AMU में कोई नया कोविड स्ट्रेन नहीं है, फैकल्टी ने बस टीके नहीं लगवाए थे

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में Vaccine के प्रति अंधविश्वास बना घातक

AMU कोविड स्ट्रेन

AMU में कोई नया कोविड स्ट्रेन नहीं है सिर्फ अंधविश्वास भारी पड़ गया

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) में कोरोना से हुई मौतों के कारण का पर्दाफाश हो गया है। विश्वविद्यालय में कोरोना के एक नए कोविड स्ट्रेन पर आशंका जताई गई थी लेकिन अब जाँच में यह बात सामने आई है कि वहां कोई भी नया कोविड स्ट्रेन नहीं था बल्कि कई दिनों पहले महाराष्ट्र में मिला B16172 वरियेंट ही था। इस कारण हमने जो थ्योरी दी थी कि ये मौतें वैक्सीन न लगवाने का नतीजा हो सकती हैं, वह अब सही साबित होता दिखाई दे रही है।

कई ऐसी भी रिपोर्ट सामने आई है जिसमे यह कहा गया है कि जितने प्रोफ़ेसर की मृत्यु हुई है उनमें से अधिकतर ने वैक्सीन नहीं लगवाई थी। दरअसल पिछले कुछ सप्ताह में कम से कम 35 सेवारत और एक सेवानिवृत्त AMU प्रोफेसरों की कोरोना वायरस से मृत्यु हो गई है थी। इससे पुरे देश में तहलका मच गया और यह आशंका पैदा हो गई है कि वायरस का एक दूसरा घातक स्ट्रेन कहर बरपा रहा है।

इसी कारण कुलपति तारिक मंसूर ने भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) को इस स्ट्रेन के बारे में जाँच के लिए पत्र लिखा था ताकि जीनोम अनुक्रमण के माध्यम से सभी पहलुओं का अध्ययन किया जा सके।

अब रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) और उसके आसपास कोविड -19 मामलों में वृद्धि के पीछे कोई नया कोविड स्ट्रेन नहीं था बल्कि B16172 वरियेंट या डबल म्यूटेंट वरियेंट है, जिसके कारण पिछले कुछ हफ्तों में कई सेवानिवृत्त और सेवारत प्रोफेसरों की मौत हुई है।

AMU द्वारा नई दिल्ली के सीएसआईआर-इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी को भेजे गए सैंपल की जीनोम-सीक्वेंसिंग से पता चला कि यह कोई नया कोविड स्ट्रेन नहीं है, बल्कि कोरोनावायरस का डबल म्यूटेंट वेरिएंट है।

AMU के वायरल रिसर्च एंड डायग्नोस्टिक लेबोरेटरी के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के अध्यक्ष और प्रमुख investigator प्रोफेसर हारिस मंजूर खान ने कहा कि परीक्षण के लिए भेजे गए 90% नमूनों में B16172 वरियेंट था, जिसे आमतौर पर डबल म्यूटेंट संस्करण के रूप में जाना जाता है, जिसे पहली बार पिछले अक्तूबर महाराष्ट्र में पाया गया था।

अब यह बात भी सामने आई है कि जिन प्रोफेसरों की मृत्यु हुई है उनमें से अधिकतर ने वैक्सीन नहीं लगवाई थी। India Today की रिपोर्ट के अनुसार अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) में एक नामित टीकाकरण केंद्र भी है और कुलपति द्वारा नियमित अपील भी की गयी थी जिसमें टीकाकरण कराने का आग्रह किया गया था। बावजूद इसके अंधविश्वास भारी पड़ गया।

रिपोर्ट में वहां के प्रोफेसर वसीम के हवाले से बताया गया है कि मरने वालों में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जिसे कोविड-19 का टीका लगा हो। प्रोफेसर वसीम ने बताया कि वैक्सीन लगवाने वाले प्रोफेसरों को हल्का संक्रमण हुआ और वे जल्द ही ठीक हो गए।

AMU में प्रोफेसरों की कोरोना से हुई मृत्यु का कारण उनका अपना वैक्सीन को लेकर अन्धविश्वास था!

प्रोफेसर वसीम, “हमारा टीकाकरण अभियान दिसंबर से चल रहा है। मुझे नहीं लगता कि मरने वालों में से किसी ने भी इस पर ध्यान दिया। हमारे पास एक प्रोफेसर था जिसने वैक्सीन की पहली डोज ली थी और बहुत जल्द कोविड से ठीक हो गया था। यानी यह स्पष्ट है कि AMU में प्रोफेसरों की कोरोना से हुई मृत्यु का कारण उनका अपना वैक्सीन को लेकर अन्धविश्वास था।

हिस्ट्री डिपार्टमेंट के प्रफेसर नदीम रिज़वी की माने तो एएमयू फ्रेटरनिटी वैक्सीन को लेकर बहुत सीरियस नहीं थी। उन्होंने नवभारत टाइम्स से कहा कि, “अभी भी ज्यादातर लोगों ने वैक्सीन नहीं लगाई है। मैंने और मेरे परिवार ने दोनों डोज ले ली थीं, शायद इसलिए हम कोरोना से ठीक हो गए। उन्होंने कहा कि सारी जिम्मेदारी इंस्टिट्यूशंस की नहीं होती, हमारी भी होती है।“

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बचाव करने अब यहाँ यह सवाल उठाना चाहिए कि अधिकांश मृत प्रोफेसरों का टीकाकरण क्यों नहीं किया गया था? यह वैक्सीन की कमी थी या उनका वैक्सीन के प्रति अन्धविश्वास? TFI ने पहले ही अपने एक लेख में यह बताया था कि AMU में प्रोफेसरों की कोरोना से मृत्यु के पीछे कोई नया वरियेंट नहीं बल्कि Vaccine hesitancy हो सकती है। अब यह बात पूरी तरह से स्पष्ट हो गयी है।

कई रिपोर्ट्स में ये निकलकर सामने आया है कि टीकाकरण कराने के बाद कोविड से मृत्यु की दर बहुत कम हो जाती है, क्योंकि कोविड वैक्सीन की दोनों डोज़ लगने के बाद महज 0.04 प्रतिशत लोगों को ही कोविड से संक्रमित होने का खतरा रहता है। ऐसे में अब लोगों को यह समझना चाहिए की वैक्सीन जीवन रक्षक है और इसे लगवाने अवश्य जाये।

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