महारानी में राबड़ी देवी एक हीरो हैं जो रणवीर सेना जैसे ‘आतंकियों’ से जूझती हैं जब आप एक ऐसी सीरीज़ देखें, जिसमें प्रारम्भिक दृश्य में ही आपको 1990 के दशक में बिहार के गाँव में पक्की सड़क दिखे, तो समझ जाइए कि सीरीज़ कैसी होने वाली है।
आम तौर पर राजनीतिक सीरीज़ में किसी को हीरो या विलेन बनाना अस्वाभाविक नहीं है, लेकिन जो सुभाष कपूर द्वारा निर्देशित ‘महारानी’ में किया गया है, उसे देख तो ‘भाग मिलखा भाग’ और ‘संजू’ भी आपको ऑस्कर मटीरियल लगेगा।
सोनी लिव जैसे प्लेटफ़ॉर्म से आप खराब वेब सीरीज़ की आशा नहीं करते हैं, क्योंकि उसने ‘Scam 1992’, ‘अवरोध’, ‘गुल्लक’ इत्यादि जैसे उत्कृष्ट वेब सीरीज़ से दर्शकों का मनोरंजन किया है। लेकिन जब पांचों उँगलियाँ बराबर नहीं हो सकती, तो फिर ये तो महज एक OTT प्लेटफ़ॉर्म है। सो ले आया सोनी लिव ‘महारानी’ जैसी घटिया वेब सीरीज़।
सुभाष कपूर द्वारा निर्देशित ‘महारानी’ कथित तौर पर राबड़ी देवी के जीवन से प्रेरित है, जिसमें मुख्य भूमिका निभाई है हुमा कुरैशी ने और उनका साथ दिया सोहुम शाह, विनीत कुमार, अतुल तिवारी, अमित सियाल इत्यादि जैसे अभिनेताओं ने।
ये कहानी है 1990 के बिहार की, जहां कैसे एक अनपढ़ महिला को अचानक बिहार की सत्ता सौंप दी जाती है, और कैसे वह इन परिस्थितियों का सामना करती है, यही इस सम्पूर्ण कथा का सार है। सबसे पहले तो इस वेब सीरीज़ को देखकर किसी को विश्वास नहीं होगा कि यह उसी सुभाष कपूर ने बनाई और लिखी है, जिसने कभी ‘जोली एल एल बी’, ‘फंस गए रे ओबामा’ जैसी यथार्थवादी फिल्में भी बनाई थी।
किसी वेब सीरीज़ या फिल्म की सफलता इस बात पर बहुत निर्भर है कि आप जनता को किस प्रकार से अपनी कथा यानि स्टोरी से आकर्षित करते हैं, और किस प्रकार से अपना संदेश धीमे धीमे, पर एक स्पष्ट रूप में स्थापित करते हैं। यही बात आपको ‘Scam 1992’ की तरह प्रसिद्धि भी दिला सकती है, और यही बात ‘महारानी’ की तरह आपको हंसी का पात्र भी बना सकती है।
‘महारानी’ के शुरुआती 10 मिनट में ही आप पर ये संदेश थोप दिया जाता है कि कैसे उच्च जाति के लोग एकदम नीच प्रवृत्ति के घिनौने लोग है, जिनसे लड़ना और जिन्हे समाप्त करने के लिए ‘नक्सलियों’ को विवश होन पड़ा था। यहीं से ही आपका इस वेब सीरीज़ से मोहभंग शुरू हो जाता है, और कथा भले ही काल्पनिक हो, परंतु इस बात में कोई संशय नहीं है कि महारानी वेब सीरीज़ की मंशा क्या थी। तो फिर, यहाँ विलेन कौन है? यहाँ पर वीर सेना और उनके ‘मुखिया जी’ के रूप में उच्च जातियों की नकारात्मक छवि पेश की गई है, जिनके जरिए 90 के दशक में नक्सलियों को नाकों चने चबवाने पर विवश करने वाली ‘रणवीर सेना’ पर कीचड़ उछाला गया है।
रणवीर सेना कई ऐसे बिहारियों से भरी हुई थी, जो नक्सलियों के उत्पात से तंग आ चुके थे, और जिन्हे कानून अपने हाथ में लेने को विवश होना पड़ा। इसमें ब्राह्मण, ठाकुर, कुर्मी, भूमिहार जैसे अनेक जातियाँ मौजूद थी, जिनमें से कुछ ने अपने अलग गुट भी बनाए थे, और इन्होंने बिहार से नक्सलवाद को लगभग उखाड़ फेंक दिया था।
लेकिन महारानी वेब सीरीज़ में वीर सेना को ऐसे दिखाया गया है जैसे वह पिछड़ी जातियों पर कितना ज़ुल्म करती थी, और उनकी रक्षा करने के लिए ‘रानी भारती’ और ‘नक्सलियों’ को आगे आना पड़ा था। इस वेब सीरीज़ के जरिए 1990 से लेकर 2005 तक बिहार में जो जंगल राज का तांडव फैलाया जा रहा था, और आरजेडी एवं नक्सलियों के गठजोड़ ने जिस प्रकार से बिहार को नर्क में परिवर्तित कर दिया था, उसे उचित ठहराने का प्रयास किया जा रहा है।
राबड़ी देवी के नेतृत्व में बिहार में अपराध अपने चरम पर था, जहां एक तरफ नक्सली उत्पात मचा रहे थे, तो दूसरी तरफ मोहम्मद शहाबुद्दीन जैसे दुर्दांत अपराधियों को भी अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के नाम पर खुली छूट मिली हुई थी।
इस वेब सीरीज़ ने जिस प्रकार से बिहार में जंगल राज का महिमामंडन किया है, और जिस प्रकार से नक्सलियों के घिनौने कार्यों को उचित ठहराने का प्रयास किया गया है, उससे देखकर तो अब यही भय लगता है कि जब ‘महारानी’ में सुभाष कपूर ने ऐसे चित्रण किया है, तो ‘Mogul’ में टी सीरीज़ के संस्थापक और दुर्गा माँ के अनंत भक्त गुलशन कुमार दुआ का चित्रण कैसे करेंगे?
‘महारानी’ न सिर्फ एक घटिया वेब सीरीज़ है, बल्कि ये भी चित्रित करती है कि कैसे अब वामपंथियों ने प्रोपगैंडा को खुलेआम जनता को जबरदस्ती परोसना शुरू कर दिया है।