हाल ही में गोवा कि फास्ट ट्रैक अदालत ने करीब आठ साल बाद तरुण तेजपाल को अपनी सहकर्मी के बलात्कार, यौन उत्पीड़न और जबरन बंधक बनाने के सभी आरोपों से बरी कर दिया है। बुधवार को गोवा ट्रायल कोर्ट ने तरुण तेजपाल को बरी करने के पीछे का पूरा ब्योरा पेश किया है। बता दें कि तरुण तेजपाल तहलका मैगजीन के एडिटर हुआ करते थे।
अगर हम पूरे मामले को संक्षेप में बताए तो, पीड़िता का आरोप था कि नवंबर, 2013 में तहलका मैगजीन की तरफ से गोवा में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान तरुण तेजपाल ने उनके साथ लिफ्ट में बदसलूकी की। आरोप की गंभीरता को देखते हुए तेजपाल के खिलाफ रेप (आईपीसी की धारा 376 के तहत) का मुकदमा दर्ज करके उन्हें गिरफ्तार भी किया गया था और सात महीने जेल में बिताने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दे दी थी।
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अब बात करेंगे की जब तेजपाल के ऊपर लगे आरोप इतना साफ था तो फिर भी गोवा ट्रायल कोर्ट के जज क्षमा जोशी ने बरी कैसे कर दिया! दरअसल कोर्ट ने अपने 527 पन्नों के आदेश में कहा कि, “रिकॉर्ड और सबूतों पर विचार करने के बाद… आरोपी को संदेह का लाभ दिया जाता है, क्योंकि शिकायतकर्ता महिला द्वारा लगाए गए आरोपों को साबित करने वाला ऐसा कोई सबूत नहीं है।”
कोर्ट ने इस दावे को खारिज किया कि महिला सदमे में थी। अदालत ने कहा है कि महिला की मां का बयान और पीड़िता के बयान की पुष्टि नहीं हुई कि वह कथित बलात्कार के कारण सदमे में थी।
न्यायाधीश ने आगे कहा कि “शिकायतकर्ता ने कई बयान उनके पुराने बयान से मेल नहीं खाते हैं। इतना ही नहीं रिकार्ड में ऐसे कई सबूत हैं जो शिकायतकर्ता लड़की की सच्चाई पर संदेह पैदा करते हैं, क्योंकि न तो शिकायतकर्ता लड़की ने और न ही उसकी मां ने अपनी गोवा में रुकने की योजना बदली।”
हमने ऊपर कोर्ट द्वारा दी गई तीन अहम दलीलों के बारे में जिक्र किया है। इन तीनों दलील को अगर हम देखे तो कोर्ट ने पीड़िता और उसकी मां के ऊपर व्यक्तिगत आरोप लगाए है। उनका चरित्र हनन किया गया है। अगर पीड़ित या उसकी मां गोवा में रुकना चाहती है तो इसमें कोर्ट को क्या आपत्ति होनी चाहिए। क्या उनके गोवा के रुकने से उनका दर्द कम हो जाता है या उनके गोवा में रहने से तेजपाल के ऊपर लगे आरोप कम हो जाते हैं।
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बहुत दुर्भाग्य की बात है कि आदरणीय न्यायाधीश ने पीड़िता और उसकी मां के गोवा में रुकने, जैसा तर्कहीन दलील देकर तेजपाल को बरी किया। जबकि तरुण तेजपाल ने अपने द्वारा लिखे गए पत्र में खुद कबूला है कि उसने इस घटिया कर्म को अंजाम दिया है। भारत में न्यायपालिका के लिए लोगों के मन में बहुत ज्यादा सम्मान है, ऐसे में गोवा ट्रायल कोर्ट के न्यायाधीश को पीड़िता और उसकी मां का चरित्र हनन करना शर्मनाक है।