कोरोना वायरस के कारण देश भर में चिंता की स्थिति बनी हुई है। लोग अपने घरों से निकलने से डर रहे हैं। इसी बीच खबर आई है कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में एक साथ 34 से ज्यादा स्टाफ, जो कोविड से संक्रमित था, अब मृत्यु को प्राप्त हो चुके हैं। इसका ठीकरा प्रशासन ने राज्य सरकार पर फोड़ने का प्रयास किया है, परंतु क्या यही सच है?
कोविड से जितना नुकसान बाकी राज्यों को हो रहा है, उतना ही उत्तर प्रदेश को भी हुआ है। हालांकि लोगों की जिजीविषा और प्रशासनिक प्रतिबद्धता के चलते उत्तर प्रदेश ने वुहान वायरस की दूसरी लहर पर काफी हद तक नियंत्रण पाने में सफलता प्राप्त की है। लेकिन अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय तो कुछ और ही कथा बता रहे हैं।
वहाँ अब तक 18 दिनों में 34 सदस्य कोविड से संक्रमित भी हुए और मृत्यु को भी प्राप्त हुए। इनमें 16 सक्रिय टीचर तो 18 सेवानिर्वृत्त टीचर भी शामिल है। इसका ठीकरा विश्वविद्यालय के प्रशासन ने राज्य सरकार पर फोड़ने का प्रयास किया है, जिनकी ‘लापरवाही’ के कारण 34 स्टाफ सदस्यों को अपने प्राण गँवाने पड़े। लेकिन सच्चाई तो कुछ और ही है।
कई थ्योरी और साक्ष्य सामने आए हैं, जिनके कारण ऐसा प्रतीत होता है कि AMU के स्टाफ सदस्य राज्य सरकार की बेरुखी से कम, और विश्वविद्यालय की प्रशासनिक लापरवाही से अधिक मरे हैं। एक कारण यह हो सकता है कि AMU प्रशासन अपनी धार्मिक आस्था के कारण इस लापरवाही की भेंट चढ़ा हो।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय स्पष्ट रूप से एक अल्पसंख्यक संस्था है, और कोविड को लेकर मुसलमानों में तरह तरह की भ्रांतियाँ रही है। AMU प्रशासन ने कई बार वुहान वायरस को लेकर प्रशासनिक कार्रवाई एवं टीकाकरण को लेकर भी आपत्ति जताई है।
ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि अपने आडंबरों में अंधे विश्वास के कारण संभव है कि AMU के 34 स्टाफ सदस्यों ने अपने प्राण गँवाए हो। लेकिन यह कैसे संभव है? संभव है, क्योंकि अधिकतर प्रोफेसर न्यूनतम 40 वर्ष से नीचे के नहीं रहे होंगे, और चूंकि टीकाकरण का दायरा 1 मई से पहले 45 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों के लिए खुला हुआ था, इसलिए ये भी नहीं कहा जा सकता कि इनके पास कोई विकल्प ही नहीं था।
यहाँ तक कि कई वैज्ञानिक रिपोर्ट्स में ये निकलकर सामने आया है कि टीकाकरण कराने के बाद कोविड से मृत्यु की दर बहुत कम हो जाती है, क्योंकि कोविड वैक्सीन की दोनों डोज़ लगने के बाद महज 0.04 प्रतिशत लोगों को ही कोविड से संक्रमित होने का खतरा रहता है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में जो 34 स्टाफ सदस्य मृत्यु को प्राप्त हुए हैं, वो केवल दो ही कारण से हुए है – विश्वविद्यालय की हठधर्मिता या फिर निजी लापरवाही के कारण।
जब राज्य प्रशासन हर प्रकार की सुविधा देने को तैयार हो, और टीकाकरण के लिए राज्य में युद्धस्तर पर अभियान चलाया जा रहा हो, उसके बाद भी एएमयू जैसे संस्थान में 34 लोग कोविड से मारे जाएँ, तो इसमें राज्य सरकार कहीं से भी दोषी नहीं सिद्ध होती।