केंद्र सरकार ने बंगाल में चल रही हिंसा को देखते हुए फैसला किया है कि वह अपने विधायकों को अर्धसैनिक बलों की सुरक्षा मुहैया करवाएगी। यह एक अच्छा फैसला है क्योंकि भाजपा की योजना है कि वह लोकतांत्रिक तरीके से तृणमूल द्वारा की जा रही हिंसात्मक कार्रवाई का जवाब देगी।
ऐसे में यदि भाजपा विधायकों के साथ भविष्य में किसी प्रकार की हिंसा होती भी है तो कम से कम केंद्रीय बलों द्वारा उनकी सुरक्षा सुनिश्चित कर ली जाएगी।
पिछले वर्ष जुलाई में पश्चिम बंगाल के दिनाजपुर जिले में एक भाजपा विधायक को मारकर बाजार में लटका दिया गया था। यह घटना संभवतः भाजपा नेताओं में दहशत पैदा करने के लिए हुई थी। दुर्भाग्य से पश्चिम बंगाल पुलिस की जांच इतनी धीमी और भेदभावपूर्ण रहती है कि इस मामले में आज तक किसी को पकड़ा नहीं जा सका। यह हत्या एक ऐसे समय में हुई थी जब भाजपा अपना जनाधार बढ़ाने के लिए संघर्ष कर रही थी।
किन्तु अभी पश्चिम बंगाल में जो हालात हैं वह और भी घातक और तनावपूर्ण हैं। भाजपा मुख्य विपक्षी दल बन गई है, चुनाव बाद हुई हिंसा ने भाजपा और तृणमूल के रिश्तों को इतना बिगाड़ दिया है कि इसके निकट भविष्य में सुधरने के आसार नहीं हैं। ऐसे में इस बात की संभावना को नकारा नहीं जा सकता कि आने वाले समय में भाजपा विधायकों पर हमले बढ़ सकते हैं।
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भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने यह तो सुनिश्चित करने का प्रयास किया है कि भाजपा के विधायकों पर हमले न हों, किंतु आम कार्यकर्ताओं की सुरक्षा का क्या होगा, इसे लेकर भाजपा आलाकमान के पास कोई योजना नहीं है। अभिजीत सरकार जैसे लोगों की दर्दनाक मौत ने जो दहशत फैलाई है उससे कार्यकर्ताओं को कैसे बाहर निकाला जाएगा।
भाजपा नेतृत्व की यह नैतिक जिम्मेदारी तो है ही कि वह आम कार्यकर्ता की सुरक्षा करे, साथ ही यह आम कार्यकर्ता का लोकतांत्रिक अधिकार भी है कि वह अपने राजनीतिक विचारों को बिना भय के अभिव्यक्त कर सके। किन्तु इन लोगों के नागरिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए केंद्र सरकार कोई कदम नहीं उठा रही, जिसे संविधान के प्रहरी की भूमिका निभानी चाहिए थी। न ही कोर्ट ठीक प्रकार से मामले को संज्ञान में ले रहा है।
पश्चिम बंगाल में हालात कितने बिगड़ गए हैं यह किसी से छुपा नहीं है। ऐसा भी नहीं है कि राजनीतिक हिंसा का शिकार केवल भाजपा के कार्यकर्ता ही हुए हैं। तृणमूल भाजपा की राजनीतिक शत्रुता के नाम पर हिंदुओं के विरुद्ध हिंसा की जा रही है, वैसे हालात पैदा किए जा रहे हैं जैसे कश्मीर में हुआ करते थे।
हिन्दू परिवार असम की ओर पलायन कर रहे हैं। मेन स्ट्रीम मीडिया ने हिंसा की रिपोर्टिंग तक बंद कर दी है। किसी जागरूक पत्रकार ने जमीनी हकीकत पर कोई रिपोर्ट तैयार करने की जहमत नहीं उठाई।
हिंसा पीड़ित लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया जाना, लोकतंत्र की मृत अवस्था को दिखाता है। भाजपा नेतृत्व अपने विधायकों की सुरक्षा कर रहा है, यह अच्छी बात है। किंतु उन लाखों लोगों का क्या होगा जिन्हें न राज्य सरकार सुरक्षा देगी, ना कोर्ट।
भाजपा नेतृत्व लोकतांत्रिक तरीके से उन शक्तियों का सामना करना चाहता है, जो लोकतंत्र में विश्वास नहीं करतीं। ऐसे में अगर भाजपा इस लड़ाई को जीत भी लेती है तो भी उसकी कीमत बहुत बड़ी होगी, और वो कीमत अभागे कार्यकर्ताओं को ही चुकानी पड़ेगी।