जिन्होंने नकली रेमडेसीवीर का सेवन किया था, उनमें से 90% लोग स्वस्थ हो गए
Times of India की एक रिपोर्ट के मुताबिक ऐसे सभी रोगियों, जिन्होंने नकली रेमडेसीवीर का सेवन किया था, उनमें से 90% लोग स्वस्थ हो गए। मध्यप्रदेश में यह आश्चर्यजनक घटना हुई है। पुलिस ने जब नकली रेमडेसीवीर बेचने वाले गिरोह को गिरफ्तार किया तब पता चला कि इन्होंने जिन लोगों को नकली रेमडेसीवीर बेची थी, उनमें से 90 प्रतिशत लोग ठीक हो गए। ऐसा लगता है कि रेमडेसीवीर का रोगियों पर मनोवैज्ञानिक असर ज़्यादा हो रहा है और इसका कोरोना के विरुद्ध औषधीय लाभ कुछ खास है नहीं!
भारतीयों के संदर्भ में यह बात सर्वविदित है कि हम भारतीय अमेरिकी प्रोडक्ट को लेकर अत्यधिक आश्वस्त रहते हैं। रेमडेसीवीर भी एक अमेरिकी ड्रग है। इस घटना के सामने आने के बाद एक अधिकारी ने कहा कि हम दवा विशेषज्ञ नहीं हैं लेकिन चिकित्सकों को इसकी जांच करनी चाहिए।
रेमडेसीवीर दवा वुहान वायरस के मरीजों पर कोई विशेष प्रभाव नहीं डालती : रिपोर्ट
हालांकि ऐसा नहीं है कि रेमडेसीवीर की कार्यकुशलता को लेकर दुनिया में एकराय है, बल्कि कई रिपोर्ट में तो यह बताया गया है कि यह दवा वुहान वायरस के मरीजों पर कोई विशेष प्रभाव नहीं डालती। WHO की एक रिपोर्ट बताती है कि चीन में इस दवा के ट्रायल के दौरान यह दवा न तो रोगियों को ठीक कर सकी, न ही उनके ब्लडस्ट्रीम में वायरस की संख्या को कम कर सकी।
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237 लोगों पर किए गए परीक्षण में 158 लोगों को रेमडेसीवीर दी गई थी। रेमडेसीवीर लेने के बाद भी एक भी मरीज न तो ठीक हुआ न ही मृत्युदर में कोई अन्तर आया। बल्कि रेमडेसीवीर लेने वालों की मृत्युदर 13.9 प्रतिशत रही, जो ट्रायल में मौजूद अन्य मरीजों की मृत्युदर, 12.8 से अधिक ही थी।
हालांकि। कंपनी ने WHO की रिपोर्ट को खारिज कर दिया था क्योंकि कंपनी के अनुसार सैम्पल साइज बहुत बड़ा नहीं था, इसलिए किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता था। कंपनी का तर्क था कि ऐसे मरीजों पर, जिन्हें शुरू में ही रेमडेसीवीर दे दी गई थी, उनपर इस ड्रग ने अच्छा असर दिखाया। हालांकि रेमडेसीवीर की निर्माता Gilead कंपनी अपनी बात सिद्ध करने के लिए कोई ठोस तर्क या डेटा प्रस्तुत नहीं कर सकी।
Remdesivir कोरोना के विरुद्ध कारगर नहीं है – WHO
हालांकि, WHO की रिपोर्ट का असर कंपनी के शेयर पर पड़ा था और उस समय कंपनी का शेयर 9 प्रतिशत तक गिर गया था। इसके बाद ब्लूमबर्ग और फोर्ब्स जैसे बड़े अमेरिका मीडिया संस्थानों ने जोर शोर से रेमडेसीवीर के लिए लॉबिंग शुरू की और ऐसी खबरें छापीं जिसमें यह बताया गया कि रेमडेसीवीर कोरोना के विरुद्ध बहुत कारगर है।
किंतु इसी समय ब्लूमबर्ग द्वारा भारत की दवाओं को, जो मलेरिया के विरुद्ध कारगर रही थीं, उन्हें सिरे से खारिज कर दिया गया। अप्रैल में जब फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों ने भारतीय दवाओं को लेकर आशा व्यक्त की थी तब ब्लूमबर्ग ने 10 अप्रैल को अपनी एक रिपोर्ट में लिखा था कि मैक्रों की आशा, विज्ञान से आगे निकल गई है।
इसके बाद प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और दार्शनिक Nassim Nicholas Taleb ने अपने एक ट्वीट में कहा था कि भले ही शोध क्लोरोक्वीन जैसी दवाओं के पक्ष हों लेकिन बड़े मीडिया हाउस इनका विरोध करते हैं, जबकि शोध में अच्छा प्रदर्शन न करने पर भी Gilead की दवा को प्रचारित किया जाता है।
रेमडेसीवीर को मूलरूप से इबोला वायरस से लड़ने के लिए बनाया गया था लेकिन इबोला के विरुद्ध इसका व्यापक इस्तेमाल नहीं हुआ और यह बीमारी बहुत जल्दी ही गायब हो गई। अब कोरोना के फैलाव के बाद अंततः कंपनी को यह मौका मिला है कि वह अपनी दवा के निर्माण में खर्च हुई धनराशि को वसूल सके। इसके लिए कंपनी ने शोध में असफल प्रदर्शन के बाद भी मीडिया संस्थानों की लॉबिंग के जरिए अपनी दवा का प्रचार किया।
बिना किसी प्रभावी प्रदर्शन के बावजूद भारत में इसका इस्तेमाल हो रहा है। लोग इसे खरीद रहे हैं। इसलिए मजबूरी में सरकारें इसकी उपलब्धता सुनिश्चित कर रही हैं। हालांकि फर्जी रेमडेसीवीर से भी लोगों का ठीक हो जाना दिखाता है कि यह दवा चिकित्सीय प्रभाव भले न दिखाए, मनोवैज्ञानिक प्रभाव जरूर दिखा रही है।