पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में BJP के सत्ता से दूर रह जाने के कई कारण हैं। मुख्य तौर पर विश्लेषक मान रहे हैं कि ममता बनर्जी के राजनीतिक कद के कारण बंगाल में BJP सत्ता हासिल नहीं कर सकी, ये एक कारण हो सकता है, लेकिन BJP को इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि उसने TMC छोड़कर आए जिन दलबदलू नेताओं को टिकट दिए, उनमें से कौन से ऐसे थे जिन्होंने BJP को ही नुकसान पहुंचाया, यकीनन बहुत से थे। इन लोगों को टिकट मिलना स्थानीय कार्यकर्ताओं के लिए झटका था, जिसके चलते ये भी माना जा रहा है कि बंगाल की सत्ता न पाने में कार्यकर्ताओं की नाराजगी एक बड़ी वजह है।
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजों में TMC से BJP में आए दलबदलुओं की बात करें तो सुवेंदु अधिकारी बीजेपी के लिए एक्स फैक्टर साबित हुए हैं। उन्हें जायंट किलर माना जा रहा है, क्योंकि उन्होंने ममता को ही हरा दिया। इसके अलावा मिहिर गोस्वामी ही एक ऐसे नेता थे जिन्हें जीत मिली। शेष अन्य टीएमसी से बीजेपी में आकर चुनाव लड़ रहे बड़े नामों का डब्बा गोल हो गया। ऐसा नहीं है कि ये कोई टक्कर देकर हारे हैं, सभी को जनता ने खारिज कर दिया है।
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सुवेंदु के बाद पूर्व कैबिनेट मंत्री राजीब बनर्जी जिनकी जीत तय मानी जा रही थी, उनकी करारी हार हुई है। इतना ही नहीं सौरव गांगुली की करीबी दोस्त वैशाली डालमिया से लेकर रुद्रनील घोष, रथिन चक्रवर्ती, रवीन्द्रनाथ भट्टाचार्य जैसे सभी दिग्गज नेताओं को टीएमसी उम्मीदवारों ने एक बड़े अंतर से धूल चटाई है, जो दिखाता है कि दलबदलुओं पर BJP का दांव खेलना उन्ही पर उल्टा पड़ गया है, लेकिन इसकी वजह क्या थी।
दरअसल, इन लोगों की हार को लेकर ये माना जा रहा है कि BJP के स्थानीय कार्यकर्ताओं ने इनकी उम्मीदवारी पर नकारात्मक रुख दिखाया। वो कार्यकर्ता जिसने इन्हीं विधायकों के खिलाफ पांच साल जनता में संदेश पहुंचाया और टीएमसी के गुंडों का सामना किया। पांच साल बाद चुनाव आने पर वो ही पाला बदलकर बीजेपी में आ गए। ऐसे में इन लोगों के लिए उन्हीं उम्मीदवारों के लिए प्रचार करना मुश्किल था। कार्यकर्ताओं के बीचों इस बात को लेकर आंतरिक रूप से आक्रोश था, वो बीजेपी के मीडिया मैनेजमेंट में नहीं दिखा।
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टिकट बंटवारों के दौरान कार्यकर्ताओं में उदासी देखने को भी मिली थी, लेकिन उस दौरान उन उदासियों क़ो भी खास तवज्जो नहीं मिली। चुनाव में असफलता के बाद अब विश्लेषणों में ये सब कारण निकल कर आ रहे हैं। ऐसे में BJP को इन चुनावों से एक संदेश भी मिला है कि उसे दलबदलुओं पर ज्यादा विश्वास नहीं करना चाहिए और यदि उन्हें टिकट दिया जा रहा है, तो टिकट बंटवारे से पहले स्थानीय कार्यकर्ताओं की राय अवश्य जाननी होगी।