भारतीय अर्थव्यवस्था में मीट का एक्सपोर्ट का महत्व काफी महत्वपूर्ण रहा है, गल्फ देशों से लेकर अरब तक में हलाल मीट का प्रयोग किया जाता है, लेकिन भारत में बहुसंख्यक और गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यक समाज के लोग झटका मीट पसंद करते हैं।
वहीं श्रीलंका में बौद्ध समाज के लोगों के अलावा दस प्रतिशत मुस्लिमों ने भी हलाल मीट से किनारा कर लिया है। ऐसे में भारतीय बाजार और श्रीलंका जैसे देशों में निर्यात के लिए झटका मीट की मांग बढ़ी है। इस झटका मीट की मांग की बढ़ोतरी में देश के मुख्यता हिंदू और सिख समाज का योगदान रहा है, क्योंकि मुस्लिमों के एकाधिकार के चलते पहले हलाल मीट को ज्यादा तवज्जो दी जाती थी, परंतु अब ऐसा नहीं है।
हलाल और झटका की बात करें तो किसी भी जानवर के मीट के लिए य़दि उसे एक बार में ही मारा जाता है तो वो मीट झटका कहलाता है, तो वहीं किसी जानवर को धीरे-धीरे मारा जाता है, तो वो मीट हलाल माना जाता है। मुस्लिम समाज हलाल को ही तवज्जो देता है। हिन्दू और सिख समाज के लोगों के लिए हलाल मीट को वर्जित माना गया है।
ऐसे में सबसे बड़ी बात ये है कि मुस्लिमों की अधिक मांग और एकाधिकार के चलते देश में मुख्य तौर पर हलाल मीट ही बेचा जाता था, और इस बारे में लोगों को ज्यादा जानकारी दी ही नहीं जाती थी, लेकिन अब परिस्थिति बदल चुकी है।
एनएसएसओ की रिपोर्ट के मुताबिक देश का 58 प्रतिशत हिन्दू, 93 प्रतिशत ईसाई, 78 प्रतिशत में मुस्लिम और 21 प्रतिशत सिख मांसाहार का सेवन करता है। ऐसे में ये मुस्लिम समाज के लोगों को छोड़कर पूरा वर्ग झटका मीट खाने वाला है। ऐसे में झटका मीट इंडस्ट्री के लिए ये पूरा वर्ग और खास कर हिंदू समाज एक बड़ी आवश्यकता है। इस मामले में एक उदाहरण के तौर पर ईश्वर सेठी नाम के शख्स ने महाराष्ट्र के पुणे में भारत का पहला नॉन हलाल झटका का फूड पार्क खोला है।
उन्होंने बताया, “हम यहां पर आए तो 2015 तो यहां किसी को नहीं पता चलता था कि उन्हें झटका मीट परोसा जा रहा है, या हलाल। हम सिख हैं और हमारे सिख समाज के लिए हलाल को वर्जित माना गया है। जिन लोगों को ये बात पता चलती है वो लोग भड़क जाते हैं। वहीं अब कई मुस्लिम भी इस बात से सहमत हैं कि हलाल या झटका की बात बताई जा रही है।” सेठी का ये बयान बताता है कि हलाल की तुलना में लोग झटका मीट को वरीयता देते हैं
सेठी के फूड पार्क से एक बड़ी एयर लाइन कंपनी की कैटरिंग ने करार कर रखा है। वहीं कई ग्रोसरी ऑनलाइन मार्केट में भी झटका की ही डिलीवरी की जाती है जो कि झटका के विस्तार को दिखाता है। वहीं संसदीय कार्यवाही की रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकार रवि रंजन अब दिल्ली में हलाल और झटका को लेकर रेस्टोरेंट और कंपनियों को सर्टिफिकेट देते हैं।
उन्होंने बताया, “झटका का सर्टिफिकेट उन्हीं लोगों को दिया जाता है, जो कि झटका की प्रकिया के तहत ही पशुओं को मारते हैं। हलाल और झटका मीट की बिक्री एक साथ की ही नहीं जा सकती है, और इसीलिए उनकी संस्था दोनों के मीट के लिए किसी एक को सर्टिफिकेट नहीं देती है।”
दिल्ली की बीजेपी शासित नगरपालिका ने भी एक आदेश में साफ कहा था कि जितने भी नॉनवेज रेस्टोरेंट हैं उन्हें ये बताना होगा कि वो अपने ग्राहकों को झटका परोस रहे हैं कि हलाल। इस मुद्दे पर बड़े रेस्टोरेंट्स ने तो फैसले की आलोचना की लेकिन वहीं दिल्ली के शाहदरा इलाके के मीट विक्रेता नितिन कुमार ने बताया कि अधिकतर लोगों द्वारा झटका मीट की मांग ज्यादा की जाती है।
प्रत्येक मीट पर नगरपालिका द्वारा झटका या हलाल होने का सर्टिफिकेट लगाया जाता है। मीट विक्रेता के कथन अनुसार ही समझें तो ये कहा जा सकता है कि झटका मीट की ज्यादा मांग हिंदू समाज के लोगों की जागरूकता अब विक्रेताओं को झटका की तादाद ज्यादा रखने पर मजबूर कर रही है।
श्रीलंका में बौद्ध आबादी के इतर भी मुस्लिम आबादी तक में झटका मीट को अधिक तवज्जो मिल रही है। कुछ इसी तरह चीन में भी हलाल मीट के खिलाफ आंदोलन चलता है, और झटका को महत्व दिया जाता है। वहीं देश में सुप्रीम कोर्ट भी कह चुका है कि ग्राहकों को उनकी वरीयता के अनुसार खान पान की वस्तु प्रदान की जाए क्योंकि ये उनका हक है।
मुस्लिमों के इतर देश के हिंदू, सिख, ईसाई समाज का झटका के प्रति झुकाव दिखाता है कि भारत में झटका मीट का व्यापार अरबों डॉलर का विस्तार पा चुका है, ठीक इसी तरह चीन और श्रीलंका जैसे देशों को निर्यात कर भी झटका मीट के व्यापार को मजबूती मिल सकती है।