2 मई को सम्पन्न हुए विधानसभा चुनाव भाजपा समर्थित एनडीए के लिहाज से मिश्रित रहे। जहां असम में सरकार बनाने के अलावा पुडुचेरी और तमिलनाडु में भाजपा ने अपनी पैठ बनाई, तो वहीं केरल और बंगाल में जनाधार बढ़ने के बावजूद भाजपा को मनचाहा परिणाम नहीं मिला।परंतु पुडुचेरी में अभी जो हो रहा है, वो इस बात का सूचक है कि भाजपा अब दक्षिण राज्यों में जूनियर पार्टनर बनकर संतुष्ट नहीं रहेगी।
पुडुचेरी में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार आई है। ऑल इंडिया एनआर काँग्रेस के अध्यक्ष एन रंगासामी के नेतृत्व में एनडीए ने 30 में से 16 सीटें प्राप्त करने में सफल रही हैं, जिसमें ऑल इंडिया एन आर काँग्रेस को सर्वाधिक 10 और भाजपा को 6 सीटें प्राप्त हुई हैं। वहीं दूसरी ओर दशकों तक पुडुचेरी पर एकछत्र राज्य करने वाली काँग्रेस को मुश्किल से 2 सीटें ही मिली
परंतु बात यहीं पर नहीं रुकती। न्यूज18 की रिपोर्ट की माने तो भाजपा पुडुचेरी को आधारशिला बनाकर दक्षिण भारत में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहती है, और वह सिर्फ अन्य पार्टियों के लिए जूनियर पार्टनर बनकर संतुष्ट नहीं रहना चाहती।
उक्त रिपोर्ट के अंश अनुसार, “सूत्रों की माने तो भारतीय जनता पार्टी ने पुडुचेरी में ऑपरेशन लोटस का दूसरा भाग शुरू कर दिया है। केंद्र ने अपनी ओर से 3 सदस्यों को नामांकित किया है, जिससे अब भाजपा की संख्या ऑल इंडिया एन आर काँग्रेस से महज 1 सदस्य कम, यानि 9 सदस्य हैं। इसका क्या असर पड़ेगा? चुनाव से पहले कॉंग्रेस का बहुमत हारने का संदेश स्पष्ट है – अब भाजपा चाहते हैं कि राज्य में उनका भी मुख्यमंत्री हो, ताकि दक्षिण भारत में उसका प्रभुत्व बढ़े और भाजपा की छवि एक अखिल भारतीय पार्टी के रूप में स्थापित हो सके।”
लेकिन भाजपा ऐसा क्यों कर रही है? भाजपा जानती है कि इस समय एन रंगासामी अपने दम पर सरकार बनाने में सक्षम हैं, लेकिन वे पुडुचेरी में काँग्रेस का प्रभाव नहीं बढ़ने देना चाहते। ऐसे में ऑल इंडिया एन आर काँग्रेस की इसी असहजता का लाभ उठाकर अपने लिए पुडुचेरी में एक अलग स्थान बनाना चाहती है।
इसी प्रकार से दक्षिण भारत के अन्य राज्यों में भी भारतीय जनता पार्टी अपना प्रभाव बढ़ा रही है, ताकि उसे अन्य पार्टियों पर जरूरत से ज्यादा न निर्भर होना पड़े। उदाहरण के लिए तेलंगाना में इस समय तेलंगाना राष्ट्र समिति के सामने केवल भाजपा ही ऐसी पार्टी है, जो उसे सीधे मुंह चुनौती दे सकती है।
लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा ने सभी को चौंकाते हुए 4 लोकसभा सीटों पर विजयी होकर तेलंगाना में प्रमुख विपक्ष का दर्जा प्राप्त किया, और ग्रेटर हैदराबाद नगरपालिका चुनाव में भी वह प्रमुख विपक्ष के रूप में अपने आप को स्थापित करने में सफल रहा।
इसके अलावा तमिलनाडु में भले ही एआईएडीएमके अपनी लाज बचाने में सफल रहे, लेकिन भाजपा उसपर अधिक निर्भर नहीं रहना चाहती। जिस प्रकार से इतिहास रचते हुए भाजपा ने 4 सीटों पर विजय प्राप्त की, उससे उनका उद्देश्य स्पष्ट है – तमिलनाडु में भाजपा के सपने बहुत बड़े हैं, और वह सिर्फ AIADMK का कनिष्ठ पार्टनर नहीं रहना चाहता।
अब जिस प्रकार से वह पुडुचेरी में अपना प्रभुत्व बढ़ा रहा है, उससे भाजपा का संदेश स्पष्ट है – अभी तो बस शुरुआत है।