जब भाजपा ने राममंदिर आंदोलन की शुरुआत की थी और हिंदुओं के एकीकरण का कार्य शुरू किया था, उसी समय तात्कालिक प्रधानमंत्री और जनता दल के नेता वी०पी० सिंह ने मण्डल आयोग की सिफारिशों को लागू किया था, जिसमें आर्थिक और सामाजिक पिछड़ेपन के आधार पर OBC कैटेगरी बनाने और उसे आरक्षण देने का सुझाव था।
मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने के पीछे हिंदुत्व के बढ़ते जनाधार को रोकने की योजना थी।तभी से हिंदुत्व को कमजोर करने के लिए वामपंथी बुद्धिजीवियों ने इसी नीति का इस्तेमाल किया है। इसके अनुसार हिंदुत्व मुख्यतः जनरल कैटेगरी के हिंदुओं द्वारा समर्थित विचार है, जिसे ST, SC और ओबीसी तबके का समर्थन नहीं प्राप्त है। हाल में सम्पन्न हुए पश्चिम बंगाल चुनावों के बाद यह चर्चा दुबारा शुरू हो गई है, ऐसे में इसका तथ्यात्मक विश्लेषण आवश्यक है।
ST, SC और OBC वर्ग में हिंदुत्व के प्रभाव का सबसे बड़ा प्रमाण स्वयं कल्याण सिंह थे, जिनके नेतृत्व में भाजपा ने 1990 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव जीता था। कल्याण सिंह स्वयं ओबीसी कैटेगरी के थे और उनके नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में यादवों के अतिरिक्त बड़ी संख्या में ओबीसी वोट बैंक भाजपा के पक्ष में आया।
मूलतः जो भी लोग हिंदुत्व के विचार से जुड़े थे, वे जाति के ढांचे से अलग थे। फिर भी जातिगत आधार पर वर्गीकृत किया जाए तो भी 1998 तक भाजपा को वोट करने वालों में सभी जाति के लोग थे। यह अवश्य है कि भाजपा विरोधी दलों का वोट किसी विशेष जाति से जुड़ा था। जहाँ तक प्रश्न जनरल कैटेगरी के वोट का है तो लम्बे समय तक ब्राम्हण वोट कांग्रेस को मिलते रहे हैं। ऐसे में यह थ्योरी की हिंदुत्व का जनाधार जनरल कैटेगरी में ही है, निराधार है।
2014 के बाद तो भाजपा की स्वीकार्यता ST-SC तबके में भी तेजी से बढ़ी है। इसमें दो कारक महत्वपूर्ण हैं। पहला मोदी सरकार की गरीब कल्याण योजनाएं, दूसरा इस वर्ग में हिंदुत्व के विचार को फैलाने के लिए किया गया कार्य। उदाहरण राजभर जाति से आने वाले महान हिन्दू राजा सुहेलदेव के आदर्श को पुनर्जीवित करके भाजपा ने राजभर वोटबैंक को हिंदुत्व के समीप लाया है।
यह कोई नया प्रयोग नहीं है, जैसा कुछ वामपंथी उदारवादी पत्रकारों द्वारा प्रचारित किया जाता है। भाजपा ने मध्यप्रदेश में गोंड़ जनजाति में हिंदुत्व की अलख जगाने के लिए वीरांगना रानी दुर्गावती की कहानी को पुनर्जीवित किया था।
हिंदुत्व, केवल जनरल कैटेगरी के हिंदुओं द्वारा समर्थित विचार है, ऐसा दुष्प्रचार दुबारा शुरू हुआ है। हाल में वामपंथी नरेटिव वाले THE HINDU अखबार में श्रेयस सरदेसाई का लेख छपा था जिसका शीर्षक “West Bengal Assembly Elections | Subaltern Hindutva on the wane?”, लेख में यही बात कही गई थी हिंदुत्व का ST, SC और बैकवर्ड वोट में कोई विस्तार नहीं है।
The Indian Express में भी ऐसा ही लेख छपा है। जबकि वास्तविकता यह है कि भाजपा को कलकत्ता जैसे शहरों में, जहाँ बंगाली भद्रलोक रहता है, वहाँ खासी सफलता नहीं मिली है। यही स्थिति 2019 के लोकसभा चुनावों में भी थी, भाजपा को कोलकाता जैसे शहरी क्षेत्रों में हार मिली थी, जबकि यहाँ बंगाली भद्रलोक प्रभावी है।
हालिया चुनाव में भाजपा को 77 सीट मिली और 38 प्रतिशत से अधिक वोट ग्रामीण पृष्टभूमि में मिला है, जहाँ अधिकांश वोट ST-SC और ओबीसी ही है। स्वयं The Hindu के लेख में एक सर्वे के आधार पर बताया गया है कि भाजपा को इस वर्ग से करीब 50 प्रतिशत वोट मिले, अब 2016 में इकाई के आंकड़े से शुरू करके लगभग 50% तक आ जाने ही हिंदुत्व का विस्तार न समझें तो क्या समझें।
भाजपा का ST, SC और ओबीसी में विस्तार हुआ है इसका प्रमाण तो चुनाव बाद हो रही हिंसा ही है। हिंसा की लगभग सभी घटनाएं ग्रामीण क्षेत्रों की है। असम पलायन करने वाले लोगों में कोई बहुत संभ्रांत परिवार से नहीं है। हिंसा से प्रभावित लोगों पर सर्वे करवा लें तो स्वतः सिद्ध हो जाएगा कि कौन सा तबका किसके पक्ष में है।
वैसे तो यह चर्चा ही अनावश्यक है। हिंदुत्व एक ऐसा विचार है जो जाति के बंधन को स्वीकार ही नहीं करता। जो लोग हिंदुत्व के पक्षधर हैं वो हिन्दू हैं, अब वामपंथी अपनी बौद्धिक तृप्ति के लिए उनकी जाति खोजना चाहें तो सहर्ष करें, किन्तु हिंदुत्व को सही मायने में अपनाने वाले लोग, अपनी जाति के अस्तित्व को छोड़कर आते हैं।