कहने को वुहान वायरस के जरिए चीन विश्व भर में अपना वर्चस्व जमाना चाहता था, लेकिन कोरोना ने उलटा उसे कहीं का नहीं छोड़ा है। मीडिया में उसके चाटुकार चाहे जितना भी भ्रम फैलाए, सच्चाई तो यही है कि चीन पाकिस्तान का वो बिछड़ा भाई है, जिसे कोई भी अब पटक-पटक कर धो सकता है, जैसे हाल ही में ऑस्ट्रेलिया ने कर दिखाया।
ऑस्ट्रेलिया ने हाल ही में चीन के लिए एक ऐसा जाल बिछाया, जिसमें फँसकर चीन ने अपनी ही भद्द पिटवाई है। चीन ने सोचा कि ऑस्ट्रेलिया उसके आर्थिक प्रहार से ढेर हो जाएगा, लेकिन ऑस्ट्रेलिया ने अपने निर्णयों से चीन को ऐसा फँसाया कि उसने चीन में अपना निवेश हटाना भी शुरू कर दिया और चीन बस देखता रह गया।
जी हाँ, आपने ठीक सुना। ऑस्ट्रेलिया अपने आप को चीन से पूरी तरह अलग-थलग करने में लग गया है। मज़ें की बात तो यह है कि पिछले एक वर्ष में ऑस्ट्रेलिया ने चीन में अपना निवेश 25 प्रतिशत तक हटा लिया है और चीन कुछ भी नहीं कर पाया। उलटा चीन ऑस्ट्रेलिया के बिछाए जाल में फँसता ही चला गया और उसने अपनी हेकड़ी दिखाने के चक्कर में अपने ही देश की अर्थव्यवस्था की बधिया बिठा दी।
वैसे ऑस्ट्रेलिया को चीनी अर्थव्यवस्था से कोई खास लेना देना नहीं था। प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन का चले तो ऑस्ट्रेलिया जितना चीनी निवेश से दूर रहे, उतना ही बेहतर है। इसलिए वह हमेशा ही ऑस्ट्रेलिया को किसी भी प्रकार के चीनी प्रभाव से मुक्त करने के लिए प्रयासरत रहे हैं, चाहे उसके लिए चीन के बहुप्रतिष्ठित BRI प्रोजेक्ट को खुलेआम चुनौती ही क्यों न देनी पड़े।
लेकिन जिस युग में द्विपक्षीय फ्री ट्रेड एग्रीमेंट और निवेश डील के कागज़ी भूल भुलैया से निकल पाना भी टेढ़ी खीर लगे, वहाँ पर अपने विरोधी से निवेश हटवाना भी कला है, जिसमें स्कॉट मॉरिसन काफी निपुण लगते हैं। चीन के पास ऑस्ट्रेलिया के पैंतरों को ध्वस्त करने के अनेक उपाय थे, लेकिन जिनपिंग के घमंड ने सब गुड़ गोबर कर दिया।
चीन को लगा कि ऑस्ट्रेलिया उसके ‘वुल्फ़ वॉरियर’ कूटनीति के सामने एक पल भी टिक नहीं पाएगा। जब ऑस्ट्रेलिया ने चीन की हेकड़ी पर उंगली उठाई और वुहान वायरस को लेकर निष्पक्ष जांच की मांग की, तो चीन ने बिना सोचे समझे ऑस्ट्रेलिया में होने वाले निर्यात, जैसे जौ, वाइन, कोयला इत्यादि पर टैरिफ दर को काफी हद तक बढ़ा दिया।
ठीक वैसे ही जब ऑस्ट्रेलिया ने हाल ही में विक्टोरिया प्रांत के BRI डील को रद्द करवाया, तो चीन ने स्थिति को संभालने के बजाए उलटे उसे और भी बिगाड़ दिया। चीन ने चीन ऑस्ट्रेलिया SED [Strategic Economic Dialogue] के अंतर्गत होने वाली समस्त बातचीत को ही रद्द करवा दिया था। यदि चीन के पूर्व प्रशासक ज़िंदा होते, तो जिनपिंग की इस हठधर्मिता पर अपना माथा जरूर पीटते।
यदि चीन चाहता तो अपनी कूटनीति के बल पर और अपने लुभावने वादे के बल पर वह ऑस्ट्रेलिया के दांव को सफल होने से पहले ही ध्वस्त कर सकता था। लेकिन सत्ता के नशे में चूर जिनपिंग और उसके चाटुकारों ने वही गलती की, जो उन्होंने भारत के परिप्रेक्ष्य में पूर्वी लद्दाख में घुसपैठ कर के की थी और परिणाम अब सबके सामने हैं।