फिलिस्तीन के समर्थन में खड़े भारत के इस्लामिस्ट भारत-पाक युद्ध में बेशर्मी से पाकिस्तान का साथ देंगे

क्योंकि इस्लामिस्टों के लिए देश नहीं, धर्म पहले आता है

फिलिस्तीन

(PC: The Scroll)

इज़रायल और फिलिस्तीन में फिर से हिंसक झड़प हुई है। गाज़ा पट्टी पर सक्रिय हमास आतंकी संगठन के आतंकियों की ओर से कई रॉकेट दागे जा रहे हैं, जिसके कारण कई निर्दोष इज़रायली नागरिकों समेत केरला की एक भारतीय नागरिक भी मारी गई है। जवाब में इज़रायल ने Iron Dome तकनीक की सहायता से ना सिर्फ काफी हद तक अपनी सुरक्षा की है, बल्कि अपने फाइटर जेट्स की मदद से हमास के खेमों में त्राहिमाम भी मचा रखा है। हालांकि, इज़रायल द्वारा फिलिस्तीन और गाज़ा के आतंकियों की खबर लेने पर भारत के इस्लामिस्ट सोशल मीडिया पर कल से ही अपनी छाती पीटते दिखाई दे रहे हैं। ये लोग ना सिर्फ यहूदियों की बर्बादी की कामना कर रहे हैं, बल्कि फिलिस्तीन के प्रति अपना भरपूर समर्थन भी जता रहे हैं। इसे देखकर यह कहना मुश्किल नहीं होगा कि कल को अगर भारत-पाकिस्तान के बीच कोई तनाव पैदा होता है तो ये इस्लामिस्ट किस गुट का समर्थन करेंगे।

यह खबर ऐसे समय में आ रही है जब हमास के रॉकेट के कारण एक भारतीय नर्स की हत्या हुई है। ANI के रिपोर्ट्स के अनुसार केरल के इडुक्की से आने वाली 31 वर्षीया नर्स सौम्या संतोष रॉकेट हमले में मारी गई। वह इज़रायल के तटीय शहर एशकेलों में एक वृदधा की सेवा में लगी हुई थी –

 

लेकिन ये हिंसक गतिविधियां क्यों हो रही है? दरअसल कुछ हफ्तों पहले रमज़ान के महीने के दौरान विवादित अल अक्सा क्षेत्र में फिलिस्तीनी उग्रवादियों और इज़रायली पुलिस के बीच हिंसक झड़प हुई थी। यहूदियों के अनुसार अल अक्सा मस्जिद असल में उनका पवित्र तीर्थस्थल माउंट टेंपल है, जिसे ध्वस्त कर अरबों ने अल अक्सा मस्जिद का निर्माण किया था।

तो इसका भारत के कट्टरपंथी मुसलमानों से क्या लेना देना? दरअसल मुद्दा कोई भी हो, यदि किसी इस्लामिक गुट की दुनिया भर में किसी भी व्यक्ति, संगठन या सेना से झड़प होती है, तो हमारे देश के कट्टरपंथी मुसलमान उस इस्लामिक गुट का ही समर्थन करते दिखाई देते हैं फिर चाहे वो आतंकवाद का ही समर्थन क्यों न कर रहा हो।

उदाहरण के लिए कांग्रेस पार्टी से जुड़ी दो घटनाओं को ही देख लीजिए। एक तरफ एक व्यक्ति खुलेआम इज़रायल के विध्वंस की कामना कर रहा है, तो दूसरी ओर एक नेता को सिर्फ इसलिए अपना पोस्ट डिलीट करना पड़ा, क्योंकि उससे देश के मुसलमान चिंतित हो सकते थे। दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अल्पसंख्यक विभागाध्यक्ष अली मेहदी ने स्पष्ट लिखा कि फिलिस्तीन तभी बचेगा जब अल्लाह इज़रायल को तबाह कर दे।

वहीं दूसरी ओर पूर्व क्रिकेटर इरफान पठान ने भी अपनी इस्लामिस्ट मानसिकता का प्रदर्शन करते हुए ट्वीट किया, “आप में तनिक भी इंसानियत बची है तो आप फिलिस्तीन पर हो रहे अत्याचारों का समर्थन नहीं करोगे” –

फिलिस्तीन का प्रारंभ से एक ही उद्देश्य रहा है – इज़रायल का सर्वनाश। जिस प्रकार से 1947 में कट्टरपंथी मुसलमानों ने अविभाजित भारत को खंडित कर पंजाब, सिंध, बलोचिस्तान और पूर्वी बंगाल में रह रहे गैर मुस्लिमों को उन्हीं के घरों से भागने पर विवश किया था, ठीक वैसे ही ये कट्टरपंथी मुसलमान फिलिस्तीन की आजादी के नाम पर इज़रायल की बर्बादी चाहते हैं। इज़रायल ने सदैव शांति का रास्ता दिखाने का प्रयास किया है, पर फिलिस्तीन के उग्रवादियों के कानों पर जूँ तक नहीं रेंगी।

इसके अलावा स्थिति कोई भी हो, वैश्विक मीडिया और बुद्धिजीवियों ने कश्मीर के अलगाववादियों की भांति हमेशा हमास के आतंकियों को पीड़ित के तौर पर दिखाने का प्रयास किया है, और इज़रायल की सेना को हर स्थिति में नकारात्मक छवि में दिखाने का कोई मौका हाथ से जाने नहीं दिया है। लेकिन हमारे देश के मुस्लिम यदि वाकई में मुसलमानों पर अत्याचार के लिए चिंतित होते, तो वे चीन द्वारा उईगर मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार या फिर पाकिस्तानियों द्वारा अहमदिया मुसलमानों पर अत्याचार के विरुद्ध आवाज भी ज़रूर उठाते, लेकिन वहाँ तो इस्लामिस्टों को सांप सूंघ जाता है। इन जैसे लोगों का एक ही उद्देश्य है – अपना काम बनता, भाड़ में जाए जनता। इनके रुख से यह भी स्पष्ट होता है कि अगर कल भारत और पाकिस्तान के बीच में कोई युद्ध होता है तो ये इस्लामिस्ट अपनी धार्मिक मजबूरीयों और तथाकथित “वैश्विक भाईचारे” के अंतर्गत पाकिस्तान के इस्लामिस्टों का ही साथ देंगे।

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