हिंदुओं के धार्मिक जुलूस का मुसलमानों ने किया ‘विरोध’ तो मद्रास HC ने लगाई फटकार

मद्रास HC ने मामले का संज्ञान लेते हुए कही बड़ी बातें

हमारे देश में अक्सर यह देखा जाता है कि अगर किसी क्षेत्र या गली में मुसलामानों की संख्या अधिक हो जाती है तो उस क्षेत्र से निकलने वाले हिन्दू पर्व के दौरान जुलुस का विरोध होने लगता है। इस कारण देश भर में कई दंगे भी हो चुके हैं! अब इसी तरह एक मामला मद्रास उच्च न्यायालय पहुँचा था जहाँ कोर्ट ने इस्लामिस्टो को फटकार लगायी है और कहा है कि धार्मिक असहिष्णुता एक धर्मनिरपेक्ष देश के लिए अच्छी नहीं है।

कोर्ट ने आगे कहा कि अगर एक संप्रदाय द्वारा किये जा रहे विरोध का दुसरे ने ‘प्रतिरोध’,किया तो अराजकता और दंगे हो सकते हैं। दरअसल, तमिलनाडु के पेराम्बलुर जिले के कलाथुर गांव में ग्रामीणों द्वारा मंदिर से संबंधित जुलूस को एक विशेष रास्ते से निकालने को लेकर याचिका दायर की गई थी, जिसका स्थानीय मुस्लिम विरोध कर रहे हैं। इसी मामले की सुवाई के दौरान न्यायमूर्ति एन किरुबाकान और न्यायमूर्ति पी वेलमुरुगन की पीठ ने यह टिप्पणी की।

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि, “तीसरे प्रतिवादी (पुलिस अधीक्षक) द्वारा दायर किये गए हलफनामे से स्पष्ट होता है कि वर्ष 2011 तक संबंधित मंदिर के तीन दिवसीय उत्सव का आयोजन शांतिपूर्वक होता रहा और वर्ष 2012 के बाद से मुसलमानों ने हिंदू त्योहारों को पाप करार देते हुए विरोध करना शुरू किया जिससे यह समस्या खड़ी हुई है।”

इसके बाद याचिकाकर्ता ने पुलिस से संपर्क किया, मंदिर के उत्सव और जुलूसों के संचालन के लिए सुरक्षा की मांग की। जुलुस के लिए कुछ प्रतिबंधों के साथ सुरक्षा भी दी गई थी। न्यायाधीशों ने स्पष्ट बताया कि 2012 से पहले, गांव में सभी सड़कों के माध्यम से मंदिर जुलूस आयोजित किए गए थे और कोई समस्या नहीं थी। यहां तक कि वर्ष 2012 से 2015 तक, उन सभी सड़कों और सड़कों के माध्यम से जुलूस निकाले गए जिन्हें इस अदालत ने मंजूरी दे दी थी, लेकिन बाद में विरोध किया गया।

 

 

कोर्ट ने कहा कि जिला नगरपालिका अधिनियम 1920 की धारा 180-ए के अनुसार, सड़कों या सड़कों का उपयोग किसी भी धर्म, जाति या पंथ के लोग कर सकते। अदालत ने कहा, “केवल इसलिए कि एक संप्रदाय एक विशेष इलाके में हावी है या जनसँख्या अधिक है, तो दुसरे धर्म के लोगों को उस इलाके से जुलूस निकालने पर प्रतिबंधित करने का अधिकार नहीं हो सकता है।” कोर्ट ने आगे कहा कि, “अगर धार्मिक असहिष्णुता की अनुमति दी जाती है, तो यह एक धर्मनिरपेक्ष देश के लिए अच्छा नहीं है। किसी भी संप्रदाय द्वारा किसी भी रूप में अपनाये जा रहे असहिष्णुता को रोका और निषिद्ध किया ही जाना चाहिए।”

कोर्ट ने अपने बयान में कहा कि, “इस मामले में, एक विशेष धार्मिक समूह की असहिष्णुता यह है कि वे उस त्योहारों पर आपत्ति कर रहे हैं जो दशकों से आयोजित किए गए हैं। वे उस जुलुस को निषिद्ध करने की मांग कर रहे है, जो दशकों से गांव की सड़कों के माध्यम से निकाला गया है। इनका आधार बस यही है कि इस क्षेत्र में मुसलमानों का वर्चस्व है और इसलिए, इस इलाके में कोई हिंदू त्योहार या जुलूस नहीं हो सकता।“

कोर्ट ने कहा कि, “भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, इसलिए एक धार्मिक समूह एक विशेष क्षेत्र में बहुमत में होने से, यह उस क्षेत्र के माध्यम से अन्य धार्मिक त्योहारों या जुलूसों को रोकने का एक कारण नहीं हो सकता है।“ कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि अदालत प्रतिवादी की बातों को स्वीकार कर लेता है, तो यह एक ऐसी स्थिति पैदा करेगा जिसमें “अल्पसंख्यक लोग भारत के अधिकांश क्षेत्रों में किसी भी त्योहार या जुलूस का संचालन नहीं कर सकते हैं।“

यह विडम्बना ही है कि भारत में बहुसंख्यक होने के बावजूद हिन्दुओं को अपने त्योहार को मानाने के लिए अदालत का रुख करना पड़ रहा है। हालाँकि अदालत ने इस्लामिस्टो की मनमानी को एक बड़ा झटका दिया है और यह देश के उन सभी क्षेत्रों को एक सन्देश होना चाहिए जहाँ मुस्लिम बहुसंख्यक है कि यह देश एक धर्मसापेक्ष देश है और यहाँ कोई एक संप्रदाय हिन्दू धर्म को अपने त्योहार मानाने से नहीं रोक सकता है।

Exit mobile version