया।

इस देश में विपक्ष का चलन बन गया है, फैसला गलत हो तो न्यायपालिका की तटस्थतता पर सवाल उठा दो। बात अगर अपने हित की न हो तो मीडिया को बिका हुआ घोषित कर दो और अब उसी तरह चुनाव हारने पर चुनावी प्रक्रिया पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। निर्वाचन आयोग को पूर्णतः स्वतंत्र संस्था माना जाता है, जो देश‌ में बिना किसी डर के माहौल के बिना चुनाव करवाती है, लेकिन पश्चिम बंगाल समेत देश के पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में इस बार कुछ अलग देखने को मिला क्योंकि कांग्रेस सहित कई विपक्षी दलों ने बीजेपी से ज़्यादा निशाना तो निर्वाचन आयोग पर साधा है, लेकिन इनका रवैया भी एकतरफा है और यही कारण है कि जनता के बीच इनकी विश्वसनीयता को सिरे से खारिज करती है।

और पढ़ें- CBI जांच की मांग के साथ ही SC पहुँचा बंगाल हिंसा मामला, ममता की बढ़ सकती है मुश्किलें

जब असम में मुश्किल वक्त में एक पोलिंग अधिकारी ईवीएम के साथ बीजेपी प्रत्याशी की गाड़ी से मिला तो पूरा विपक्ष चुनाव आयोग पर सवाल करने लगा, जबकि चुनाव आयोग का नियम है कि अगर ऐसी कोई परिस्थिति आती है, तो उस ईवीएम से संबंधित क्षेत्र के चुनाव रद्द किए जाएंगे और ऐसा हुआ भी। इसके बावजूद असम कांग्रेस ने चुनाव आयोग से पूरा चुनाव रद्द करने की बेहूदा मांग की, लेकिन कांग्रेस का ही दोगला चरित्र देखिए कि जब बंगाल में चार-पांच ईवीएम के साथ टीएमसी प्रत्याशी के घर से एक पोलिंग अधिकारी पकड़ा गया तब इसी कांग्रेस के नेताओं ने अपने होंठ सिल लिए हालांकि, आयोग ने अपनी प्रक्रिया का पालन पहले की तरह ही किया।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जो तीसरी बार 200 सीटें ईवीएम की वोटिंग के जरिए जीतकर सीएम पद की शपथ ले चुकी हैं, वो अपनी सीट नंदीग्राम से मिली हार के लिए सारा ठीकरा ईवीएम पर फोड़ रही है। ये दिखाता है कि जो जहां जीत जाए वहां सब बेहतरीन, लेकिन जहां हार जाए वहां चुनाव आयोग द्वारा पक्षपात का आरोप लगा दो। ममता जैसी नेता को इस तरह की बेतुकी बात तनिक भी शोभा नहीं देती हैं, लेकिन मजबूरी है वो करें भी क्या, क्योंंकि नंदीग्राम में बीजेपी नेता सुवेंदु अधिकारी से मिली हार वो पचा नहीं पा रही हैं। इसलिए बंगाल में टीएमसी के गुंडे हिंसा का तांडव कर रहे हैं। वहीं इस मुद्दे पर जब ममता से राज्यपाल ने सवाल किया तो ममता ने सारा प्रशासन चुनाव आयोग के हाथ में होने का हवाला देकर अपना और अपने कार्यकर्ताओं का बचाव कर लिया। वहीं चुनाव आयोग अपने अधिकारियों की सुरक्षा को लेकर भी भय में है, इसलिए नंदीग्राम के रिटर्निंग अधिकारी की सुरक्षा बढ़ाई गई है।

और पढ़ें- लूटपाट, हिंसा, घरों में तोड़-फोड़, पश्चिम बंगाल में ममता सरकार अपने पुराने रिकार्ड्स तोड़ रही है

 ममता बनर्जी के पूरे चुनाव प्रचार को देखें तो उनका निशाना बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ज्यादा चुनाव में आयोग पर था। ममता आयोग के अंतर्गत काम कर रही अर्धसैनिक बलों की टीमों पर पक्षपात का आरोप लगाने के साथ उन पर बीजेपी समर्थक होने का ठप्पा लगा रही थीं। बीजेपी नेताओं की गलत बयानबाजी के बाद जब चुनाव आयोग उन पर कार्रवाई करता तो बीजेपी को कोई एतराज़ नहीं होता, लेकिन मुस्लिम वोटों को लेकर उनके बयान पर जब आयोग ने उन्हें चुनाव प्रचार से रोका तो ममता बिफर गईं। उनका ये रवैया दिखाता है कि उन्होंने इन चुनावों में अराजकता की पराकाष्ठा पार की है और हर वो संभव प्रयास किया है, जिससे चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर बट्टा लगाया जा सके।

पहले बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान विपक्षी दल आरजेडी ने आयोग पर सवाल खड़े किए और फिर वही पैटर्न ममता ने फॉलो किया और कांग्रेस जैसी 55 साल शासन कर चुकी देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी तो 2014 से ही हार के बाद चुनाव आयोग पर सवाल खड़ी करती रही है। आयोग पर निशाना साधने के लिए सबसे पहले ईवीएम को निशाना बनाया गया था। दावा किया गया कि ईवीएम हैक हो जाता है, लेकिन जब ईवीएम हैकिंग को लेकर चुनाव आयोग ने हैकोथॉन चलाया तो किसी भी पार्टी की हिम्मत नहीं हुई कि वो उसमे जा सके। यहां तक कि विधानसभा में ईवीएम हैकिंग का ज्ञान बांटने वाली नई नवेली आप आदमी पार्टी ने भी अपनी जुबान बंद कर ली।

और पढ़ें- हिंसा और हत्याओं के बीच, बंगाल को जगमोहन मल्होत्रा जैसे राज्यपाल की आवश्यकता है

वीवीपैट की सत्यापन प्रणाली के बाद ईवीएम की विश्वसनीयता पर कोई शक नहीं रहा। इसके चलते अब देश में विपक्ष के पास आयोग के विरोध में बोलने को कोई मुद्दा नहीं था, तो उन्होंने चुनाव आयोग के अधिकारियों को ही पक्षपाती बनाने का नया ट्रेंड शुरू किया है। चुनाव की तारीखों के ऐलान से लेकर एक-एक चीज़ के मैनेजमेंट के लिए विपक्ष हवा बनाता रहा है कि सबकुछ आयोग बीजेपी के इशारे पर करता है, जो कि सरासर बेबुनियाद है। बंगाल चुनाव के बाद अब अन्य पांच राज्यों में भी चुनाव हैं जिसमें उत्तर प्रदेश भी शामिल है। ऐसे में ममता से सीख लेकर संभवतः उत्तर प्रदेश की क्षेत्रीय विपक्षी पार्टियां भी चुनाव आयोग को कटघरे में खड़ा करेगीं, क्योंकि लगातार मिल रही हार के बाद इनका मुख्य मकसद आयोग की विश्वसनीयता को शून्य करने का ही रह गया है।

देश की ये सभी राजनीतिक पार्टियां निर्वाचन आयोग को कटघरे में खड़ा कर एक तरह से चुनावी प्रक्रिया पर सवाल खड़ा करती जा रही हैं, ऐसे में एक ऐसी स्थिति भी आ सकती है जब देश में स्वतंत्र और सहज रूप से चुनाव संपन्न कराने में मुश्किलें आएंगी और इसकी जिम्मेदार जनता द्वारा नकारी गई विपक्षी राजनीतिक पार्टियां ही होंगी।

Exit mobile version