टीएमसी के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत का करियर मोदी विरोध के कारण हमेशा ही विवादों में रहा है, जिसकी शुरुआत 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी की जीत के साथ हुई थी। प्रशांत किशोर ने उसी दौरान बीजेपी के समाने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं जाहिर की थीं, लेकिन उन्हें बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कोई तवज्जो नहीं मिली।
2014 से राज्यसभा सीट की इच्छा पाल कर बैठे पीके ने बीजेपी को हराने के लिए बिहार, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल तक का सफर कर लिया, लेकिन अब टीएमसी की जीत के बाद पीके की राज्यसभा जाने की ख्वाहिश अब बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पूरी कर सकती हैं लेकिन ये पारी भी शायद ज्यादा लंबी न रहे, क्योंकि पीके के मिजाज में ही बगावत है।
पश्चिम बंगाल में ममता को जिताने की नीति से गए आईपैक के प्रमुख और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने बीजेपी को हराने के लिए जी जान लगा दिए। नतीजे टीएमसी के पक्ष में आए है, प्रशांत किशोर के सारे दावे सही साबित हुए और उन्हें अब संभवतः इन नतीजों का ईनाम भी मिलेगा। ख़बरें हैं कि अब प्रशांत किशोर को टीएमसी अपने कोटे से राज्यसभा भेजने की तैयारी कर रही है।
इतना ही नहीं राज्यसभा जाने वालों की इस सूची में प्रशांत किशोर के साथ बीजेपी से बगावत कर हाल ही में टीएमसी में आए यशंवत सिन्हा का नाम भी शामिल है। ये खबर प्रशांत किशोर के लिए बेहद अच्छी है क्योंकि उन्होंने ऐलान कर रखा है कि वो अब चुनावी रणनीति नहीं बनाएंगे। जानकारों का मानना है कि वो अब मुख्य धारा की राजनीति में दिखेंगे।
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पीके की 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी की जीत के बाद राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं सामने आईं थीं। बीजेपी ने उनकी ये महत्वकांक्षा पूरी नहीं की, और पीके की बीजेपी विरोध की नीतियों की वहीं से शुरुआत हो गई।
इसी मोदी विरोध की नीति का नतीजा था कि उन्होंने 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार के नेतृत्व में महागठबंधन का व्यूह रचा, और जीता भी, लेकिन ज्यादा दिन तक नहीं चला। बीजेपी के साथ फिर नीतीश ने सरकार बना ली। वहीं इसी दौरान प्रशांत किशोर ने उत्तर प्रदेश में भी संभावनाएं तलाशीं।
अखिलेश यादव की सपा और राहुल गांधी की कांग्रेस का गठबंधन बनाकर पीके ने ‘यूपी को ये साथ पसंद है’ की नौटंकी जनता के बीच बेचने की कोशिश की लेकिन ठाक के तीन पात ही रहा।
बिहार और यूपी दोनों से ही राजनीतिक भविष्य न बनता देख पीके ने बिहार में मुख्य धारा की राजनीति में आने का प्लान बनाया, और नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू में शामिल हो गए। जेडीयू ने उन्हें सम्मान के तौर पर राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जैसा अहम पद भी दिया, लेकिन पीके की आदत बगावत वाली है लिहाजा थोड़े ही दिनों में उनका मोह जेडीयू से भंग हो गया।
इसकी वजह यह भी थी कि जेडीयू और बीजेपी का गठबंधन था जबकि प्रशांत किशोर की राजनीति पीएम मोदी और बीजेपी विरोधी रही है। वहीं हाल में पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के लिए चुनावी रणनीतियां बनाकर यक़ीनन प्रशांत किशोर ने बेहतरीन काम किया है, जिसके नतीजे ममता के लिए सुखद हैं; लेकिन उन्होंने चुनावी रणनीतिकार का काम त्यागने की बात से ये संकेत दे दिए हैं कि वो सक्रिय राजनीति में आ सकते हैं।
ऐसे में प्रशांत किशोर को टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी अपनी जीत के बाद तोहफे के तौर पर बंगाल की राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान देने के साथ ही उनकी सात साल पुरानी राज्यसभा सीट की ख्वाहिश क़ो भी पूरा कर सकती हैं। इसके संकेत मिलने लगे हैं कि टीएमसी प्रशांत किशोर और यशवंत सिन्हा को राज्यसभा में ला सकती है।
इसकी इतर अगर प्रशांत किशोर के राजनीतिक इतिहास को देखें तो कहा जा सकता है कि जैसे नीतीश कुमार की जेडीयू में वो अभी फिट नहीं हो पाए, वैसी ही स्थिति टीएमसी में भी उनके साथ होगी; क्योंकि वो बगावत के लिए मशहूर हैं और पार्टी लाइन से हट कर बात करना उनकी पुरानी आदत नहीं है, जो ममता बनर्जी को पसंद आने वाली नहीं है।