‘1 मिलियन लोगों की हुई मौत, 50 मिलियन लोग खतरें में है’, Covid में कैसी होती भारत की स्थिति अगर PM राहुल गांधी होते

सोचिए अगर PM मोदी की जगह कोई और PM होता, तो क्या होता भारत का?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जगह PM राहुल गाँधी

Business Today

पिछले कुछ महीनों से कोरोना की भयंकर दूसरी लहर देखने को मिली है। भारत में चारो तरफ कोरोना का ही तांडव दिखाई दे रहा है। ऐसे में यह स्वाभाविक है कि जनता सत्ता में बैठे नेता को ही जवाबदेह ठहरायेगी और इस समय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के शीर्ष सत्ता पर हैं। उनके शासन से कई लोग नाराज दिखाई दे रहे हैं। पीछे मुड़कर देखें तो वास्तव में कई चीजों को बेहतर तरीके से संभाला जा सकता था, परन्तुं क्या कभी आपने अन्य विकल्प पर विचार करने का प्रयास किया है? क्या होता अगर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी प्रधान मंत्री नहीं होते और कोई और होता?
ऐसे में TFI के founder अतुल मिश्रा ने ट्विटर पर कल्पना के माध्यम से एक alternet history लिखी है कि आखिर क्या होता अगर नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री नहीं होते!

भारत में पिछले कुछ महीनों के दौरान ऐसी कई चीजें हुई जिससे किसी भी देश की कमर टूट चुकी होती। कोरोनोवायरस की पहली लहर को सफलतापूर्वक नियंत्रित करने से लेकर विनाशकारी दूसरी लहर के तांडव तक, पश्चिम बंगाल में लगभग जीत से लेकर टीएमसी की प्रचंड जीत के बाद बंगाल में चुनावी हिंसा तक, इजरायल के BFF होने से लेकर फिलिस्तीन को खुश करने तक।

ट्विटर द्वारा कांग्रेस विरोधी समाचारों को फर्जी बताने से लेकर दुनिया भर में B.1.617 संस्करण को भारतीय वेरिएंट के रूप में लेबल करने और भारत में हो रही कोविड से मौतों की शर्मनाक कवरेज तक। यही नहीं ऑक्सीजन की कमी, दवा की कमी, वेंटिलेटर की कमी और बड़े आर्थिक उछाल की संभावना पर सवाल भी उठे हैं। किसी के लिए भी देश पर आये संकट के समय में सरकार के मुखिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दोष देना स्वाभाविक है।

आईए अब देखते हैं पिछले 7 वर्षों का एक वैकल्पिक इतिहास, आज जो भारत कोरोना से लड़ाई लड़ रहा है, क्या वही भारत इस वैकल्पिक इतिहास में भी रहता है या फिर इससे कहीं कमजोर और दूसरे देशों पर आश्रित रहने वाला भारत होगा?

वर्ष 2014:

भारतीय जनता पार्टी के नरेंद्र मोदी आम चुनाव जीत की आश लगाये बैठे हैं और कांग्रेस कमजोर दिख रही है, लेकिन कहते है ना कि परिणाम का दिन आश्चर्यों से भरा होता है। कुछ इसी तरह शुरू में तो भाजपा ने कांग्रेस पार्टी पर बढ़त दर्ज की, लेकिन सुबह 11 बजे के बाद चीजें बदलने लगी।

दिन के अंत तक भाजपा को झटका लगता है। बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरती है लेकिन उसके पास बहुमत से 40 सीटें कम है। तब शुरू होती है कांग्रेस का क्षेत्रीय दलों के साथ गठजोड़ की प्रक्रिया। राहुल गांधी गांधी-नेहरू परिवार से भारत के प्रधानमंत्री बनने वाले चौथे व्यक्ति बन जाते हैं।

चोजों को ध्यान में रखते हुए राहुल गांधी अब कोई जोकर नहीं हैं, बल्कि अब राष्ट्रीय मीडिया युवराज के पीछे-पीछे घूमना शुरू कर देती है। उनकी गलतियों को गायब कर दिया जाता है। प्रमुख अर्थशास्त्री दिन-रात उनके कौशल की प्रशंसा करते हैं। हालाँकि, आंकड़ों पर उनका नियंत्रण नहीं है इस कारण अर्थव्यवस्था फिसलती है पर लोगों को दिखाई नहीं देती है।

