2021 के विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए काफी मिश्रित रहे। जहां असम और पुडुचेरी में उन्हें जनता की सेवा करने का एक सुनहरा अवसर मिला, तो वहीं तमिलनाडु में उन्होंने इतिहास रचते हुए 3 सीटों पर विजय प्राप्त की और राज्य में अपना खाता भी खोला। हालांकि बंगाल और केरल में भाजपा को मनचाही सफलता नहीं मिल पाई। जहां केरल में भाजपा वोटों को सीट में नहीं परिवर्तित कर पाई, तो वहीं बंगाल में उसे प्रमुख विपक्ष के पद और 77 सीटों से ही संतोष करना पड़ा।
इसी के साथ बंगाल में ममता बनर्जी की लगातार तीसरी बार वापसी भी सुनिश्चित हुई और बंगाल में परिवर्तन के सपनों पर पूर्णविराम भी लग गया। हमने पहले एक लेख लिखा था, जहां हमने इस विषय पर प्रकाश डाला था कि कैसे भाजपा के शासन में आने पर कोलकाता के रूप में भारत को उसका चौथा मेट्रोपोलिटन शहर मिल सकता है, परंतु ममता बनर्जी के आने से इन सपनों को धूमिल होने में जरा भी देर नहीं लगी।
ऐसा क्यों हुआ? ऐसा इसलिए क्योंकि भले ही केंद्र सरकार अनेक योजनाओं ( पीने योग्य पानी की सुविधा, जल निकासी, गैस पाइप लाइन) के जरिए सुविधाओं में विस्तार कर शहरों को नए सिरे से बनाने का काम कर रही है, लेकिन ये सारी योजनाएं और रोडमैप कोलकाता के लिए व्यर्थ हैं। यदि बात सार्वजनिक यातायात से लेकर सड़क निर्माण और लोगों की लाइफस्टाइल से सामंजस्य बिठाने की हो, तो ऐसे मामले में कोलकाता अन्य बड़े शहरों के सामने नहीं टिक पाता है।
TFI पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, “केंद्र की भारी भरकम महत्वकांक्षी योजनाएं दिल्ली से चलकर कोलकाता आते-आते केवल इसलिए दम तोड़ देती हैं, क्योंकि राज्य में राजनीतिक दखल हद से ज्यादा है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने राज्य के नागरिकों को सुविधाओं से वंचित रखने के साथ ही राजधानी कोलकाता के विकास के मसौदों पर भी राजनीतिक बदनियती की कुंडली मार कर बैठी हैं, जो विकास कार्यों के लिए सबसे बड़ी बाधा है”।
पश्चिम बंगाल में पिछले 6 सालों में बीजेपी ने युद्ध स्तर पर अपने जनाधार का विस्तार किया है। 2019 के लोकसभा चुनावों में लगभग आधी सीटों पर बीजेपी की जीत इस बात का ही प्रमाण है। लोकसभा चुनावों की जीत के साथ शुरू हुआ बंगाल में बीजेपी की विजय रथ अब विधानसभा चुनाव में एक बार फिर तीव्र गति पकड़ता दिख रहा था। अगर सर्वे के आधार पर ही बात करें तो बीजेपी के सत्ता में आने के बाद कोई भी पिछड़ा राज्य विकास की मुख्य धारा से अलग नहीं रह पाया है।
लेकिन बंगाल में भाजपा की हार के बाद अब कोलकाता की मुख्यधारा से पुनः जुडने के सपने यदि धूमिल नहीं हुए हैं, लेकिन उनपर ब्रेक अवश्य लग चुका है। ममता बनर्जी द्वारा मुफ़्त की वैक्सीन न मिलने पर धरना प्रदर्शन की धमकी देना इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है। ऐसे में ममता बनर्जी की बंगाल की सत्ता में वापसी बंगाल के लिए किसी दुस्वप्न से कम नहीं है और बंगाल के पुनरुत्थान के सपनों के लिए ममता की वापसी फुलस्टॉप के समान है।