पिछले वर्ष केवल कोरोना वायरस ही नहीं आया, बल्कि सिनेमा जगत के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती भी साथ लाया। थियेटर न खुलने की स्थिति में जब OTT सहारा बना, तो लोगों को लगा कि मनोरंजन के लिए अब एक नया मंच मिलेगा।
लेकिन हमारे भारतीय कलाकारों, विशेषकर बॉलीवुड के निर्माताओं और निर्देशकों की सोच को देखकर लगता है कि वे OTT को भी सिनेमाघरों की तरह एक कूड़ादान से अधिक कुछ नहीं समझते, जहां वे दोयम दर्जे की फिल्में लाकर पटक देते हैं, जिसमें सबसे वर्तमान फिल्म आई है ‘राधे’।
प्रभु देवा द्वारा निर्देशित ‘राधे’ दक्षिण कोरियाई फिल्म ‘द आउटलॉज़’ का हिन्दी संस्करण है, जिसमें मुख्य भूमिका में है सलमान खान और उनका साथ दिया है दिशा पाटनी, जैकी श्रॉफ, रणदीप हुड्डा, प्रवीण तारडे जैसे कलाकारों ने।
वैसे सलमान खान की फिल्में देखते लॉजिक और कॉमन सेंस को पहले ही अलविदा कहना पड़ता है, लेकिन इस बार ‘राधे’ ‘ऊंची दुकान फीका पकवान’ से अधिक कुछ नहीं निकली।
वही घिसे पिटे संवाद, कुछ ऊटपटाँग एक्शन सीन, औसत गाने – सलमान खान की ‘राधे’ फिल्म कम, ‘जय हो’ रोजगार योजना का द्वितीय संस्करण ज्यादा लग रहा था, जहां गौतम गुलाटी, प्रवेश राणा और यहाँ तक कि अर्जुन कानूनगो जैसे कलाकारों तक को काम दिया जा रहा था।
लेकिन समस्या यहीं तक सीमित नहीं है। जब महामारी के कारण मनोरंजन के साधन सीमित हो, तो हमारे कलाकारों, विशेषकर निर्माताओं की जिम्मेदारी होती है कि वे बेहतरीन कॉन्टेन्ट ढूंढ कर निकाले। वेब सीरीज के तौर पर TVF जैसे कंपनी ‘एसपिरेन्ट’, ‘पंचायत’ जैसे शो निकालकर इस जिम्मेदारी को काफी हद तक पूरा भी करते हैं।
लेकिन जब बात OTT पर फिल्मों की आती है तो बॉलीवुड फिल्में कम, और अपना कूड़ा अधिक परोसता है।
पिछले एक वर्ष में वुहान वायरस के कारण कई फिल्मों को ‘OTT’ का रुख करना पड़ा। लेकिन क्षेत्रीय फिल्मों को छोड़ दें, तो ‘लूटकेस’, ‘लूडो’ और कुछ हद तक ‘रात अकेली है’ के अलावा बॉलीवुड ने एक भी ऐसी फिल्म प्रदर्शित नहीं की है, जिसे हम एक बार से अधिक देख सकें।
कभी ‘सड़क 2’ जैसा टॉर्चर झेलने के लिए विवश किया जाता है, तो कभी ‘कूली नंबर 1’ जैसे कलंक को जबरदस्ती परोसा जाता है, मानो जनता को पता ही नहीं है कि OTT पर किस प्रकार की फिल्में दुनिया भर में प्रदर्शित होती हैं।
‘राधे’ भी लगभग इसी श्रेणी में आती है। हालांकि सलमान खान की ‘दबंग 3’ और ‘कूली नंबर 1’ की तुलना में ये वाहियात फिल्म नहीं है, लेकिन ये इतनी भी बढ़िया फिल्म नहीं है कि लोग इसे सालों साल याद रखे।
जिस फिल्म के ऐसे संवाद ऐसे हों कि ‘अगर कोई आगे बढ़ा, तो फिर उसके लिवर की जगह ब्लेडर होगा और फेफड़े की जगह किडनी’, तो उससे आप शुद्ध मनोरंजन की आशा भी कैसे कर सकते हैं?
कुल मिलाकर हमारा मानना है कि अब OTT प्लेटफ़ॉर्म को कूड़ेदान के रूप में इस्तेमाल करना बंद करना चाहिए। ज्यादा दूर जाने की आवश्यकता भी नहीं है, जब मलयाली उद्योग कोरोना के समय भी ‘दृश्यम 2’ जैसी फिल्में दे सकती हैं, तेलुगु उद्योग ‘कलर फोटो’ और ‘जाति रतनालू’ जैसी फिल्में दे सकती हैं, तो बॉलीवुड को एक बढ़िया OTT फिल्म देने से क्या रोक रहा है?