समय आ गया है कि दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया जाये

केजरीवाल से दिल्ली नहीं संभल रही है!

किसी ने सही ही कहा है, अति सर्वत्र वर्जयते, यानि किसी भी चीज़ की अति हर जगह वर्जित है। जिस प्रकार से दिल्ली एक अकर्मण्य और गैर-जिम्मेदार मुख्यमंत्री केजरीवील की लापरवाही के कारण कराह रही है, उससे स्पष्ट होता है कि आखिर क्यों दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगना अवश्यंभावी है।

केंद्र सरकार के लाख सहायता देने, दिल्ली हाईकोर्ट के लाख नसीहत देने के बावजूद स्थिति जस की तस है। न तो समय से आवश्यक दवाइयाँ मरीज़ों को पहुंच पा रही है, और न ही अस्पतालों को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन पहुंच पा रही है। स्थिति तो यह है कि लोग ऑक्सीजन के अभाव में अब भी अपने जान गंवा रहे हैं।

उदाहरण के लिए दिल्ली के बत्रा अस्पताल को ही देख लीजिए। यहाँ पर 8 मरीज़ों की मृत्यु हो गई, जिसका प्रमुख कारण था ऑक्सीजन की कमी। इसमें एक डॉक्टर भी शामिल था, और यह दूसरा ऐसा मामला है, जहां पर प्रशासनिक लापरवाही के कारण लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। अस्पताल प्रबंधन की मानें तो उन्होंने सुबह 7 बजे ही चेतावनी दे दी थी, लेकिन दिल्ली सरकार के पास ऑक्सीजन ही नहीं था।

तो इसमें दिल्ली सरकार का क्या दोष? यहाँ दिल्ली सरकार पूरी तरह दोषी है, क्योंकि केंद्र सरकार द्वारा निरंतर मदद देने, दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा अनेकों बार हड़काये जाने, अनेकों राज्य सरकारों जैसे असम और ओडिशा द्वारा मदद की पेशकश करने के बावजूद अब तक एक बार भी केजरीवाल सरकार ने दिल्ली क्षेत्र के लोगों को वुहान वायरस से बचाने के लिए कोई सार्थक कदम नहीं उठाया है। सार्थक कदम उठायेंगे भी कहाँ से, विज्ञापन करके अपनी छवि चमकाने से दिल्ली के मुख्यमंत्री को फुरसत जो मिले।

बत्रा अस्पताल तो मात्र एक उदाहरण है, प्रशासनिक लापरवाही के कारण दिन प्रतिदिन दिल्ली में कई मरीज़ों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ रहा है। खबर लिखे जाने तक बत्रा अस्पताल में 12 लोग ऑक्सीजन की कमी से मर चुके थे, लेकिन दिल्ली सरकार के कानों पर जूँ तक नहीं रेंगी। उलटे दिल्ली हाईकोर्ट केंद्र सरकार को ही बलि का बकरा बनाने में लगी पड़ी थी, जबकि केंद्र सरकार ने आवश्यकता से अधिक 500 से अधिक मेगाटन की ऑक्सीजन सप्लाई की थी।

ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि दिल्ली को स्पष्ट तौर पर अब राष्ट्रपति शासन की आवश्यकता है, क्योंकि पिछले एक वर्ष में अरविन्द केजरीवाल की सरकार ने ये सिद्ध कर दिया है कि उनके बस में कुछ नहीं है। न तो उनसे प्रशासनिक जिम्मेदारी संभाली जाती है, न तो उनसे दंगे रोके जाते हैं, और तो और वुहान वायरस जैसी महामारी को रोकना भी उनके बस की बात नहीं है।

अक्सर केजरीवाल रोना रोते हैं कि केंद्र सरकार उनकी मदद नहीं कर रही है, लेकिन सच्चाई तो यह है कि वे खुद ही कोई मेहनत नहीं कर रहे। रेलवे से लेकर कई राज्य सरकारों ने मदद की पेशकश की है, कि आप हाथ बढ़ाइए तो सही, लेकिन केजरीवाल सरकार खुद भले दिल्ली को स्वाहा कर दें, परंतु मजाल है कि वह दिल्ली को जरा भी राहत दिलाने के लिए कोई कदम उठाएं। स्वयं दिल्ली हाईकोर्ट ने केजरीवाल सरकार को उनके इस आलस के लिए जमकर कोसा और कहा कि क्या आपको सब थाली में सजाकर परोसा जाए?

अब बत्रा अस्पताल में जो हुआ है, उससे स्पष्ट पता चलता है कि अरविन्द केजरीवाल के बस की कुछ नहीं है और केंद्र सरकार को जल्द सब कुछ अपने हाथ में लेना पड़ेगा, अन्यथा दिल्ली के बर्बाद होने में देर नहीं लगेगी।

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