कैप्टन अमरिंदर सिंह ने दिशाहीन राजनीति के कारण अपनी विश्वसनीयता पूर्णतः खो दी है
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस पार्टी से इतर अपनी एक सकारात्मक छवि गढ़ी थी, जिसके चलते उन्हें राष्ट्रभक्त और एक सशक्त नेता माना जाता था। इसके विपरीत पिछले 6 महीने में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने दिशाहीन राजनीति के जरिए अपनी खुद की छवि की धज्जियां उड़ा ली हैं। उनके लिए लोगों के मन में जो विश्वसनीयता थी, वो पूर्णतः खत्म हो चुकी है। ऐसे में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर कहा जाने लगा है कि कैप्टन को काफी तगड़ा नुक़सान हो सकता है। वहीं पंजाब में इस राजनीतिक अस्थिरता का फायदा बीजेपी को मिल सकता है और पार्टी पहली बार राज्य में सत्ता हासिल कर सकती है।
कैप्टन अमरिंदर सिंह को लेकर कहा जा रहा था कि वो पंजाब कि राजनीति में कांग्रेस की लोकप्रियता से भी अधिक लोकप्रिय हैं। यही कारण है कि साल 2017 में बिना केंद्रीय सपोर्ट के उनकी एक शानदार जीत हुई थी। नवजोत सिंह सिद्धू के जरिए केंद्रीय आलाकमान ने उन्हें चुनौती देने की कोशिश की थी, लेकिन उन्हें भी विफलता ही मिली। वहीं अब साढ़े चार साल बाद परिस्थिति काफी बदल चुकी है। पिछले 6 महीनों में कैप्टन अमरिंदर सिंह की सकारात्मक छवि का सत्यानाश हो चुका है। इसकी शुरुआत पंजाब से प्रायोजित किसान आंदोलन से हुई।
कांग्रेस के केंद्रीय आलाकमान ने पंजाब में चल रहें किसान आंदोलन को अपना समर्थन देकर सांकेतिक तौर पर कैप्टन अमरिंदर सिंह को इस आंदोलन को समर्थन देने पर मजबूर कर दिया। ऐसे में इस किसान आंदोलन का अराजक रूप राजधानी दिल्ली में पूरे देश की जनता ने देखा। इसका नुकसान कैप्टन की छवि को हुआ, क्योंकि पंजाब सरकार द्वारा प्रायोजित इस किसान आंदोलन से कांग्रेस ने राष्ट्रीय स्तर पर फायदा उठाने की कोशिश की थी, लेकिन नुकसान कैप्टन को हो गया। ऐसे में राष्ट्रीय से लेकर पंजाब तक में कैप्टन की छवि इन आंदोलनकारियों के साथ खड़े होने के कारण धूमिल हो गई। पंजाब का ही एक बड़ा वर्ग इस आंदोलन और हिंसात्मक गतिविधियों के खिलाफ था।
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किसान आंदोलन के बाद कैप्टन कि छवि के खराब होने का फायदा एक बार फिर कांग्रेस आलाकमान उठाने की तैयार है। इसका संकेत एक बार फिर आलाकमान के सिपहसालार नवजोत सिंह सिद्धू का सक्रिय होना है। सिद्धू ने बगावती नेताओं का गुट बना रखा है, जिसमें कैबिनेट मंत्रियों समेत 10-12 विधायक शामिल हैं। इन सभी को कैप्टन का विरोधी माना जाता है। ये सभी पंजाब के कोटकपूरा कांड से लेकर नशें के कारोबार में बढ़ोत्तरी को न रोक पाने का आरोप लगाकर कैप्टन को घेर रहे हैं, जिससे कैप्टन की इमेज़ पर किसान आंदोलन के बाद एक और बड़ा डेंट लगा है।
अपनी दिन-प्रतिदिन बिगड़ती छवि के कारण अब कैप्टन अमरिंदर सिंह विरोधियों के खिलाफ सत्ता का प्रयोग कर रहे हैं। यही कारण है कि अचानक विजिलेंस डिपार्टमेंट द्वारा बग़ावती सिद्धू के भ्रष्टाचार की फाइल खुल जाती है। ठीक इसी तरह कैबिनेट मंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के पीछे पुराने केस के जरिए महिला आयोग को खड़ा कर दिया है। इतना ही नहीं कैप्टन विरोधी नेता अब अपनी जान तक को खतरा बताने लगे हैं। ये सभी कार्रवाई साबित करती हैं कि कैप्टन अमरिंदर सिंह अपनी छवि बर्बाद होने के बाद अब सत्ता के रसूख के जरिए सभी बगावतियों को दबाने की कोशिश कर रहे हैं।
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हालांकि, इससे बगावतियों पर कुछ खास फर्क नहीं पड़ रहा है, क्योंकि उन्हें कांग्रेस आलाकमान ने समर्थन दे रखा है। ऐसे में संभव है कि 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में फूट सकती है जिसका सीधा फायदा बीजेपी के हिस्से आएगा। बीजेपी का एक मुख्य वोटर बेस समेत कांग्रेस, आप और अकाली दल के प्रति जनता की नाराजगी उसे फायदा पहुंचा सकती है, जिसके गणित के चलते TFI पंजाब में बीजेपी के पहले दलित सीएम की भविष्यवाणी कर चुका है।
TFI की ये भविष्यवाणी अब धीरे-धीरे ठीक बैठ रही है, क्योंकि पंजाब में कांग्रेस का जनाधार अमरिंदर के बिना कुछ खास नहीं है। वहीं कांग्रेस ने अब स्वयं ही अपनी छवि बर्बाद कर ली है और कैप्टन की पिछले 6 महीने में बर्बाद हुई छवि का सीधा फायदा बीजेपी के हिस्से में आ सकता है।