2021 के विधानसभा चुनाव काफी रोमांचक रहे हैं। कहीं किसी पार्टी को सफलता तो कहीं किसी पार्टी को असफलता का स्वाद चखना पड़ा है। परन्तु इन चुनावों में बीजेपी को कुछ फायदा जरूर हुआ है पर उसे कई सबक इन चुनावों से लेने चाहिए। चलिए अब चुनावों के नतीजों पर नजर डालने के साथ छोटा सा विश्लेषण कर लेते हैं। 2021 में 4 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेश में चुनाव हुआ – बंगाल, तमिलनाडु, केरल, असम एवं पुडुचेरी।
इनमें बंगाल में तृणमूल कांग्रेस लगातार तीसरी बार सत्ता वापसी लगभग तय हो गयी है, और इस वीडियो के बनाये जाने तक चुनाव आयोग के प्रारम्भिक डेटा के अनुसार 292 सीटों में से वह 206 सीटों पर बढ़त बनाती दिख रही हैं। वहीं, लाख प्रयासों के बावजूद भारतीय जनता पार्टी को प्रमुख विपक्ष के पद से संतोष करना पड़ा है, क्योंकि अल्पसंख्यक वोटों का एकजुट होना और कोरोना की दूसरी लहर भाजपा की लोकप्रियता को सीटों में न परिवर्तित कर पाने के पीछे एक प्रमुख कारण माना जा रहा है। हालाँकि, भाजपाने तीन सीट से लगभग तिहाई के आंकड़े तक का सफर तय किया है, लेकिन इसके बाद भी परिणाम भाजपा नेतृत्व की आशा ने अनुरूप नहीं रहे हैं। इन चुनावों में भाजपा के लिए कई सन्देश छुपे हैं। वहीं असम में भाजपा अपनी सरकार के साथ-साथ अपनी लोकप्रियता कायम रखने में भी सफल रही है, और ये CAA विरोधियों के लिए किसी करारे तमाचे से कम नहीं है।
अब तक चुनाव आयोग के प्रारम्भिक डेटा के अनुसार असम में एनडीए ने बहुमत के आँकड़े यानि 64 से कहीं ज्यादा 78 सीटों पर बढ़त बनाई हुई है, जिसमें काफी हद तक असम के उपमुख्यमंत्री और पूर्वोत्तर में भाजपा के चेहरे के तौर पर सामने आए हिमन्ता बिस्वा सरमा का बहुत बड़ा हाथ है। वहीं कांग्रेस को यहाँ हार नसीब हुई है। असम के साथ साथ पुडुचेरी से भी खुशखबरी आई है। ये राज्य अधिकतर कांग्रेस या डीएमके के कब्जे में रहता था और इसे एक प्रकार से तमिलनाडु का दूसरा भाग माना जाता था। लेकिन एनडीए के सहयोगी दल ऑल इंडिया एन॰आर॰ कांग्रेस के सहयोग से भाजपा ने ये भ्रम तोड़ने में सफलता पाई है और वर्तमान डेटा के अनुसार पुडुचेरी में एनडीए की सरकार बनती दिखाई दे रही है, जिसमें भाजपा का भी बराबर का योगदान है। एक समय राहुल गांधी ने दावा किया था कि उन्हेंउत्तर भारत से ज्यादा दक्षिण भारत की राजनीति अधिक लोकप्रिय लगती है। अमेठी छोड़ वो वायनाड गए थे, परन्तु इस बार उनका वहां जाना ही पार्टी के लिए हार का कारण बन गया कहें तो गलत नहीं होगा।
केरल में एक बार फिर वामपंथी मोर्चा वापसी करने को तैयार है। वहीं कांग्रेस समर्थित यूडीएफ कुल मिलाकर 50 सीटों का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाई है। ऐसे में यदि आगे चलके केरल काँग्रेस में फूट पड़ जाए तो हैरान होने की कोई बात नहीं है। वैसे ये पहली बार है कि केरल में कोई सत्तारूढ़ पार्टी दोबारा सत्त्ता में वापसी कर रही है। तमिलनाडु में भी हालत कुछ बेहतर नहीं है। चुनावी विशेषज्ञों ने दावा किया था कि डीएमके की सुनामी में सब बह जाएंगे, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। यह तमिलनाडु के इतिहास का पहला ऐसा चुनाव था जहां न करुणानिधि थे, और न ही जयललिता। इसके बावजूद सत्ताधारी एआईएडीएमके डीएमके को कांटे की टक्कर देते हुए दिखाई दिया।
वहीं इन दोनों राज्यों में भारतीय जनता पार्टी ने उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन करते हुए केरल में 4 तो तमिलनाडु में लगभग 5 सीटों पर बढ़त बनाई है। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि 2021 विधानसभा चुनावों में भाजपा ने उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया।
हालाँकि, इस बार के नतीजों में कोई पार्टी सबसे बड़ी लूजर साबित हुई है वो कांग्रेस है। जहाँ कांग्रेस को इन नतीजों से सीख लेते हुए पार्टी को मजबूत करने के लिए काम की आवश्यकता है चीफ सोर्स।