आधार अभी भी एक गैर-मानकीकृत आईडी कार्ड बना हुआ है और अंततः अपनी प्रासंगिकता खो देता है। Insolvency and Bankruptcy Code के अभाव में कंपनियां शेयर धारकों के साथ धोखाधड़ी करती रहती है। Fugitive Economic Offenders Act के अभाव में घोखाधड़ी करने वाले करोड़पति भगोड़े भाग कर मौज कर रहे हैं। मेन स्ट्रीम मीडिया हर चीज को ठंडे बस्ते में रखती जाती है।

Standard GST के अभाव में लोग सौ अलग-अलग टैक्स का भुगतान कर रहे हैं। Food Security bill जैसी समाजवादी नीतियों को ऐसे समय में लागू किया गया है जब मध्यम वर्ग ख़राब होती अर्थव्यवस्था की मार झेल रहा होता। मूडीज ने भारत को डाउनग्रेड किया, S&P का कहना है कि भारत की कहानी खत्म हो गई है। IMF की तो भारत में दिलचस्पी ही नहीं है।

अल्पसंख्यक तुष्टीकरण एक नई ऊंचाई पर पहुंच गया है। Communal violence Bill पारित हो चुका है और हिंदू अब अपने ही देश में अल्पसंख्यक समुदायों के रहम पर है। कृषि ऋण माफी और अल्पसंख्यक सब्सिडी में लगातार वृद्धि की गयी है।

हालाँकि कांग्रेस ने जब महसूस किया कि भाजपा के सोशल मीडिया समर्थक शक्तिशाली हैं तो उन्होंने राइट विंग मीडिया के खिलाफ चाबुक चलाना शुरू कर दिया। प्रमुख सोशल मीडिया influencers को मामूली आधार पर गिरफ्तार किया जाने लगा।

उरी में पाकिस्तान ने भारतीय सैनिकों पर हमला किया, राहुल सरकार ने उन्हें माफ कर दिया। डोकलाम में भारतीय और चीनी सेनाओं के बीच गतिरोध शुरू हो जाता है, जो राहुल सरकार द्वारा चीनियों को भारत की कुछ जमीन सौंपे जाने के बाद समाप्त होती है।

एक और आतंकी हमले ने भारत को झकझोर कर रख दिया। पुलवामा में 40 से अधिक सीआरपीएफ जवान मारे गए। हालाँकि, राहुल सरकार ने पाकिस्तानी सरकार को डोजियर सौंपे, जिसके लिए पाकिस्तान में भारत की हंसी उड़ाई गई।

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ऐसे समय में एक मजबूत जन आंदोलन के अभाव में राम मंदिर का मामला अब भी सुलझता नहीं दिखाई दे रहा है और दूर कौड़ी बना हुआ है।

एक वर्ष बाद ही 2020 में एक घातक महामारी ने दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है। आर्थिक रूप से कमजोर भारत पर लॉकडाउन लागू करने का दबाव है, लेकिन राहुल गांधी लॉकडाउन लागू नहीं करते हैं, क्योंकि देश में खाद्य भंडार से ले कर सभी आवश्यक वस्तुओं की कमी है। एक हफ्ते में ही दस लाख भारतीय मारे जा चुके हैं और 50 लाख से ज्यादा अपनी जिंदगी के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

पिछले 6 साल में कोई भी नया एम्स या निजी अस्पताल नहीं बना है और ऐसे में भारत अब पश्चिम की mercy पर है। भारत ने आखिरकार लॉकडाउन की घोषणा की लेकिन तब तक community transmission शुरू हो चुका है। अब इस वायरस पर कोई रोक नहीं है और यह गावों तक पहुँच चुका है। गावों में हर घर से चीखे निकल रहीं हैं, लोग चिकित्सा के आभाव में न अस्पताल जा पा रहे हैं और न घर पर इलाज करवा पा रहे हैं।

इस अवसर का चीन सस्ते मास्क, पीपीई किट और घटिया वैक्सीन के साथ भारतीय बाजारों में चीनी वस्तुओं का बाढ़ लाने के लिए उपयोग करता है।

हलाँकि राहुल गाँधी के नेतृत्व में भ्रष्टाचार और अन्य मुद्दे मेरी कल्पना से परे हैं।

तो हाँ, ऐसे में आज अगर चीजे नियंत्रण में है तो प्रत्येक भारतीय द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दोष देना स्वाभाविक है, लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि वह कितने मोर्चों पर लड़ रहे हैं। वह हमारे पास अब तक के सबसे अच्छे विकल्प हैं और लंबे समय तक देश में कोई विकल्प नहीं होगा।

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