वामपंथी अर्थशास्त्रियों की बड़ी चिंता, आखिर भारत की बिगड़ती अर्थव्यवस्था में स्टॉक मार्केट कैसे बेहतर हो सकता है

भारत की अर्थव्यवस्था growth

[PC:SinceIndependence]

कोरोना की दूसरी लहर के बावजूद भारत की अर्थव्यवस्था पर इसका कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, ऐसा नहीं है। भारत का स्टॉक एक्सचेंज इस बात को प्रमाणित करता है कि भारत के खिलाफ चलाए गए मीडिया अभियान का निवेशकों के व्यवहार पर कोई फर्क नहीं पड़ा है और उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था में अपना विश्वास कायम रखा है। भले ही वामपंथी रुझान वाले अर्थशास्त्री स्टॉक एक्सचेंज और अर्थव्यवस्था के हालात के संबंध को कम करके आंके लेकिन वास्तविकता यह है स्टॉक एक्सचेंज ही पहला सूचक है कि अर्थव्यवस्था किस दिशा में जाएगी।

भारत में विदेशों से और उससे भी अधिक घरेलू बाजार से निवेश आ रहा है। कई कंपनियों के इक्विटी शेयर में बढ़ोतरी हुई है। कोई कंपनी इक्विटी पूंजी तब जुटाती है जब लोग उस कंपनी के शेयर खरीदते हैं। किसी कंपनी के शेयर बिकने का मतलब यह होता है कि, निवेशकों को भविष्य में उस कंपनी से लाभ की उम्मीद है, क्योंकि अधिकांश कंपनी स्टॉक एक्सचेंज पर अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं। इस कारण सेंसेक्स में उछाल है, तो इससे यह साफ होता है कि दूसरी लहर के बावजूद निवेशकों का भरोसा है कि भारत की अर्थव्यवस्था आने वाले समय में भी अपनी विकास दर को कायम रखेगा।

GW&K Investment Management के Tom Masi और Nuno Fernandes ने कहा “आर्थिक विकास इस वर्ष दूसरी लहर के कारण थोड़ा बहुत प्रभावित होगा, लेकिन इस वर्ष विस्तार बहुत मजबूती के साथ होगा और दूरगामी दृष्टि से यह (आर्थिक विस्तार) सकारात्मक रहने वाला है”। उन्होंने कहा “छोटे निवेशक भले ही (निवेश प्रक्रिया से) हटने को मजबूर हैं लेकिन बड़े निवेशक इस मौके का लाभ उठा सकते हैं।” साफ है कि केंद्र में मजबूत सरकार और राजनीतिक स्थिरता, नीतियों का दूरदर्शी होना और बड़े नीतिगत बदलाव निवेशकों को आशान्वित कर रहे हैं।

आर्थिक नीतियों विश्लेषक, आर्थिक मामलों की विभिन्न पत्रिकाएं तथा बड़े कॉरपोरेट हाउस सरकार की नीतियों को लगातार सराह रहे हैं। फिर वह GST को सफलतापूर्वक लागू करना हो, कृषि बिल लागू करके निजी निवेश को आमंत्रित करना हो, समाजवादी अर्थव्यवस्था के दशकों के लेबर लॉ में सुधार करना हो, कॉरपोरेट टैक्स में छूट हो, PIL जैसी योजनाएं हों, मोदी सरकार ने एक के बाद एक ऐसे फैसले किए हैं जिससे भारत निवेशकों का भरोसा जीत सके।

भारत में GST सुधार तीन दशकों से लागू होने के लिए पड़े हुए थे, क्योंकि पिछली कोई भी सरकार सभी पक्षों को एक एकीकृत टैक्स प्रणाली के लिए नहीं मना पा रही थी। यह अत्यंत कठिन इसलिए था क्योंकि GST को लागू करने के लिए भारत जैसी विस्तृत और जटिल अर्थव्यवस्था में, व्यापारियों, राज्य सरकारों और नौकरशाहों आदि सभी लोगों को एकसाथ एक एकीकृत टैक्स सिस्टम में लाना था। यह कार्य मोदी सरकार ने सफलतापूर्वक कर दिया। GST लागू होने के कारण अप्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष, दोनों प्रकार के करदाताओं की संख्या बढ़ी है। प्रमुख अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि GST से आर्थिक विकास की दर 2 प्रतिशत तक बढ़ गई है।

कांग्रेस और UPA शासन में पैदा हुई लोन डिफॉल्ट की परंपरा को खत्म करने के लिए सरकार ने IBC लॉ 2016 बनाया। इसमें 2019 में आवश्यक सुधार हुए, जिससे लोन की समस्या काफी हद तक सुधर गई।

सरकार निजी निवेश के माध्यम से व्यापारिक गतिविधियों के लिए आवश्यक लॉजिस्टिक बढ़ा रही है। किसी भी देश को Manufacturing हब बनाने में लॉजिस्टिक सपोर्ट का सबसे बड़ा योगदान होता है। बंदरगाहों का रेलवे, सड़क और वायुमार्ग के जरिए सीधे विनिर्माण क्षेत्र से संपर्क बहुत आवश्यक है। इसके लिए बंदरगाहों पर रनवे, कन्टेनर रखने के लिए पर्याप्त जगह जैसे अन्य आवश्यक इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण हेतु भारी मात्रा में निवेश की आवश्यकता होती है। सरकार निजी उद्योगपतियों को निवेश के लिए आमंत्रित कर रही है और अडानी ग्रुप जैसी बड़ी कंपनी इस क्षेत्र में काम कर रही हैं।

वामपंथी विचारक भले इन सभी तथ्यों को नजरअंदाज कर दें लेकिन सत्य यह है कि केंद्र की दूरगामी नीतियों के चलते भारत में निवेश हो रहा है। सरकार जिस प्रकार से सुधार लागू कर रही है, इंफ्रास्ट्रक्चर का विस्तार कर रही है, उसके कारण लम्बे समय तक भारत में इसीप्रकार निवेश आता रहेगा। मोदी सरकार के 7 वर्ष, आर्थिक मोर्चे पर भारत के लिए युगांतरकारी हैं क्योंकि पहली बार भारत में कोई सरकार समाजवादी आर्थिक दृष्टिकोण को त्याग कर, जमीनी हकीकत समझते हुए आवश्यक सुधार लागू कर रही है। यही कारण है कि कोरोना की इतनी भयंकर स्थिति के बाद भी भारत का आर्थिक विकास नहीं थमा है।

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